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महावीर का संदेश
सोहनलालजी म. अपनी स्थिति समझते थे। वे मन से पहले
निजानंद की अनोखी मस्ती से बढ़े जा रहे हैं। ही हार चुके थे। आचार्य विजय वल्लभ की विद्वत्ता, प्रतिभा और
राजस्थान का वह अशिक्षित पिछड़ा इलाका था। 'बेड़ा गावं गहरायी से वे भलीभांति परिचित थे।
से आज प्रातः काल आचार्य विजय वल्लभ ने अपने शिष्यों के साथ उन्होंने श्रावकों से कहा-"एक प्रश्न है जाकर वल्लभ धर्मपुरी बडौदा नगरी में एक भव्य ऐतिहासिक महोत्सव बीजापुर के लिए बिहार किया। साथ में एक पथनिर्देशक राजपूत विजयजी से पूछो। वे इसका उत्तर नहीं दे पायेंगे। प्रश्न यह है । सम्पन्न हुआ था। प्रसंग था महावीर जयंती का। निश्रा थी प्रवर्तक ___था। आधा रास्ता कट गया, इतने में घनी झाडियों में से पांच-छह कि-आत्माराम जी म. ने "जैन तत्त्वादर्श' के बारहवें परिच्छेद
श्रीकांति विजयजी म. सा. की। मुख्य प्रवचनकार, वक्ता थे। मुंह ढके व्यक्ति निकले। हाथ में तलवार भाले और छुरे के साथ। में महानिशीथ सूत्र के तीसरे अध्ययन का पूजा विषयक जो पाठ आचार्य विजय वल्लभ सूरि। वैसा भव्य महोत्सव बडौदा के निःसंदेह वे लुटेरे थे। एक ने आगे बढ़कर कहा-खबरदार! आगे दिया है। वह सूत्र में कहां है? बताइए, वे पाठ बता न सकेंगे क्योंकि
इतिहास में न हुआ था न भविष्य में होने की कोई संभावना है बढ़ने की कोशिश मत करो। जो कुछ हो तुम्हारे पास हैं सूत्र में वह पाठ है ही नहीं? बस लोगों से कह देना कि इन की सारी
सैंकड़ों लोगों की उपस्थिति में आचार्य विजय बल्लभ ने जो प्रवचन हमारे हवाले कर दो।' बातें इसी प्रकार की मनगढ़त हैं। और वे तत्काल स्थानकवासी दिया था, अत्यन्त मार्मिक, मौलिक, प्रेरणाप्रद और व्यावहारिक आचार्य विजय वल्लभ ने समझाया-'हम साधु हैं। हमारे सम्प्रदाय के समर्थक हो जाएंगे।
था। विषय था "महावीर का संदेश"। कुछ अंश उद्धृत हैं। पास कुछ नहीं है? पैसे को छूते नहीं। भिक्षाचारी हैं।' जो इस शास्त्रार्थ की मुख्य भूमिका निभा रहा था वह • तत्त्वज्ञान का अभ्यास करो और अपने विचारों को निर्मल लुटेरों पर उसका कोई प्रभाव न पड़ा, और क्रुद्ध होकर सूरजनमल इस बात को सुनकर उछल पड़ा। और कल्पना में ही
रखने का प्रयत्न करो।
उन्होंने कहा-"बहाने मत बनाओ। जल्दी जो कुछ हो रख दो, देखने लगा कि विजय वल्लभ हार गए हैं और स्थानकवासी हो रहे • इस बात का निर्णय करो कि जीवन में छोड़ने योग्य क्या है? वर्ना ये तलवार किसी की शर्म नहीं करेगी।"
स्वीकार करने योग्य क्या है? और जानने योग्य क्या है?
__साथ में राजपूत सिपाही था अपने गुरुओं का अपमान होते वे सीधे विजय बल्लभ के पास पहुंचे। प्रवचन चल रहा था। अपनी शक्ति का विचार करो और शक्ति के अनुसार देख कर वह आपे से बाहर हो गया। उसने भी अपनी तलवार विशाल संख्या के सभी धर्मों के लोग तन्मय होकर वाणी का श्रवण उन्नतिपथ पर आगे बढ़ो।
निकाल ली। पर अफसोस! तलवार का वार करने से पहले ही एक कर रहे थे। सूरजनमल आदि लोग इतने खुश थे कि-किस तरह
उद्धार दूसरे लुटेरे ने उसके सिर में छरे का वार कर जमीन पर गिरा विवेक से बात करनी चाहिए वह भी भूल गये और आते ही केवल तम्हारे विचार, पुरुषार्थ और उद्योग पर निर्भर है। दिया। लुटेरों ने उसकी तलवार और कपड़े छीन लिए। सोहनलालजी म. का दिया हुआ ब्रह्मास्त्र छोड़ा। • यश, प्रतिष्ठा, सम्मान और इह लोक तथा परलोक की आशा
आचार्य विजय वल्लभ ने परिस्थिति की गंभीरता देखते हए श्रोताओं के श्रवण में व्यवधान पड़ा। सभी को उनका न करते हुए जितना श्रेष्ठ काम कर सकते हो करो।
अपने तन पर ओढ़ी कंबली, दूसरे छोटे बड़े वस्त्र मात्र चोलपट्टेको व्यवहार अखरा। आ. वि. वल्लभ ने प्रवचन रोका शांति और
हम क्या कर सकते हैं? इस प्रकार के निरर्थक विचार छोड़ो।
छोड़कर सभी उतार कर दे दिये। अन्य शिष्यों ने भी पुस्तकें और स्वस्थता पूर्वक मुस्कराते हुए जवाब दिया-'भाग्यशाली श्रावक!
पुरुषार्थ के लिए कटिबद्ध बनो। एक बड़ी सभा करो। सभी धर्मों के बड़े-बड़े विद्वानो को बुलाओ।
यदि गृहस्थ धर्म और साधु धर्म के मार्ग पर द्रव्य और भाव से
पात्र को छोड़कर सब कुछ दे दिया। उसमें हम वह पाठ दिखायेंगे यहां दिखावे से क्या लाभ?
शक्ति के अनुसार प्रयास करोगे तो मुक्तिपुरी में पहुंचे बिना न जब वे चले गये तो आचार्य विजय वल्लभ ने उस राजपूत को
रहोगे। श्रोताओं ने भी कहा-"ऐसा ही होना चाहिए।
देखा जो बेहोश जमीन पर पड़ा था। उसके सिर से खून बह रहा वीरता के कार्य कर हमें वीरपुत्र नाम सार्थक करना चाहिए। था। उन्होंने अपनी तर्पणी में जो पानी था, उस सिपाही के सिर पर समय और दिन निश्चित हुए। नगर के विशाल चौक में
यदि हम वीरता के कार्य न करें तो महावीर के चरित्र से हमें डाला। उसे होश आया। आंखें खोली और बोला-महाराज, शास्त्रार्थ होना निश्चय हुआ। आ. विजय वल्लभ यथा समय
कोई लाभ नहीं।
आपने मुझे बचा लिया वरना यहां मेरा कौन था।' पहुंच गये। सोहनलालजी स्वयं नहीं आए। अपने शिष्य को भेजा। आचार्य विजय वल्लभ ने उठकर उनका स्वागत किया।
तुम किसी प्रकार की चिन्ता न करो। हम तुम्हारे ही हैं। और सामने पाट पर बैठने के लिए विनती की। वह शिष्य उनकी
विजय वल्लभ ने सान्त्वना दी। शिष्टता से अत्यन्त प्रभावित हुआ और उनकी महानता के आगे
___ सबने मिलकर उसे उठाया। खून साफ किया गया। उसे पीड़ा उसका सर झुक गया। शिष्य ने शास्त्रार्थ करने से इन्कार कर
राहत मिली। सहारा लेकर वह धीरे-धीरे चला। दिया और लज्जित होकर चला गया। सूर्य के सामने जुगनू की क्या प्रातः काल का समय था। शीत ऋतु और ठंडी हवा। निर्जन जाड़े का मौसम था। ठंडी हवा चल रही थी। तीर की तरह हस्ती?
पथ। पथ के दाएं बाएं धनी झाड़ियां। पांच अणगार उस पथ पर हवा शरीर को चुभती थी। नंगे बदन। लुटेरों ने नग्नता ढंकने के।
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