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श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन ग्रंथ
को गौरवान्वित किया बल्कि अपनी जन्मभूमि और उस प्रांत के गौरव में चार चांद लगाये । आज न केवल आपके माता-पिता की पहचान आपके नाम से है वरन् आपकी जन्म स्थली की पहचान भी देश के दूरस्थ क्षेत्रों में आपके नाम से हो रही है ।
ऐसे आदर्श स्थापित करनेवाले पू. आचार्य भगवंत जो अनेक गुणों के भण्डार है, के जन्म अमृत महोत्सव और दीक्षा हीरक जयंती के अवसर पर एक अभिनन्दन ग्रन्थ का प्रकाशन होना स्वाभाविक ही है । मैं परमपिता परमात्मा से पू. आचार्य श्री के सुदीर्घ एवं स्वस्थ जीवन की कामना करता हूं और आचार्यश्री के चरणों में सादर वंदन करता हूं ।
संयम जीवन के प्रणेता
जयेश जोगाणी नौसारी परम पूज्य राष्ट्रसंत शिरोमणि वचनसिद्ध जैनाचार्य सौधर्म बृहत्तपोगच्छनायक श्री हेमेन्द्र सूरीश्वरजी म.सा., आप संयम जीवन एवं सूक्ष्मज्ञान दर्शी है, इसलिए आपने जीवन पर जीवन मर्म को, जीवन की दशाओं को, जीवन की अनेक विविधताओं को, जीवन के सुख-दुख को, जीवन की निवृत्ति-प्रवृत्ति को, जीवन के बंधन और मुक्ति को, जीवन के निर्माण और विध्वंस को, जीवन की विलासिता एवं क्षणभंगुरता को, जीवन के भय को, अंधकार को, संदेह को, क्रोध को, ईर्ष्या और द्वेष को, छल और कपट को दर्शाकर जन-जीवन को आप सदैव सतर्क करते रहे । आपश्री का संयम जीवन वर्तमान में चमकते सूर्य की तरह जैन समाज के क्षितिज पर उदयमान है । आपने दीक्षा से लेकर आज तक अपने जीवन को तप की अग्नि में तपाकर उत्कृष्ट संयम का पालन किया और वर्तमान में संयम मार्ग पर आरुढ़ वैराग्य धारियों के लिए मार्ग प्रणेता बने हुये हैं । हमारी यह मनोइच्छा है कि आप सैकडों वर्षों तक जैन शासन की प्रभावना करते हुए इस समाज को सही मार्ग पर प्रशस्त करें। यहीं शुभकामना सह आपकी कीर्ति युगों युगांतर तक चिरस्मरणीय रहे । ऐसे उत्कृष्ट, तपोनिष्ठ संयम जीवन पालन के 63 वर्ष के संयम पर्याय पर "श्री हेमेन्द्र सूरीश्वरजी अभिनंदन ग्रंथ" के प्रकाशन पर हमारे परिवार की ओर से कोटि-कोटि वंदना।
सरलता की प्रतिमूर्ति
-हुक्मीचंद लालचंद बागरेचा, राणीबेन्नूर यह जानकर हार्दिक प्रसन्नता हुई कि परम श्रद्धेय राष्ट्रसंत शिरोमणि गच्छाधिपति आचार्य श्रीमद् विजय हेमेन्द्र सूरीश्वरजी म.सा. के जन्म अमृत महोत्सव एवं दीक्षा हीरक जयंती के शुभ अवसर पर एक अभिनन्दन ग्रन्थ का प्रकाशन किया जा रहा है । मैं इस पावन आयोजन की हृदय की गहराई से शुभकामना करता हूं।
श्रद्धेय आचार्य भगवन के सम्बन्ध में जहां तक मेरी जानकारी है, वे विनम्रता एवं सरलता की प्रतिमूर्ति है । अहंभाव तो उनके निकट आने का साहस ही नहीं करता है । वे इस आयु में भी सदैव धर्माराधना में लगे रहते हैं तथा अपना कार्य भी लगभग पूरा वे स्वयं ही करते हैं | वे सदैव प्रसन्न बने रहते हैं तथा दर्शनार्थ आनेवाले गुरुभक्तों को समान रूप से धर्मलाभ प्रदान करते हैं । यहां यह कहना प्रासंगिक ही होगा कि श्रद्धेय आचार्यश्री बच्चों में सदैव सुसंस्कारों का बीजारोपण करते रहते हैं, वैसे उन्हें बच्चे प्रिय भी हैं।
ऐसे सरलमना, उदार आचार्यश्री की दीर्घायु और स्वस्थ जीवन की हृदय से कामना करते हुए उनके चरणों में कोटि कोटि वंदना करता हूं ।
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