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श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन ग्रंथ
4 निस्पृह व्यक्तित्व
मुनि हितेशचन्द्र विजय
हमारी आस्था के केन्द्र, हमारे पथ प्रदर्शक परम पूज्य राष्ट्रसंत शिरोमणि गच्छाधिपति आचार्य देवेश श्रीमद विजय हेमेन्द्र सूरीश्वरजी म.सा. का आज हमें जो नेतृत्व मिल रहा है वह हमारे लिये परम् सौभाग्य की बात है। जबसे मैंने उनके पावन सान्निध्य में मुनि जीवन अपनाकर रहना शुरू किया तब से आज तक मैंने देखा कि वे सरलता की मूर्ति हैं । वे न अपनी प्रशंसा में हर्षित होते हैं और न आलोचना से उत्तेजित होते हैं । प्रत्येक परिस्थिति में वे समभावी बने रहते हैं । दुःख और हर्ष के क्षणों में भी मैंने देखा कि वे अविचलित, समताधारण किये रहते हैं । इससे यह प्रमाणित होता है कि वे एक निस्पृह व्यक्तित्व के स्वामी हैं । मैंने यह भी देखा है कि वे सदैव धर्माराधना में तल्लीन बने रहते हैं । यों देखने में आपको भले ही लगे कि वे मौन बैठे हैं किंतु हकीकत यह है कि उनका मानस सदैव धर्माराधना में लीन रहता है । मौन रहकर भी उनका जप चिंतन मनन सतत् चलता रहता है।
आज जब उनके जन्म अमृत महोत्सव एवं दीक्षा हीरक जयंती के शुभ अवसर पर उनके अभिनंदन हेतु एक अभिनंदन ग्रंथ का प्रकाशन होने जा रहा है तो हृदय उल्लसित हो रहा है । मैं इस अवसर पर परम् श्रद्धेय राष्ट्रसंत श्रीजी के सुदीर्घ स्वस्थ जीवन की कामना के साथ ही इस आयोजन की सफलता की कामना करते हुए उनके पावन श्री चरणों में काटि कोटि वंदन करता हूँ।
अर्पित है जीवन जिनके श्री चरणों में
मुनि प्रीतेशचन्द्र विजय
श्री राजेन्द्र उपवन के परम् सुदंर, सौम्य, सुरभित पुष्प अपनी सौरभ से जन-जन के हृदयकाश को प्रफुल्लित करने वाले मेरे जीवन के तारण हार, परम् उपकारी प. पूज्य गुरुदेव राष्ट्रसंत शिरोमणि गच्छाधिपति आचार्य श्रीमद्विजय हेमेन्द्र सूरीश्वरजी म.सा. के बारे में जब कुछ लिखने की बात आती है तो मानस पटल पर विचारों का सागर लहराने लगता है। जब लेखनी से अपने मन को कागज़ पर उतारने का प्रयत्न करता हूं तो प्रश्न यह उठता है कहां से प्रारंभ करूं, क्या लिखू और क्या छोडूं? शब्द भी तो नटखट बच्चों की भाँति अठखेलियाँ करते हैं, पकड़ में ही नहीं आते, दूर-दूर भाग जाते हैं।
निरभिमानी, सरल, शांत, सौम्य, दया, क्षमा, करुणा, विनयशीलता, उदारता, सेवा–भक्ति व समानता की साक्षात् प्रतिमूर्ति गुरुदेवश्री के संबंध में जितना भी लिखा जाय वह कम होगा । सागर को कितना उलीचे, सागर से कितने कितने घट भरें; सागर-सागर ही रहेगा । सागर की लहरों की गणना करना जिस प्रकार असंभव, ठीक उसी तरह गुरुदेवश्री के गुणों का वर्णन करना भी सरल नहीं । मैंने तो प्रथम दर्शन करते ही उनके श्री चरणों में अपना जीवन अर्पित कर दिया। मैं तो परम् सौभाग्यशाली हूं कि मुझे गुरुदेवश्री का परम् पावन सान्निध्य प्राप्त हुआ । शासनदेव से यही प्रार्थना है कि वे गुरुदेवश्री का सान्निध्य सुदीर्घकाल तक बनाये रखें, उन्हें सदैव स्वस्थ्य बनाये रखे ताकि वे हमारा मार्गदर्शन करते रहें।
अंत में मैं अपने परम् उपकारी गुरुदेवश्री के परम पावन श्री चरणों में कोटि-कोटि वंदन अर्पित करता हूँ।
हेमेन्द्र ज्योति * हेमेन्द्र ज्योति
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हेमेन्द्र ज्योति* हेमेन्द्र ज्योति
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