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अपना बना लो प्रभु
इस काव्यमयी कृति को पढ़कर कोई भी संगीतज्ञ आचार्यप्रवर की भूरि-भूरि प्रशंसा किये बिना नहीं रह सकेगा:
वों त्रों त्रिकत्रिक वीणा बाजे,
धौं धौं भप धुन ढक्कारी, दगड़ दंड दगड दंड दुंदुभि बाजे,
ता थई ता थई जय जय कारी।। भाषा की दृष्टि से कवि श्री की कविता में तत्सम संस्कृत शब्दों, पंजाबी शब्दों, गुजराती शब्दों तथा उर्द की शब्दावली का सफल प्रयोग पाया जाता है। यत्रतत्र अंग्रेजी के प्रचलित शब्द भी मिल जाते हैं जैसे:तुम मूर्ति मुझ मन कैमरा, फोटू सम स्थिर एक विपल में।
इसके अतिरिक्त श्री विजय वल्लभ जी ने सरल संस्कृत भाषा में भी गीत लिखकर जहाँ अपने संस्कृत ज्ञान का परिचय दिया है वहाँ इससे यह भी सिद्ध होता है कि वे बहुभाषाविद् तथा एक प्रकाण्ड विद्वान् थे। इनके रचे तीर्थंकरों के स्तवनों में इनके विस्तृत अध्ययन एवं ज्ञान की स्पष्ट झलक मिलती है। "श्री
शान्तिनाथजिन स्तवन' शीर्षक से "कव्वाली" की तर्ज पर लिखी उनकी संस्कृत रचना की कुछ पंक्तियाँ प्रमाण स्वरूप यहाँ उद्धृत हैं:
देवस्त्वमेव भगवन, जातं मयोति सम्यक, अन्यो न त्वत्समानो ज्ञातं मयेति सम्यक्।। देव०....
भत्तेभसिंहदलने शूरा न मारहनने कन्दर्पदर्पहरणे शूरस्त्वमेव सम्पक्।। देव०.....
आत्मानमात्मना सह साम्यं कुरु ममार्हन्।
देशातमलक्ष्मीहवं वल्लभदेव! सम्यक्।। इस विवेचन से स्पष्ट हो जाता है कि जैन संत कवि श्री विजय वल्लभ सूरि जी की काव्यतरंगिणी का अवगाहन करने वाला निश्चय ही जहाँ एक ओर आत्मज्ञान रूपी शीतलता एवं निर्मलता प्राप्त कर सकता है वहाँ उसे जैन-धर्म संबंधी विविध पूजा-अर्चना की विधि का ज्ञान भी सहजरूप में उपलब्ध हो जाता है। इस जैन संत का मुक्तक काव्य भगवान् तीर्थंकरों के स्तवनों का मुक्तागार तो है ही, साथ में उपदेश की बूंदों से भरा एक ऐसा अमृत-कलश है जिसके वचनामृत का पान तथा गानकर साधु-साध्वियाँ तथा श्रावक-श्राविकाएं अपनी ज्ञान-पिपासा शान्त कर सकती हैं एवं पुण्य लाभ प्राप्त कर सकती हैं। .
प्रम मोहे अपना बनाना होगा
बनाना होगा बनाना होगा प्रभ० शरणागत वत्सल में आया है शरणे
सेवक निजानी निभाना होगा प्रभु० शरण न तुम बिन मोहे किसी का
अब तो अपना कहना होगा प्रभु जला रहा है मोहे क्रोध वावानल
मा-वर्षा से बुझाना होगा अनु० मान अहि, मोहे खाय रहा है
नम्रता देके बचाना होगा प्रमु० माया प्रपंच मोहे उलझा रहा है
देके सरलता छुड़ाना होगा प्रभु० लोभ-सागर में मैं डूब रहा हूँ
सन्तोव नावा तिराना होगा प्रमु० काम, सुषट मेरे पीछे लगा है
वे बह्मचर्य हटाना होगा प्रभु ज्ञाता के आगे अधिक क्या कहना
आखिर पार लगाना होगा प्रभु० आतम लक्ष्मी सहर्ष मनाया
वल्लभ अपना बनाना होगा प्र०
आचार्य विजय वल्लभ सूरि