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इस उम्र में जहाँशरीरको अधिकाधिक आराम सोचा ! कैसे अनंत गुणों के धारक गुरुदेवश्री की आवश्यकता होती है वहीं रात्री २.00 बजे के व्यक्तित्व से, जीवन दर्शन से सभी को परिचित उठकर अपनी साधना में लीन हो जाना सबके लिये करवाया जाए? आश्चर्यकारी है। ऐसे कई आश्चर्यों को देख कुछ
तब सन् १९९९ में पू. भाई महाराज साहेब प्रश्न मैने गुरुदेवश्री से किटो।
व्यवहार दक्ष मुनिराज श्री प्रीतेशचन्द्रविजयजी प्रश्न गुरुदेव ! रात को इतना जाना जरुरी है ? म.सा. के मन में अभिनंदन ग्रंथ के निमणि की क्या निंद नहीं आती?
योजना बनी। उन्हों ने अथाह परिश्रम किया, ग्रंथ उत्तर देवो ! निंद तो बहुत आती है २४ घंटे सोता
के प्रत्येक पहलु पर विचार कर उसे मूर्त रुप प्रदान रहुं तब भी तृप्ती नहीं हो। किन्तु ! “सारा दिन
किया। (उनके दिल में ग्रंथ प्रकाशन के प्रति जी समाज के लिये करते हैं. रातको तो आत्मा के उत्साह मैने देखा वह अद्वितीय था। उनके तीनलिटो करें"
चार वर्ष का प्रत्येक पल अभिनंदन ग्रंथ के लिये ही
समर्पित था। गुरुभक्ति का जज्बा, कार्य करने की प्रश्न गुरुदेव! आप तो आचार्य हैं आपके वस्त्र तो
शैली आदर्श थी। उनकी रवा-रता में गुरुदेवश्री के हंस के समान श्वेत रहना चाहिये ! (पद की
प्रतिसमणिताका रक्तबहता था।) संपूर्ण ग्रंथ को महत्तानुसार)
सुंदरता प्रदान कर विमोचन की तैयारिया की नाई। उत्तर नहीं चन्द्रयाश!“वस्त्र का उजलापन आत्मा
किंतु इस तांथ के स्वप्नदृष्टा पू. भाई म.सा. को तीराने में सहायक नहीं होगा और ना ही
का अकस्मात देवलोक नामन हो नाया। फिर चार तन काउजलापन वस्त्र औरतन धवल नहीं
वर्ष व्यतीत हो नाये। तैयार तांथ के विमोचन की होंगी तो चलेगा किंतु ! मन कभी मैला नहीं
जवाबदारी मेरी थी और आज इस ग्रंथ को “श्री होना चाहियो"
हेमेन्द्र ज्योति" नाम से अलंकृत कर पू. गुरुदेवश्री प्रश्न इस उम्र में अब आपको तपस्या (उपवास, की पावन निश्रा में विमोचन की शुभ घड़ियों में हर्ष आयंबिल) नहीं करना चाहिये।
का अनुभव कर रहा हूँ। गुरुभक्ति का यह छोटा सा उत्तर नहीं बेटा! जब तक शरीर में प्राण है तब तक
अवसर प्राप्त कर मैं धन्यता का अहसास कर रहा इस शरीर का उपयोगा लेना चाहिये ताकि आत्मा की स्थिति सुदृढ बन जाए।
श्री आदिनाथराजेन्द्र जैन श्वेताम्बरपेढ़ी ट्रस्ट इतने उच्च आदर्श विचार सुनकर आत्मा नगद
ने तांथ प्रकाशन कर अपने कर्तव्य का श्रेष्ठ निर्वाह नगढू बन जाती है। ऐसी स्थिति में हथूि रोक पान
किया है। मुश्किल हो जाता है।
तांथ में डॉ.श्री तेजसिंहजी नोड़ का सराहनीय धन्य है गुरुदेव का जीवन एवं धन्य है आपकी
के योगदान कभी विस्मृत नहिं किया जा सकता। दिव्यात्मा को ! ऐसे महापुरुष का जन्म इस धरा के सभी गुरुभक्तों को भी साधुवाद जिन्होने ग्रंथ | लिये वरदान होता है।
प्रकाशन में गुरुभक्ति में ओतप्रोत होकर द्रव्य अर्पण मेरी लेखनी में बल कहाँ,
किया। जोगुणसारे प्रकाश काँ!
गुरुदेवश्री के चरणों में शत् शत् वंदन के साथ हेअनंत गुणों केधारकगुरुवर, ही दीर्घायु की शुभभावना के साथ... मैं भी ऐसा विकासकसँ!
-मुनि चन्द्रवाशविजया दि.१२.१२.२००६
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