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________________ 37 धर्म उद्योत लिए केवल एक ही वस्त्र रहने दिया था। इसी स्थिति में ठिठुरते ओर अशिक्षा, असंस्कार, कुसंस्कार, अधिविश्वास और रूढ़ियों प्रभावित हुए थे। उनके जीवन और कार्यों के अनन्य प्रशंसक थे। हुए बीजापुर पहुंचे। इस प्रकार के वस्त्रहीन, मात्र चोलपट्टाधारी का साम्राज्य फैला हुआ है। इसे दूर करने का आप लोगों ने कया जब मुनि ज्ञान सुन्दर जी को पता चला कि आचार्य विजय साधुओं को देखकर गांव वालों को बड़ा अचरज हुआ। जब वे गांव उपाय किया है? ज्ञान प्रचार के बिना यह भक्ति खोखली है। मुझे वल्लभ गोड़वाड़ क्षेत्र में विचरण कर विद्या प्रचारार्थ एक शिक्षण के बीच पहुंचे तो सेठ जवेरचंदजी ने आचार्य विजय वल्लभ को दूर अपनी भक्ति अपने नाम और यश की कामना नहीं है। मेरे समाज संस्था खोलने जा रहे हैं तब उनके हर्ष का ठिकाना न रहा। इस से ही पहचान लिया। वे दौड़ते हुए आए और चरणों में गिर पड़े में फैली अविद्या को मुझे दूर करना है। जैन समाज का एक भी कार्य के लिए सादडी संघ विशेष रूप से सक्रिय था। तन, मन, धन पूछा-'गुरुदेव, आपकी यह हालत।' बच्चा अशिक्षित न रहना चाहिए। मेरे लिए सभी स्थान और से पूर्णतया अर्पित। उस समय मुनिश्री ज्ञानसुंदर जी ने सादडी के उन्होंने मुस्कराते हुए कहा-कर्म सब कुछ करा सकता है। श्रावक एक से हैं। धर्मज्ञान का प्रचार, प्रसार एवं उद्योत अवश्य प्रबुद्ध धावकों पर एक प्रेरक पत्र लिखकर उत्साह बढ़ाया। जो पहले उपाश्रय बताओ। वहीं सब हाल सुनाएंगे। होना चाहिए अगर आप मेरे विचारों के अनुसार कार्य करना। आज भी उतना ही सामयिक, उपयोगी, प्रेरक एवं पठनीय है। उपाश्रय पहुंचे। सबसे पहले उस घायल राजपूत की दवा की चाहते हैं तो मैं यही चातुर्मास करने के लिए तैयार हूं।" पा प्रत्येक संघ एवं व्यक्ति के लिए यह पत्र अनुकरणीय और गयी। घरों में जाकर कपड़े बहोर लाए। आहार के बाद पूरा गांव आचरणीय है। पत्रांश उद्धत है। श्रावकों ने प्रसन्नता के साथ कहा "हम आपकी आज्ञा के पालन के लिए कटिबद्ध हैं। कृपया निर्देश दें हम क्या करें?" "यह अत्यन्त हर्ष का विषय है कि आपके संघ के प्रबल वल्लभ ने सारी घटना संक्षेप में सुना दी। पुण्यदेय से शासन दीपक, ज्ञान प्रचारक, अनुपमेय वक्ता, सर्वगुण आचार्य विजय वल्लभः "गोडवाड में एक महाविद्यालय की सम्पन्न पूज्य श्री जगद्ववल्लभ विजय जी म. सा. पधारे हैं। जो अत्यन्त आवश्यकता है। गोड़वाड़ के सभी छोटे बड़े गांवों और मरुभूमि में कल्पवृक्ष के समान हैं। जिसका इच्छित फल आप शहरों में उसकी शाखा एक पाठशाला के रूप में हो। उसमें अपने लोगों ने लिया है। उस महात्मा की जय ध्वनि आज भारत भूमि के बच्चों को धार्मिक एवं व्यावहारिक शिक्षा दिलाना प्रारंभ कोने-कोने में गूंज रही है।" कीजिए।" "कुछ समय पहले जगत् प्रसिद्ध, जगतोपकारी, आचार्य आचार्य विजय वल्लभ का चतुर्मास बीकानेर में लगभग सादड़ी के श्रावकों ने उनकी आज्ञा को शिरोधार्य किया। श्रीमद विजयानंद सूरीश्वर जी म. सा. राजस्थान, पंजाब आदि निश्चित हो गया था। कुछ साधुओं को उन्होंने आगे भेज भी दिया तत्काल सभा बुलाई गई और साठ हजार रुपये एकत्र कर दिये अनेक प्रान्तों में ज्ञान का बीज बो गए थे। आज उन्हीं के पदचिन्हों था। गये। उन्होंने आचार्य विजय वल्लभ से साठ हजार रुपये एकत्र पर चलते हुए उक्त महात्मा उस ज्ञान बीज को पल्लवित, पष्पित सादडी संघ के अत्यन्त आग्रह पर वे वहां पधारे। स्थानीय होने की बात कही और कुछ दिनों के बाद एक लाख पूरा करने की और फलित करने के लिए भगीरथ प्रयत्न कर रहे हैं।" श्रावकों ने चातुर्मास की आग्रहपूर्ण विनती की। जिम्मेदारी ली और जब चतुर्मास यहीं करने की प्रार्थना की। "आज जैन समाज में हजारों, लाखों ही नहीं बल्कि करोड़ों आचार्य विजय वल्लभः "बीकानेर में चातुर्मास कराने के आचार्य विजय वल्लभ सादड़ी के श्रावकों का इतना उत्साह रूपये धर्म के नाम पर व्यय हो रहे हैं पर जिससे समाज की उन्नति लिए सेठ सुमेरमलजी आदि बहुत वर्षों से आग्रह कर रहे हैं। वहां देखकर अत्यन्त प्रसन्न हुए। कहा-'तथास्तु। हो, देश की उन्नति हो, धर्म की प्रभावना, हो, विद्या का प्रचार हो, जाने से विद्या प्रचार के विशेष कार्य होने की संभावना है। आगे सुसंस्कारों का सिंचन हो, ऐसा एक भी कार्य दष्टि गोचर नहीं हो मुझे पंजाब भी जाना है। पंजाब के संघ पांच वर्षों से विनती कर रहा है। ऐसी स्थिति में पूज्य श्री विजय वल्लभजी म.का कार्य एवं विचार महान एवं सामयिक है। उनके कार्यों एवं विचारों से श्रावकः "क्या आप को बीकानेर और पंजाब के श्रावक ही समाज में नयी जागृति आई है कुछ चेतना का संचार हुआ है। अधिक प्रिय हैं। हमारी उपेक्षा तो आप इस प्रकार कर रहे हैं मानो इससे निस्संदेह भविष्य में समाज को महान लाभ मिलेगा। हम श्रावक ही न हों। हमें अपने धर्म और गुरुओं के प्रति मानों "आप लोगों को हृदय से धन्यवाद देता है कि उनके कोई अनुराग ही न हो" राजस्थान के जोधपुर और गोड़वाड़ क्षेत्र में एक महान समयानुरुप उपदेशों को क्रियान्वित कर अपनी चंचल लक्ष्मी का आचार्य विजय वल्लभः "यह तो आप लोगों का आग्रह ही प्रतिभा उदित हुई थी। इतिहास वेत्ता, और जैन दर्शन के प्रकाण्ड शासन सेवा में उपयोग कर रहे हैं। आशा है आप का उत्साह बता रहा है कि आप लोग देव गुरु के कितने अनन्य भक्त हैं। फिर विद्वान कवि, लेखक साहित्यकार मुनि ज्ञान सुंदरजी का व्यक्तित्व चिरंजीवी होगा। शास्त्रकारों ने भी दानों में ज्ञान दान श्रेष्ठ भी मैं कहना चाहंगा कि आप लोग अविद्या के पोषक हैं। आज बहु आयामी था। सब से बढ़कर वे समयज्ञ थे और आचार्य विजय कहा है। मोड़वाड़ समाज में विद्या प्रचार की कितनी आवश्यकता है। चारों वल्लभ के समकालीन थे। उनके विचारों और कार्यों से वे अत्यन्त "अन्त में एक उपयोगी सूचना करना चाहूंगा, उत्साह में Forte Segnale Only प्रेरणा स्रोत www.jainelibrary.com
SR No.012062
Book TitleAtmavallabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagatchandravijay, Nityanandvijay
PublisherAtmavallabh Sanskruti Mandir
Publication Year1989
Total Pages300
LanguageHindi, English, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size55 MB
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