SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 86
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री विजयवल्लभ सूरि जी महाराज -प्रो० रूपलाल वर्मा संसार की नश्वरता के बखान से ग्रन्थ-पुराण भरे पड़े हैं। सुविधा हो जायेगी। दर्शन शस्त्रों के इन दुर्बोध्य तत्वों को कितनी होरी खेले रे भविक मन थिर करके होरी।। कवियों ने लक्ष्मी चंचलता की भर्त्सना "पुरुष पुरातन की वधु, सरल एवं लोक भाषा में कवि वल्लभ जी ने अपने शब्दों में ढाला है भविक जन खेलने के अरथी, क्यों न चंचला होय" कह कर भी की है। किंतु इस मिट्टी की इसके लिए उनकी गागर में सागर भरने की कला सराहनीय है: निज गणं संग को लेकर के।। काया, लक्ष्मी और जवानी की चंचलता की तुलना भक्त कवि ज्ञान क्रिया रस्ता कहा, मुक्ति पुरी का सार। सील तनु सजी केसरी जामा, वल्लभ जी ने पीपल के पत्ते से तो की ही है, साथ में हाथ के चंचल इक लूला इक आंधला, पावे नहीं भव पार।। समता सन्मुख होकर के, कानों से भी करके सांसारिक प्राणियों को संदेश दिया है कि वे यह क्रिया और ज्ञान दो सुखकारा।। भावना शुभ पिचकारी डारो, सब कान खोलकर सुन लें तथा तन, धन और यौवन का गर्व न करें उपर्युक्त पंक्तियों को पढ़कर शैवदर्शन से प्रभावित हिन्दी के समता रस से भर-भर के।। क्योंकि ये सभी चंचल हैं: ज्ञान रस और अबीर उड़ाओ, महाकवि जयशंकर प्रसाद की निम्नलिखित पंक्तियाँ बरबस कर्म उड़ाओ भवि रज कर के।। तन धन जीवन आऊखा, जैसा कपटी ध्यान। आ जाती हैं: मादल किरिया निज गुण गायो। चंचल पीपल पात जिम चंचल गज कान।। ज्ञान दूर कुछ क्रिया भिन्न है आतम निज वल्लभ करके।। युगद्रष्टा वल्लभ जी ने भटकती हुई आज की युवा पीढ़ी को इच्छा क्यों पूरी हो मन की। ऊपर लिखित पद्य को पढ़कर गिरधर के रंग में रंगी प्रेम संदेश दिया कि विषयवासनाओं पर विजय प्राप्त करो, अन्यथा एक-दूसरे से न मिल सके दीवानी मीरा का निम्नलिखित पद सहज ही प्रत्येक साहित्य प्रेमी विनाश के गर्त में गिरने के लिए तैयार हो जाओ। इस बात को यह विडम्बना है जीवन की।। की जिहा से प्रस्फुटित हो उठेगाःसोदाहरण समझाते हुए उन्होंने कहाः सत्य भी यही है कि केवल ज्ञान की टेढ़ी-मेढ़ी पगडंडी पर फागुन दिन चार रे होरी खेल मना रे, मीन शलभ मृग श्रृंग करी, इक इंद्री वस नास। चलकर आज के भौतिकवादी युग में संसार-यात्रा करना सील संतोख की केसर चोली प्रेमप्रीत पिचकारी। पोवे इन्त्री पांच को, क्या जाने क्या आस।। लूले-लंगड़े की तरह घिसटते रहने वाली बात है। उधर कर्म मार्ग उड़त गुलाल लाल भयो अंबार बरबस रंग अपार रे, इसी प्रकार की मानवीय त्रुटियों का आख्यान मात्र करना ही द्वारा विश्वासी होकर बिना ज्ञान के लकीर के फकीर बने रहने से घट के सब पट खोल दिये हैं लोकलाज सब डर रे। कवि श्री वल्लभ का लक्ष्य नहीं था अपितु इन्द्रिय दमन का उपाय भी सत्य की अथवा परम तत्व की प्राप्ति नहीं हो सकती। ऐसी होरी खेल पिय घर आये सोई प्यारी पिय प्यार रे, बताते हुए उन्होंने कहाः दश में श्री वल्लभ जी के अनुसार जैसे लंगड़ा और अंधा यदि मीरा के प्रभु गिरधर नागर चरण कंवल बलिहार रे।। चरण करण ऋज नम्रता, बहाचर्य गुण रंग। एक-दूसरे के पूरक हो जाएँ तो गन्तव्य तक पहुंच जाते हैं। ठीक ____ कवि श्री विजय वल्लभ जी बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। ज्ञान ध्यान हथियार से, करो मोह से जंग।। उसी प्रकार ज्ञान और कर्म दोनों को साथ-साथ अपना कर आज अपने सभी मतों अपने सभी मुक्तकों के साथ उन्होंने उनकी ताल-लय, अज्ञान सिमिर की उपाधि से विभूषित आचार्य प्रवर वल्लभ हम जीवन सुधार सकते हैं। राग-रागनी व तर्ज का उल्लेख किया है। इससे उनके संगीतप्रेमी जी ने मुक्ति प्राप्त करने के लिए ज्ञान और कर्म मार्गों को एक दूसरे भक्ति कवि-कवियित्रियों के त्योहार-पर्व, राग-रंग, सभी एवं संगीतकला पारंगत होने परिचय मिलता है। इतना ही नहीं का पूरक माना है। उनके मत में केवल ज्ञान लूला है और मात्र कर्म कुछ अपने इष्ट देव के गुणों की छाप लिये होते हैं। श्री वल्लभ वाद्य-यंत्रों का भी उन्हें पूर्ण ज्ञान था। एक शब्द चित्र में कुछ अधा। अतः इन दोनों मार्गों की सीमाओं को एकाकार करके यदि अपने श्री संघ की श्रावक-श्राविकाओं को किस प्रकार होली खेलने वाद्य-यंत्रों की ध्वनि को बांधने का सफल प्रयास उन्होंने मध्यवर्ती मार्ग को जिज्ञासु अपना ले तो भव सागर से पार उतने में के लिए देशना देते हैं-इसे उनकी वाणी में सुनिए:- निम्नलिखित पद्य में बड़े सुन्दर ढंग से किया है। नाद सौन्दर्य की For Prvate & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org
SR No.012062
Book TitleAtmavallabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagatchandravijay, Nityanandvijay
PublisherAtmavallabh Sanskruti Mandir
Publication Year1989
Total Pages300
LanguageHindi, English, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size55 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy