SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 125
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ संस्कृत-नाट्य-साहित्य में प्राकृत-प्रयोग की पृष्ठभूमि 107 भरत, 'नाट्यशास्त्र', 17/31/43. उपरिवत्, 17/31/43; 17/50/2. उपरिवत्, 17/53/6. धनंजय, 'दशकरूपक', 2/65. "द्यूतकार सभ्रिक माथुर की उक्तियों में पृथ्वीधर ने ढक्की मानी है। ढक्की का नाम भरत में कहीं नहीं मिलता है।" - डॉ. भोलाशङ्कर व्यास, 'संस्कृत-कवि-दर्शन', पृ. 303, चौखम्बा विद्याभवन, बनारस, संवत् 2012 वि. 7. (क) "पाठ्यं तु संस्कृतं नृणामनीचानां कृतात्मनाम्।" - दशकरूपक, 2/64. (ख) "स्त्रीणां तु प्राकृतं प्रायः शौरसेन्यधमेषु च।" - उपरिवत्, 2/65. 8. "इत्थिया दाव सक्कअं पढन्ती दिण्णणवणस्सा वि अ गिट्टी अहिअं संसुआअदि" - शूद्रक, 'मृच्छकटिकम्', 3, श्लोक 3 के पश्चात्। 9. "कार्यनश्चोत्तमादीनां कार्यों भाषाव्यतिक्रमः।" - 'दशकरूपक', 2/66. 10. (क) भरत, 'नाट्यशास्त्र', 17/31/43 और 17/50/2. (ख) “पाठ्यं तु संस्कृतं नृणामनीचानां कृतात्मनाम्। लिंगिनीनां महादेव्या मन्त्रिजावेश्ययोः क्वचित्।। - धनंजय, 'दशकरूपक', 2/64. 11. 'नाट्यशास्त्र', 17/50/2 और 17/53/6. 12. (क)"सदा इस संस्कृत नहीं को देखते देखते हम असंस्कृत या अस्वाभविक प्राकृत नदियों को भूल गए। ... हम यह कहने लगे कि नहर से नदी बनी है, नहर प्रकृति है और नदी विकृति ...।" - चन्द्रधर शर्मा गुलेरी, 'पुरानी हिन्दी', पृ. 1, नागरी प्रचारिणी सभा, काशी, प्रथम संस्करण, संवत् 2005 वि. (ख)" ... मागधी वाले कहते हैं कि मागधी ही मूलभाषा है जिसे प्रथम कल्प के मनुष्य, देव और ब्राह्मण बोलते थे।" - उपरिवत्, पृ. 3. (ग) "कुछ विद्वानों ने प्राकृतों को ही प्रधानता दी है और 'प्रकृति' को प्राकृत का आधार माना है या 'प्राक् कृत' पूर्व में हुई वह प्राकृत है, इस प्रकार की व्याख्या की है।" - डॉ. राम सिंह तोमर, 'प्राकृत और अपभ्रंश साहित्य तथा उनका हिन्दी साहित्य पर प्रभाव', पृ. 1-2, हिन्दी-परिषद्-प्रकाशन, प्रयाग विश्वविद्यालय, प्रयाग, सन् 1963 ई. 13. रुद्रट्, 'काव्यालङ्कार', 2/12. 14. "सकलजगज्जन्तूनां व्याकरणादिभिनाहितसंस्कार: सहजो वचनव्यापारः प्रकृतिः तत्र भवं सैव वा प्राकृतम्। ... प्राकृतं बालमहिलादिसुबोधं सकलभाषानिबंधनभूतं वचनमुच्यते।" - नमिसाधु, काव्यालङ्क', 2/12 की टीका। 15. भास के 'दरिद्रचारुदत्तम्' का शकार मागधी बोलता है और 'अविमारक' का विदूषक शौरसेनी का प्रयोग करता है। कालिदास ने गद्य में शौरसेनी और पद्य में मागधी का व्यवहार किया है। उनके 'अभिज्ञान शाकुन्तलम्' के मछुए मागधी में संभाषण करते हैं। शूद्रक के 'मृच्छकटिकम्' में शौरसेनी, प्राच्या, मागधी, शकारी, चाण्डाली और ढक्की की उपस्थिति है। हर्ष के 'नागानन्द' में मागधी मिलती है और भवभूति ने शौरसेनी का प्रयोग किया है। विशाखदत्त के 'मुद्राराक्षसम्' का चन्दनदास शौरसेनी बोलता है और भट्ट नारायण के 'वेणीसंहार' में भी शौरसेनी प्रयुक्त हुई है। सोमदेव के 'ललितविग्रहराज' में महाराष्ट्र, शौरसेनी और मागधी के संवाद मिलते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012064
Book TitlePrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan Vaishali Swarna Jayanti Gaurav Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherPrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan Vaishali
Publication Year2010
Total Pages520
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy