________________
शिक्षा
बढ़े हुए होते तो अपनी अहिंसा प्रधान जैन संस्कृति को सर्वत्र क्या जगत् के कदाग्रह और क्लेश का अन्त कर सकेंगे। यह तो का प्रचार करना समाजोन्नति के लिये अत्यंत लाभकारी है। व्यापक बना सकते और शांति का संदेश सारे विश्व को सुना ऐसी बात है कि जिस बीमारी का जो डाक्टर स्वयं शिकार बना है सकते। शास्त्र में 'श्रावकों को अदीन मन से रहना चाहिये' ऐसा उसके शर्तिया इलाज का वह विज्ञापन कर रहा है। इसलिये हमें
साहित्य लिखा है। इस अमूल्य सिद्धान्त को तब ही चरितार्थ कर सकते हैं स्याद्वाद का नयवाद की विशालता और सुन्दरता समझ कर जितना प्रचार हम प्रवचन, व्याख्यान या संभाषण से कर जब कि हम अपने जीवन को स्वावलम्बी बनावें। इसलिये आपस में संगठन साधना चाहिये।
सकते हैं, उससे हजार गुणा ज्यादा काम साहित्य के द्वारा हो स्वावलम्बन को समाजोन्नति का अमूल्य उपाय मानना कोई
सकता है। जो लोग अपने धर्म या संस्कृति का प्रचार कर रहे हैं वे अत्युक्ति नहीं है।
सब भिन्न-भिन्न भाषाओं में साहित्य प्रकाशन द्वारा ही कर रहे हैं |
जैसे यंत्रवाद के युग में चाहे प्रकाश करना है, चाहे पंखा और उसमें सफल होते हुए दृष्टिगोचर हो रहे हैं। श्रीकृष्ण, राम, संगठन
चलाना है, चाहे टेलीफोन से बात करना है या किसी भी प्रकार बुद्ध और क्राईस्ट के जीवन चरित्र की पुस्तकें सैकड़ों भाषाओं में बच्चा भी जानता है कि एक एक धागे को मिला कर जब मशीन को चलाना है तो बिजली का उपयोग करना आवश्यक संसार के कोने-कोने में बांटी जा रही हैं और हम लोग तो ऐसे रस्सा बनाया जाता है तब हाथी भी उसके बंधन के सामने अपने समझा जाता है। वैसे ही चाहे सामाजिक, व्यावहारिक, अथवा बेपरवाह हैं कि प्रति वर्ष जब श्रीभगवान् महावीर स्वामी का जन्म बल का उपयोग नहीं कर सकता। आज हमारे समाज में न धन की धार्मिक प्रगति साधना है तो शिक्षा के बिना कुछ भी नहीं हो महोत्सव मनाते हैं तब बड़े-बड़े मन्त्री लोगों को, न्यायाधीशों को कमी है न उदारता की, परन्तु आपस में संगठन न होने से लाखों सकता। आज आधुनिक शिक्षा से लोग घबराते हैं कि शिक्षा से और राज्याधिकारियों को निमंत्रित करते हैं, परन्तु जब वे रुपये खर्च करते हुए भी हम अपने धर्म का प्रभाव फैला नहीं संस्कृति का नाश होता है। परन्तु मैं तो उसको वैसी ही भांति भगवान् के आदर्श जीवन और उनके अमूल्य सिद्धान्तों की सकते। हमारी वर्तमान परिस्थिति पर एक सुन्दर दृष्टान्त याद मानता हूं जैसे कि बिजली जला देती है इसलिये बिजली के रूपरेखा (Outlines) दर्शानेवाली कोई पुस्तक या निबन्ध अपने आता है। कुछ जैन यात्री प्रवास में निकले हुए थे। रास्ते में सूर्यास्त उपयोग से दूर रहना चाहिये। इस तरह से यंत्रवादी घबराए होते बोलने के लिये या पढ़ने के लिये मांगते हैं, तब एक संचालक दूसरे के समय सब को चउविहार करना था और पानी के लिये कोई तो सारे संसार में यंत्रवाद का साम्राज्य स्थापित नहीं कर पाते। संचालक का मुंह ताकने के सिवाय और कुछ नहीं कर सकता। उपाय था नहीं। आखिर वे एक सूखी नदी पर पहुंचे। तब एक जिस काल में जिस प्रकार की शिक्षा प्रचलित हो, उसको प्राप्त मतलब यह है कि अंग्रेजी जैसी प्रचलित भाषा में एक सुन्दर और अनुभवी ने कहा कि सब एक छोटी कुंइयां खोदो तो अभी पानी किए बिना हम अपना हित साध ही नहीं सकते। बौद्धों तथा सारगर्भित पुस्तक बाहर के आये हुए विद्वान् लोगों को देने के निकल जाएगा। परन्तु आपस में संगठन था नहीं, इसलिये सब के वेदान्तियों ने अपना प्रचार संसार के कोने कोने में फैलाया, इसका लिये हमारे पास तैयार होवे ऐसा देखने में बहुत कम आया है। बड़े सब अलग कंइयां खोदने बैठ गये। किसी ने दो हाथ किसी ने तीन कारण यही है कि उनके प्रचारक आधुनिक शिक्षा में आगे बढ़े हुए खेद की बात है कि हजारों रुपये ध्वजापताका, सभामण्डप बनाने और किसी ने चार हाथ खोदा और पानी किसी से भी निकला नहीं थे। आज काँग्रेस ने अंग्रेजी शासन का सामना करके स्वराज्य कैसे में खर्च कर लेते हैं परन्तु इस तरफ क्यों ध्यान नहीं जाता? जब और रात पड़ गई। सबको प्यासे ही रहना पड़ा अगर सबने लिया? इसीलिए न कि हमारे नेता आज की प्रचलित शिक्षा में बौध धर्म वालों ने Light of Asia - जंबज्योति-नाम की पुस्तक मिलकर एक कुंइयां खोदी होती तो सबकी प्यास बुझती। ई.स. निष्णात बने हुए थे। दरअसल शिक्षा का बुरा असर जो हमें एक महान् विद्धान द्वारा तैयार करवाई, उन्हीं दिनों में हमने भी 1893 के चिकागो (अमेरिका) की (Parliament of Religions) अपनी संस्कृति पर नजर आता है, उसका कारण तो यह है कि हम एक अत्युत्तम ढंग से महावीर का जीवन चरित्र प्रकाशन करने में सर्वधर्मपरिषद् में जैन धर्म के प्रतिनधि श्रीमान् वीरचन्द राघवजी अपनी संस्कृति-रक्षण के पाये पर शिक्षा के साधन खड़े नहीं करते कुछ रकम खर्च कर दी होती तो आज महावीर भगवंत के प्रति भी गांधी गये थे। हिन्दू धर्म के प्रतिनिधि स्वामी विवेकानंद गये थे। हैं। आज हमारे कितने ही शिक्षालय खुले हुए नजर आते हैं परन्तु प्रजा में सर्वत्र पूज्यभाव बढ़ता और सभा में जैसे बुद्ध को बार-बार दोनों की प्रशंसा अमेरिका में खूब हुई और उनके व्याख्यानों का आदर्श शिक्षकालय दो चार भी देखने में नहीं आते। अगर हम विद्वान लोग अपनी जिह्वा पर लाते हैं वैसे भगवान् महावीर का अपूर्व प्रभाव वहां की प्रजा पर पड़ा। परंतु हमारे समाज में संगठन शिक्षक ही संस्कृति के उपासक तैयार नहीं करते और पवित्र नाम भी अपने मुंह पर लाते। हर एक कार्य समयोचित होने न होने के कारण सुचारू रूप से अपना कार्य आगे न बढ़ा सके और संस्कृतिघातक शिक्षकों के द्वारा हम अपने बालकों को शिक्षा में ही शोभा है। खेती भी समयोचित नहीं हो. तो मेहनत व्यर्थ स्वामी विवेकानंद ने जो रामाकृष्ण मिशन (Ramakrishna दिलाते हैं तब सुन्दर परिणाम कैसे आ सकता है ? बनाना है गोली जाती है। जैन धर्म ने तो स्थान-स्थान पर शास्त्र में द्रव्य क्षेत्र काल Mission) स्थापित किया उसको आगे व्यवस्थित ढंग से चलाते और मशीन है टीकडी की तब क्या टीकडी(Tablet) की मशीन में और भाव पर जोर दिया है। शायद ही किसी दूसरे धर्म में इतना गये। आज सारे संसार में उनका प्रचार जारी है और देश-देश में गोली कैसे बनेगी। हमारी संस्कृति को लक्ष्य में रख कर शिक्षा के जोर द्रव्य क्षेत्र काल भाव पर हो। परन्तु आज उस तरफ न तो उसकी शाखाएं चल रही है और विदेशी लोग भी संन्यासी बन केन्द्र खोले नहीं जाते और न शिक्षक खास संस्कृति पोषक शिक्षा हमारा लक्ष्य है और न उसका बहुमान है। इसलिये जैन साहित्य कर उनके मिशन का काम आगे बढ़ा रहे हैं। हमारे पूर्वाचार्यों ने देने वाले तैयार किये जाते हैं। शिक्षा को दोष देना और उससे दूर संसार का एक सर्वोत्तम साहित्य होते हुए भी जगत् में उसे चाहिए तो संसार को संगठित करने के लिये सुंदर से सुंदर स्याद्वाद न्याय रहना समाज की उन्नति में बाधा पहुंचना है, इसलिये शिक्षा सेन वैसा उचित स्थान प्राप्त नहीं। इसलिये अब शीघ्र ही संसार की का निर्माण किया जिसको विदेशी विद्वान् Unifying force संसार घबराते हुए उसके लिये सुन्दर आयोजन करके, आदर्श प्रचलित भाषाओं में जैन धर्म के रहस्य को समझाने वाले की संगठन शक्ति कहते हैं। उनके अनुयायी आपस में संगठन नहीं शिक्षालय और शिक्षकालय स्थापित करके, आदर्श शिक्षकों को छोटे-छोटे निबन्ध, पुस्तिकाएँ और पुस्तकों का प्रकाशन करना साध सकते तो संसार को क्या संगठन का सबक सिखा सकेंगे और जीवनभरण पोषण की चिन्ता से मुक्त करके उनके द्वारा शिक्षा हमारी उन्नति का अपूर्व साधन है।
www.jainelibrary.org