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________________ विश्व की विराट् विभूति विजय वल्लभ सा. यशोभद्रा श्री वल्लभ-महिमा भारत की भूमि जैसे प्राकृतिक सौंदर्य की दृष्टि से सुदरतम है संबंध बना रहे यह गुरु वल्लभ का ध्येय था। स्वावलंबी जीवन वैसे ही यह धरा बड़े-बड़े ऋषियों, मुनियों और सज्जन पुरुषों के उनका निजी जीवन था। वाणी, वर्तन और विचार की सरलता द्वारा की गई आराधना और साधना से पवित्र है। वीरबल और और शुद्धता उनके जीवन का मुख्य गुण था। वास्तवमें "सादा अभयकमार जैसे बद्धिशाली, राम जैसे परुषोत्तम, शालीभद्र जैसे जीवन उच्च विचार" इस उक्ति से उनका सारा जीवन गुंथा हुआ -राघव प्रसाद पाण्डेय पुरुषोत्तम, बाहुबली जैसे बलशाली, स्थूलभद्र जैसे परम तेजस्वी था, इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं। उनके जीवन का एक-एक महापुरुषों ने इसी धरती पर जन्म लिया था। सीता, द्रौपदी, गुण और प्रत्येक घटना कोई अनूठा दरवाजा खोलती है, कोई सुलसा, रेवती, चन्दनबाला आदि महासतियां भी तो इसी अनोखा मार्ग दिखाती है और कोई अनमोल स्थान पर ले जाती गरुवर! तम्हारी महिमा से दर मेरा क्रन्दर। भारतभूमि की देन हैं। तेरे चरणकमल में है बार-बार वन्दन।। महान पुरुष इस संसार में जन्म लेकर स्व-पर उपकार का विजयवल्लभ ने अपने जीवन में जो भी कार्य किये वे जब भक्त हो भंवर में तेरा ही है सहारा, ही महान् कार्यकरते हैं और इसीलिए कहा भी है कि "परोपकाराय आबलवतों के लिए आजीवन हितकारी हैं। उन्होंने किसी समाज, तव नाम जपते-जपते मिल जायेगा किनारा सतां विभूतयः" सज्जनों की सम्पत्ति परोपकार के लिए होती है। राष्ट्र या देश को नहीं किन्तु जन जन को अपने पैरों पर खड़ा आश्रय तुम्हारा पाकर कट जाएं सारे बन्धन। तेरे चरण.. मोमबत्ती स्वयं जल कर दूसरों को प्रकाश देती है, फूल दूसरों किया। यवकों को आगे बढ़ाया। नारी जाति भी अपनी शक्ति सबके हदय के वल्लभ सबके हदय के प्रेमी. के पैरों तले कुचलाकर अपनी सुगंध फैलाता है, वृक्ष स्वयं गर्मी, द्वारा समाज में अपना स्थान उन्नतकर प्रभु शासन को चमका सके सब मानते थे, तमको जैनी हो अजैनी, सर्दी और हवा के झोंकों को सहन कर पथिकजनों को फल देता है और स्व-पर कल्याण कर सके ऐसी दिव्य और दीर्घ दृष्टि से ऐसी सुवास तुझमें जैसे परागचंदन। तेरे चरण .... । और शीतल छाया भी। उसी प्रकार महापुरुषों का जीवन स्वयं विचार कर साध्वीवृंद को भी पुरुषों में व्याख्यान देने की आज्ञा दी। अज्ञान देख जग में विद्या के दीप जलाए दुःख और कष्टों को सहन कर दूसरों को सुख देने वाला होता है। इस प्रकार भावीयग को समझने की अनेक दिव्य और दीर्घ दृष्टि लगभग 118 साल पहले गुजरात की पुण्यभूमि ने भी एक ऐसे उनके पास थी। इसीलिए वे युगद्रष्टा कहलाये। आज आपके भटके हुए जो पथ से उन्हें रास्ते दिखाए, ही गौरवशाली व्यक्ति को जन्म दिया था और वह थे हमारे समुदाय में साध्वियां भी आगे आगे बढ़ चढ़ कर शासन की शोभा हमारे समदाय में साध्वियां भी आगे आगे बढ़ चढ कर शासन की शोभा जो ज्ञानबीज बोए वे आज रम्य नन्दन। तेरे चरण आदर्श वल्लभ। जिन्होंने भरे यौवन में संसार के सुखों को बढ़ा सकती हैं, यह आप की ही तो देन है। प्रभु के समक्ष जब भी गुरु भावना में डूबे, ठुकराया, इच्छा माता की अंतिम इच्छा की पूर्ति के लिए गुरु फुटपट्टी से क्या कभी सागर का माप निकाला जा सकता है? संगीत पुण्यसलिला से शब्द बन के फूटे, आतम के चरणों में जीवन समर्पित करके संयम सरिता में स्नान थर्मामीटर से क्या कभी सूर्य कीगर्मी को मापा जा सकता है? भक्ति भरे अनूठे ये छंद दुःख भंजन। तेरे चरण.....। कर मातृभक्ति का एक बड़ा सुंदर जगत् के समक्ष प्रस्तुत किया आकाश के तारे क्या कभी गिने जा सकते हैं? इसी प्रकार क्या करते हैं आज अर्पण श्रद्धा-सुमन विनय से, और दीपचन्द पिता के कल में दीपक जैसे प्रकाशित हुए। वे कभी बल्लभ के गुणों का वर्णन लिखा जा सकता है? नहीं! हजार सब कष्ट दूर होंगे युगवीर तेरे जय से, आधुनिकता से दूर न रहे और न प्राचीनता के निकट। पंजाब, मुख और हजार जिह्वा से भी यदि उनके गुणों का वर्णन करना | शत-शत शताब्दियों तक होगा तेरा अभिनन्दन। मारवाड़ या गजरात को लेकर उन्होंने अपने विचार प्रकट नहीं चाहें तो भी अशक्य है फिर लिखने की बात ही क्या? तेरे चरण .....। किये अपितु सार्वभौम को लेकर। शिक्षा और संस्कार का जीवन में सचमुच विश्व की विराट् विभूति थे विजयवल्लभ। For Private & Personal use Only Horrintersanone A minorary.org
SR No.012062
Book TitleAtmavallabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagatchandravijay, Nityanandvijay
PublisherAtmavallabh Sanskruti Mandir
Publication Year1989
Total Pages300
LanguageHindi, English, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size55 MB
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