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श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन थ ग्रंथ
पीपल का भूत
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गाँव के बाहर आधा, पौन किलोमीटर की दूरी पर तालाब के किनारे आम इमली और वटवृक्ष के साथ एक पीपल का वृक्ष भी खड़ा था अन्य वृक्षों में वह ऊँचाई की दृष्टि से सबसे ज्यादा लम्बा था। उसकी लंबी-लंबी शाखाएँ ऐसी लगती मानों उसके हाथ हों। सभी शाखाओं में हरे हरे नवीन कोमल पत्ते होने से वह बड़ा शोभायमान लगता था।
गाँव के ग्वाले अपने पशुओं को पानी की सुविधा होने से वृक्षों के नीचे विश्राम देते । गाँव के बालक-बालिकाएँ गोबर बीनकर पीपल के मूल के आसपास डाल देते युवा ग्वाले उस पर चढ़ कर दूर तक अपनी दृष्टि दौड़ा कर पशुओं की निगरानी करते । जब जोरों की हवा चलती और उसके पत्ते परस्पर मिलकर ताली बजा कर आवाज करते तो ऐसा जान पड़ता मानों कोई वीणा का मधुर स्वर छेड़कर वातावरण को संगीतमय बना रहा हो ।
तालाब और वृक्षों के कारण वह स्थान बड़ा ही रम्य बन गया था । दिन भर वहाँ चहल-पहल रहती थी ।
एक दिन अचानक यह चहल-पहल बन्द हो गई । पीपल के पत्ते पीले पड़ने लगे, जिससे उनका दुःख प्रकट हो रहा था । रम्य वातावरण अनयास ही भयानक हो गया । ग्वालों का तो क्या ग्रामीणों का भी वहाँ जाने का साहस नहीं होता था ।
एब बार अंधेरी रात में गाँव के दो-चार व्यक्ति अपने खेतों की रखवाली के लिये हाथ में लकड़ी लेकर चले। पीपल के वृक्ष के पास आते ही एक उभरती हुई डरावनी सी आकृति दृष्टिगोचर हुई । उनके पैर वहीं ठिठक गये । इतने में उस आकृति ने विकराल रूप धारण कर लिया और उनके मार्ग में आकर खड़ी हो गयी । उन व्यक्तियों ने साहस करके पूछा कौन हो तुम? हमारा रास्ता क्यों रोका?
उसने कहा कि मैं इस पीपल पर रहने वाला भूत हूँ। कितने ही दिनों से मुझे भोजन नहीं मिला है। आज मेरा भाग्य अच्छा है, जो घर बैठे ही भोजन आ गया। भूत की बात सुनकर उन व्यक्तियों के रोगटे खड़े हो गये। उन्हें न आगे बढ़ने का साहस हो रहा था और न पीछे पलट कर गाँव में जाने का, फिर भी जैसे-तैसे उसकी दृष्टि बचाकर वे गाँव में आगये ।
सुबह सारे गाँव में बात फैल गई कि पीपल के वृक्ष पर भूत ने आकर निवास कर लिया है। कोई भी अपने बच्चों को उधर न जाने दें । फिर भी बच्चे खेलते-खेलते चले ही जाते । दिन में तो वह किसी को नहीं सताता, पर ज्यों ही सूर्यास्त होता, उसका आतंक शुरू हो जाता । भूल से यदि कोई पुरुष या औरत को खेत से आने में देरी हो जाती थी, तो वह जीवित घर नहीं पहुँचते ।
एक रात ग्रामवासियों ने चौपाल पर बैठकर विचार-विमर्श किया कि किसी भी तरह पीपल के भूत को वहाँ से भगाना है । यदि उसकी व्यवस्था नहीं की तो गाँव का शान्त वातावरण अशांत हो जाएगा । यदि कोई प्राणी रात में भूले भटके शौच के लिये चला जाता है तो उसको वह अपना भोजन बना लेता है ।
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गाँव के अनुभवी वृद्ध व्यक्तियों ने अपनी राय देते हुये बताया कि अमुक गाँव में एक जानकार रहता है उसे जाकर ले आयें वह जो माँगेगा, हम सब मिलकर देंगे, पर किसी भी तरह पीपल के भूत को भगाना है, ताकि छोटे छोटे बच्चे स्वतन्त्रता पूर्वक खेल तो सकें। वे जानकार को लेने-जाने वाले ही थे कि एकाएक पाँच साधुओं ने आकर पीपल के पास खड़े आम के वृक्ष के नीचे अपना आसन जमाया । भूत साधुओं को देखकर बड़ा प्रसन्न हुआ कि पाँच दिन का भोजन तो स्वतः ही आ गया है ।
साधु संध्या पूजा एवं भोजन से निवृत हो गाँजे की चिलम पीकर भगवत भजन में इतने लीन हो गये कि कौन आया, कौन गया इसकी भी सुध न रही । भगवत भजन सुनने में भूत भी इतना तल्लीन होगया कि उसकी भूख
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