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श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन ग्रंथ ।
एक दीर्घ अवधि के पश्चात् राजा युद्ध से लौटा । निरन्तर लड़ते रहने के कारण उसका मन बदल गया था । अब बच्चों के साथ मिलने-जुलने, खेलने-कूदने की बात भी उसके ध्यान में नहीं आती थी, वह सारे समय राज्य के कार्यों में व्यस्त रहता था । एक दिन वह टहलते हुये अपने बगीचे की ओर चला गया । वहाँ जाकर उसने देखा संपूर्ण बगीचा वीरान हो गया है । हरियाली का नामों निशान तक नहीं रहा । बगीचे की दुर्दशा देखकर राजा आग बबूला हो गया । उसे मालियों पर बड़ा क्रोध आया । उसे इतना क्रोधित देखकर सारे माली भय से काँपते हुये खड़े हो गये । मालियों ने हाथ जोड़कर गिड़गिड़ाते हुये कहा – महाराज! जाने क्या बात हुई कि आपके जाने के पश्चात् से ही यह बगीचा सूखने लगा । हम लोगों के सारे प्रयत्न व्यर्थ हो गये, और जितना परिश्रम करते हैं यह बगीचा उतना ही सूखता जा रहा है । मालियों की बात सुनकर राजा चिंतित हो गया । दूसरे दिन से उसने स्वयं बगीचे की देखभाल प्रारंभ कर दी । पर उससे कोई लाभ नहीं हुआ और जो दो चार हरे भरे वृक्ष थे वे भी सूख गये ।
यह सब देखकर राजा की चिन्ता दुगुनी-तिगुनी बढ़ गई, आँखों से नींद गायब हो गई । वह रात भर जागता रहता उसके मन में कई प्रकार के अशुभ-विचार उत्पन्न होते । परिणाम यह हुआ कि वह बीमार पड़ गया । राजा के बीमार होने से सभी चिंतित हो गए । मंत्री से लेकर राजवैद्य तक परेशान थे । कोई उपाय काम नहीं कर रहा था । बगीचे को पुनः हरा-भरा करने के जो भी प्रयत्न किये जाते वे व्यर्थ सिद्ध हो रहे थे।
एक दिन अकस्मात थोड़े समय के लिये राजा को नींद आ गई । उसने स्वप्न में एक मुरझाया हुआ गुलाब का फूल देखा । फूल ने राजा को सादर अभिवादन किया और चुपचाप खड़ा हो गया । राजा ने फूल से पूछा तुम लोग मेरे बगीचे में नहीं दिखते । बगीचे में खिलना क्यों बन्द कर दिया? कोई कष्ट है क्या? कोई कष्ट हो तो बताओं मैं न्याय करूँगा। गुलाब के फूल ने मस्तक झुकाकर कहा - राजन् ! बात तो है, जिस बाग की शोभा बच्चों से थी, वे ही अब यहाँ नहीं आते तो हम किसके लिये खिलें । आपके मंत्री ने आपके यहाँ न रहने पर जब बच्चों को बगीचे में प्रवेश नहीं करने दिया, तब से हम मुरझा गये हैं । राजा की आँख खुल गई । राजा को अब बगीचे को सूखने का वास्तविक कारण ज्ञात हुआ । उसने तत्काल मंत्री को बुलवाया । मंत्री के आने पर राजा ने कहा - मंत्रीजी ! आपको किसने कहा था कि हमारे बगीचे में बच्चों के खेलने पर प्रतिबन्ध लगा दें? बताइये मैं आपको क्या दण्ड दूँ? मंत्री भय के मारे काँपने लगा । राजा ने कहा- आपका दंड यही है कि आप स्वयं ढिंढोरा लेकर पूरे नगर में बच्चों को एकत्र करें, तथा उन्हें अपने साथ बगीचे में ले जायें। आज का दिन मैं बच्चों के साथ बगीचे में व्यतीत करूँगा।
_ मंत्री ने सादर प्रणाम कर कहा – जो आज्ञा महाराज! प्रत्येक गली चौराहे पर मंत्री ने ढिंढोरा पीटकर बालकों को बगीचे में आने के लिये निमंत्रण दिया । बच्चों की भीड़ हो हल्ला और शोर मचाती हुई मंत्री के पीछे पीछे चलने लगी । बगीचे में राजा नंगे पैर उनके स्वागत के लिये खड़ा था । जैसे ही बच्चे बगीचे के द्वार के भीतर घुसे राजा को अपने पैरों तले गुदगुदी सी महसूस हुई । उसने चौंक कर देखा तो पाया कि हरी हरी दूब का गुच्छा उसके पैरों के नीचे उगा हुआ है । राजा प्रसन्न होकर पागलों की तरह नाचने लगा । उसने दोनों हाथों से एक बच्चे को गोद में लिया, कि पूरे बगीचे की काया ही पलट गई । चारों ओर हरियाली ही हरियाली दृष्टिगोचर होने लगी। वृक्ष और लताओं पर फूल खिलगये। वातावरण एकदम मोहक हो गया, मानों वसन्त आ गया हो । आकाश रंग-बिरंगी चिड़ियों से भर गया । उन्हें देखकर बच्चे प्रसन्नता से उछलने लगे ।
राजा उस बच्चे को गोद में लिये कुछ आगे बढ़ा ही था, कि एक गुलाब का फूल राजा के गालों की ओर स्नेह से झुक गया । राजा ने स्वप्न में आने वाले गुलाब को शीघ्र पहचान लिया । वह ठगा सा उस गुलाब के सम्मुख खड़ा रह गया । फूल हवा की ताल पर इस तरह धीमें धीमें झूम रहा था, मानों वह राजा को देखकर हँस रहा हो ।
हेमेन्द्र ज्योति* हेमेन्द्र ज्योति 22
हेमेन्द्र ज्योति* हेमेन्द ज्योति
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