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श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन ग्रंथ
मेरे जीवन निर्माता गुरुदेव श्री
मुनि चन्द्रयश विजय बचपन में कहीं पढ़ा था कि कहीं तो कोई ऐसा संत मिले जो निर्मल-मन-विचारों वाला हो, सही अर्थों में साधु हो। सच्चे संतों के लक्षण बताते गुरुनानक देव ने लिखा है :
हरश-शोक जाके नहीं, वैरी-मीत समान | कहे नानक सुनरे मना, मुक्त ताहिते जान || इस्तुत निंद्या नाहि जिहं कंचन लोह समान |
कहे नानक सुनरे मना, मुक्त ताहि ते जान || तात्पर्य यह है कि सच्चे संत को कुटुम्ब परिवार धन वैभव, भोजन वस्त्र आदि किसी में आसक्ति नहीं होती। जैसा मिला खा लिया, जो मिला पहन लिया ।
जब मैंने प्रथम बार परम् श्रद्धेय राष्ट्रसंत शिरोमणि गच्छाधिपति आचार्य श्रीमद् विजय हेमेन्द्र सूरीश्वरजी के दर्शन किये तो मुझे लगा कि ये सच्चे संत हैं । मेरा मन इनकी ओर चुम्बक की भांति आकर्षित होता रहा और हृदय में वैराग्य की तरंगे लहराने लगीं । अंततः मैंने अपने आपको गुरुदेवश्री के चरणों में समर्पित कर दिया । प.पू. गुरुदेवश्री का सान्निध्य मिला तो पाया कि उनकी साधना की गहराई और हृदय की विशालता असीम है । वे अनेक सद्गुणों की खान हैं । उन्होंने मेरे जीवन का निर्माण शुरू कर दिया, किंतु मैं यह जान ही नहीं पाया । जिस प्रकार वे शिक्षा देते हैं, ज्ञान बांटते हैं उनकी शैली अनुपमेय है । वे सच्चे अर्थों में जीवन निर्माता है । उनका शिष्यत्व पाकर मैं कृत-कृत्य हुआ हूँ ।
___शासनदेव से यही कामना है कि वे हम पर गुरुदेवश्री की छत्रछाया बनाये रखें । गुरुदेवश्री सदैव स्वस्थ रहते हए हमें मार्गदर्शन प्रदान करते रहें । उनके चरणों में कोटि-कोटि वंदन ।
सद्गुणों का अक्षय कोष
मुनि लाभेश विजय
इसे मैं अपना सौभाग्य ही मानता हूं कि मुझे परम श्रद्धेय राष्ट्रसंत शिरोमणि गच्छाधिपति आचार्य श्रीमद विजय हेमेन्द्र सूरीश्वरजी म.सा. का परम पावन सान्निध्य मिला । पिछले दो तीन वर्षों से तो उनके निरन्तर सान्निध्य में हूं । उनके इस नैकट्य में मुझे उनसे अनेक बातें सीखने को मिली । परम श्रद्धेयश्री राष्ट्रसंतश्री जी म. की सरलता एवं सहजता से तो मैं पूर्व से ही परिचित रहा हूं किंतु वे सरलता की उस सीमा तक पहुंचे हुए है, यह उनके नैकट्य से ही जान पाया । मैंने यह भी पाया कि आपश्री सदैव धर्माराधना करते रहते हैं । मैंने कभी भी आपको व्यर्थ ही समय गवांते नहीं देखा । आपश्री बैठे हो, सोये हो, चलते हो तब भी आपका मन धर्माराधना में लीन रहता है ।
हम छोटे साधुओं को भी आपश्री सदैव आध्यात्मिक ज्ञान प्रदान करते रहते हैं । साधु जीवन के महत्व को बताते हुए सदैव यही कहते हैं कि एक साधु को सदैव स्व-पर कल्याण के प्रति सजग रहना चाहिये । साधु को किसी प्रपंच में नहीं पड़ना चाहिये । दो टुक शब्दों में आप कहते हैं कि साधु को कबीर ने जैसा बताया वैसा होना चाहिये । कबीर कहते हैं
हेमेन्द्रा ज्योति* हेमोन्द्रा ज्योति 10 हेमेन्द्र ज्योति* हेमेन्द्र ज्योति
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