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लिये उस समय एक दो बार रूपरेखा बनाकर, विचार विमर्श भी किया गया था, तथापि अन्य धार्मिक कार्यों में अति व्यस्तता के कारण उसे मूर्त रूप प्रदान नहीं किया जा सका । सन् 1998 में पुनः इस विषयक चर्चा चली और इस बार ठोस निर्णय ले ही लिया । विचार-विमर्श के उपरांत अभिनन्दन ग्रन्थ की रूप रेखा को अंतिम रूप देकर कार्य प्रारम्भ कर दिया। वर्षावास सं. 2055 (सन् 1998 ) में अभिनन्दन ग्रन्थ विषयक काफी कार्य हो चुका था । इसी बीच कुछ प्रतिष्ठा सम्बंधी कार्य आ जाने के फलस्वरूप उनमें व्यस्तता बढ़ गई । इसके अतिरिक्त सं. 2056 का वर्षावास श्रद्धेय आचार्यश्री का राणीबेन्नूर जिला हावेरी (कर्नाटक) में होने से भी थोड़ी बाधा उपस्थित हुई । इस वर्षावास की समाप्ति के पश्चात् भी अनुकूलता नहीं बन पाई । गत एक दो माह में थोड़ी अनुकूलता रही । उसमें भी विहारचर्या तो चल ही रही थी । फिर भी कार्य पूर्ण हुआ और प्रस्तुत अभिनन्दन ग्रंथ मूर्त रूप प्राप्त कर सका । प्रस्तुत अभिनन्दन ग्रन्थ पांच भागों में विभक्त है जिसका संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है
प्रथम खण्ड :
वन्दन भी अभिनन्दन भी है । इसमें श्रद्धेय आचार्यश्री के प्रति गुरुभक्तों की वंदनाएं शुभकामनाएं संकलित है । उनमें केवल वन्दन - अभिनन्दन न होकर श्रद्धेय आचार्यश्री के गुणों का विवरण भी सहज ही आगया है । यह खण्ड इस प्रकार के विवरण से महत्वपूर्ण बन गया है ।
द्वितीय खण्ड :
आस्था अभिनन्दन शीर्षक से है जिसमें श्रद्धेय आचार्यश्री की गुरु परम्परा एवं श्रद्धेय आचार्यश्री का संक्षिप्त जीवन वृत्त दिया गया है ।
तृतीय खण्ड :
चिंतन के आलोक में है । इसमें श्रद्धेय आचार्यश्री के प्रवचनों के कुछ अंश एवं उनके द्वारा कुछ कथायें दी गई है ।
रचित
चतुर्थ खण्ड :
जैनधर्म और दर्शन से सम्बन्धित है । नाम के अनुरूप ही इस खण्ड में जैनधर्म एवं दर्शन से सम्बन्धित देश के ख्याति लब्ध विद्वानों के महत्वपूर्ण आलेखों का संग्रह है । आलेख चिंतन प्रधान I और शोध प्रधान दोनों प्रकार के हैं।
पंचम खण्ड :
जैन इतिहास, कला, साहित्य एवं संस्कृति से सम्बन्धित है । इस खण्ड में जैन इतिहास, जैन कला, जैन साहित्य एवं संस्कृति से सम्बन्धित अत्यन्त महत्वपूर्ण शोध प्रधान आलेखों का संकलन है । कुछ आलेख तो ऐसे हैं जिन पर स्वतंत्र रूप से शोध कार्य किया जा सकता है । ये आलेख शोधार्थी के लिये सरणि का कार्य कर सकते हैं ।
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