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स्वर्ण-जयन्ती गौरव-ग्रन्थ
इस प्रकार ज्ञाताधर्म के अध्ययन के बाद यह निष्कर्ष निकला कि सम्पूर्ण अध्ययन में, अनासक्त भावना, अहिंसा, सद्गुरु का समागम, सम्यक् दृष्टि, सत्तत्व, मान-सम्मान की आसक्ति, क्ररता, सत्तालाललुपता, संयम आदि बौद्धिक दृष्टियों को समझते हुए अपना कल्याण कर सकता है जिनको दृष्टान्तों के माध्यम से समझाया है तथा जो प्राणी इन बौद्धिक दृष्टियों को अपने समझकर उसका आचरण किया उसकी दुर्गति हुई।
सन्दर्भ 1. आचार्य कुन्दकुन्द कृत सूत्र पाहुड। 2. अनुयोग द्वार, पृ. 179.
समवायांग सूत्र, 341.
औपपातिक पृ. 117-118. कल्पसूत्र पृ. 110. विनयपिटक पृ. 242. सुत्तनिपात, पृ. 108. तत्वार्थभाषय 1/20.
ज्ञाताधर्म, पृ. 48 (प्रकाशक आगम प्रकाशन समिति, ब्यावर)। 10. वही, पृ. 50-52. 11. वही, पृ. 62. 12. ओघनियुक्ति गाथा-2. 13. ज्ञाताधर्म, पृ. 74. 14. वही, पृ. 131-132.
वही, पृ. 133. वही, पृ. 142.
वही, पृ. 143-144. 18. वही, पृ. 150-153. 19. वही, पृ. 152-153. 20. वही, पृ. 161. 21. वही, पृ. 172. 22. वही, पृ. 192-193. 23. वही, पृ. 207. 24. णाय कुमार चरिउ।
(अ) पउम चरियं सन्धि 27, भाग-5.
(ब) कुवलयमाला कहा, सुन्दरीकथा, पृ. 225. 25. ज्ञाताधर्म कथा, माकन्दी नामक नवां अध्ययन। 26. ज्ञाताधर्म कथा, 10वां अध्ययन, पृ. 312. 27. वही, पृ. 316. 28. वही, पृ. 324. 29. वही, पृ. 329.
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