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श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन ग्रंथ । युवक ने कहा – गुरुदेव ! मैं परिवार के प्रेम के कारण आने में असमर्थ हूँ। गुरु ने कहा – यह तेरी भूल है । युवक ने कहा – गुरुदेव ! मुझे समय नहीं मिलता ।
गुरु ने कहा - परिवार का तू पालन पोषण करता है, उससे तुझे क्या लाभ है? जब तेरे ऊपर विपत्ति आएगी तो उसमें कोई भी साथ न देगा ।
युवक ने कहा - मेरे परिवार के सदस्य मेरे लिये अपने प्राण देने को तैयार हैं, इसलिये मैं उनके प्रेम को त्याग नहीं सकता । यदि मुझे कोई बीमारी होती हैं, तो वे बहुत चिंतित होते हैं ।
गुरु ने कहा- ठीक है, तेरा यह कहना या मानना मोह अथवा प्रेम के कारण है । यदि तुझे उनकी परीक्षा करनी है तो मैं एक उपाय बताता हूँ उससे उनकी परीक्षा करना । गुरु की बात सुनकर युवक परीक्षा करने को तैयार हो गया।
गुरु ने कहा - अच्छा कुछ दिन मेरे पास प्रतिदिन आया करो, मैं तुम्हें प्राणायाम का अभ्यास कराऊँगा । उस युवक ने गुरु की बात मान ली और उनके पास प्रतिदिन जाता रहा । गुरु ने उसे प्राणायाम का अभ्यास कराया। इस प्रकार करते-करते उसके मस्तिष्क में श्वास चार पाँच घण्टे तक रूकने लगा । इस तरह प्राणायाम का अभ्यास करा करके उसे घर भेज दिया । तथा गुरु ने कहा - वत्स! अब जा करके प्राणायाम का प्रयोग करो । गुरु के कथनानुसार वह युवक अपने घर जाकर दर्द का बहाना करके लेट गया । सोते ही परिवार के सदस्यों ने आकर उससे पूछा - "क्या हो गया?" किन्तु वह चुपचाप पड़ा रहा । तो वे बहुत चिन्ता करने लगे । अनेक उपचार किये पर वह मृत की भाँति पड़ा रहा । वे लोग दुःखी हो गये । गुरु ने आकर पूछा - "तुम उदास क्यों हो?" कुटुम्बियों ने कहा - यह बोलता ही नहीं, उपचार भी व्यर्थ गये । तब गुरु ने कहा - "भाई ! मैं गिलास भर पानी देता हूँ। एक गिलास लाओ । हमारे मंत्र के प्रभाव से वह जीवित हो जाएगा । मंत्र पढ़कर मैं जो पानी दूंगा, वह तुममें से कोई भी पीलेना । जो पीएगा उसकी मृत्यु हो जाएगी और यह जीवित हो जाएगा ।" तुम में से ऐसा करने को कौन तैयार है? मृत्यु के भय से कोई तैयार नहीं हुआ ।
गुरु ने माता-पिता, पत्नी और पुत्र से पानी पी लेने को कहा, किन्तु सभी ने पानी पीने से इंकार कर दिया । सभी जीवित रहना चाहते थे। वह युवक पड़ा पड़ा सब सुनता रहा । मैं भूल से इस संसार में भटक रहा हूँ । अब मैं गुरु के निकट जा करके उनके चरणों में अपना कल्याण करूँगा । गुरु ने कहा- तुम तो कोई भी पीने को तैयार नहीं मैं, ही पी लेता हूँ? सभी ने कहा – हाँ, गुरुजी! आप पी लीजिये । आपके आगे पीछे कोई है भी नहीं । आप बड़े दयालु हैं, बड़े उपकारी हैं । तब गुरु ने पानी पी लिया और युवक से कहा - बेटा ! उठ
देख लिया न संसार को । युवक तत्काल उठकर बैठ गया और बोला – मैं आज तक इस संसार के मोह में फँस करके आत्म-कल्याण से वंचित रहा । इसलिये मुझे संसार में परिवार आदि का जो स्वार्थ, अभी तक मालूम नहीं हुआ था,वह अब मालमू हो गया । अन्त समय में मेरा कोई भी साथ नहीं देगा । यह सोच कर वह एकदम संसार से विरक्त होकर गुरु के साथ चला गया और अपने आत्म कल्याण में लग गया।
३ फूलों की मुस्कान वर्षों पूर्व की बात है । एक अति दयालु और परोपकारी राजा था । उसे बच्चों से बड़ा स्नेह था । अपने महल से लगे हुये बगीचे में उसने बच्चों को खेलने, कूदने, मौज मनाने की छूट दे रखी थी । सभी बच्चे राजा के बगीचें में आकर खूब खेलते । राजा भी बच्चों को प्यार करता कभी उसका मन होता तो बच्चों की भाँति खेलने-कूदने लगता। ऐसे राजा को पाकर बच्चे अति प्रसन्न थे ।
एक बार पड़ोसी राजा ने इस राजा पर आक्रमण कर दिया । राजा युद्ध पर चला गया । उसके राज्य से बाहर रहने के कारण मंत्री ने बगीचे में खेलने पर बच्चों को मनाकर दिया, अर्थात् बच्चों पर प्रतिबंध लगा दिया । उसने बगीचे का द्वार बन्द करवा दिया । बच्चे उदास हो गये और राजप्रसाद की ओर जाना बन्द कर दिया ।
हेमेन्द्र ज्योति* हेमेन्द्र ज्योति
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हेमेन्द्र ज्योति* हेमेन्द्र ज्योति
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