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भारअआभार
सन् 1998 में पूज्य राष्ट्रसंत शिरोमणि गच्छाधिपति आचार्य श्रीमद् विजय हेमेन्द्र सूरीश्वरजी म.सा., पूज्य मुनिराजश्री ऋषभचन्द्रविजयजी म.सा. आदि मुनिमण्डल श्री मोहनखेडा तीर्थ पर विराजमान थे । मैं वहां पहुंचा । पू. मुनिराजश्री ने बताया कि आचार्यश्री के अभिनंदन ग्रन्थ के लिये तैयारी करना है और उसी समय आपने प. पू. आचार्यश्री के सुशिष्य मुनिराज श्री प्रीतेशचन्द्र विजयजी म.सा. से मेरा परिचय करवाया और अभिनन्दन ग्रन्थ की रूपरेखा के सम्बन्ध में विस्तार से बात हुई । इसी समय मैंने निवेदन किया कि पूर्व में मेरे द्वारा भेजी गई रूपरेखा उपलब्ध करवा दी जावें । पूर्व में भेजी गई एक रूपरेखा तो पालीताणा ही रह गई थी । एक रूपरेखा श्री मोहनखेडा तीर्थ भी भेजी थी । उसकी खोज की गई । वह भी नहीं मिल पाई । अंततः निर्णय यह हुआ कि पुनः रूपरेखा तैयार की जाकर उसका प्रकाशन करवाकर कार्य प्रारम्भ कर दिया जावें । पुनः रूपरेखा तैयार करने के विषय पर मैंने पूज्य मुनिराज श्री प्रीतेशचन्द्र विजयजी म.सा. से विस्तार से चर्चा की । परामर्श मण्डल, प्रेरक मण्डल सम्पादक मण्डल आदि में किन किन के नामों का समावेश किया जावें। प्रधान सम्पादक कौन रहेगा? सम्पादक, प्रबन्ध सम्पादक आदि के नामों पर भी विचार हुआ । वहीं ये सब नाम भी निश्चित हो गये । रूपरेखा के अन्य खण्डों में समाविष्ट होने वाले विषयों पर भी चर्चा हुई ।
उज्जैन आकर मैं रूपरेखा तैयार करने के कार्य में जुट गया । इस संदर्भ में यह भी स्पष्ट करना अपना कर्तव्य समझता हूं कि रूपरेखा तैयार करते समय मुझे अपने अभिन्न मित्र डा. ए.बी. शिवाजी, पूर्व आचार्य दर्शनशास्त्र विभाग, माधव महाविद्यालय, उज्जैन का भी अपूर्व परामर्श एवं सहयोग प्राप्त हुआ । अभिनन्दन ग्रन्थ की रूपरेखा तैयार होते ही मैं पुनः श्री मोहनखेडा तीर्थ के लिये खाना हुआ । वहां सबके सामने रूपरेखा रख दी । उसका अध्ययन हुआ और अंततः मुद्रण करवाकर कार्य आरम्भ करने का आदेश मिल गया । प. पू. राष्ट्रसंत शिरोमणि गच्छाधिपति आचार्य श्रीमद् विजय हेमेन्द्र सूरीश्वरजी म.सा. से आशीर्वाद लेकर मैंने कार्यारंभ कर दिया । __प. पू. आचार्य श्री आदि मुनिमण्डल का वर्षावास वर्ष 1998 (वि. सं. 2055) का राजगढ़ जिला धार में रहा । मैं समय समय पर राजगढ़ जाकर प. पू. आचार्यश्री, पू. मुनिराज श्री लेखेन्द्रशेखरविजयजी म.सा., पू. मुनिराज श्री ऋषभचन्द्रविजयजी म.सा. एवं पू. मुनिराज श्री प्रीतेशचन्द्रविजयजी म.सा. को अभिनन्दन ग्रन्थ के कार्य की प्रगति की सूचना देता रहा ।
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