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हमने भगवान महावीर को खोया है
हमारी आपसी फूट के कारण ही हम जैन-धर्म के सिद्धान्तों को विदेशों में फैलाना तोदर रहा.हिन्दस्तान के भी कई प्रान्तों में नहीं फैला सके। कई प्रान्त भारतवर्ष में ऐसे भी हैं, जहां जैन-धर्म का नाम तक लोग नही जानते। जैन धर्म के जीवन निर्माणकारी सुन्दर सिद्धान्तों और वृत्तों से भी वे लोग अपरिचित हैं। साधु-साध्वियों से भी वे बिलकुल अज्ञात हैं। जैन-धर्म का देश-विदेशों में प्रचार-प्रसार न होने में सभी फिरकों की एकता का न होना भी एक बड़ा कारण है।
एकता के बिना हमने क्या-क्या खोया है? इसका सही जवाब यदि मुझसे पूछे तो मैं यही कहूँगा कि हमने भगवान् महावीर को खोया है, जैन-धर्म को लज्जित किया है। आज दुनिया के अधिकांश लोग भगवान बुद्ध को जानते हैं, ईसामसीह के नाम से परिचित हैं, हजरत मुहम्मद का नाम जानते हैं, लेकिन जिन्होंने मानव जाति के सामने अहिंसा का उच्चतम प्रयोग स्वयं व संघ के माध्यम से करके रखा था, जिन्होंने स्त्री-पुरुष दोनों का समाज में नहीं, बल्कि धर्म-साधना और मोक्ष में भी समान अधिकार दिया था, शूद्र कहलाने वाले लोगों को उच्च-साधक तक बनने का अवसर प्रदान किया था, उन भगवान् महावीर से सभी बहुत ही कम परिचित हैं। इसका कारण जैनों की आपसी छिन्न-भिन्नता ही तो है। जैनों की संख्या एकदिन करोड़ों तक थी, वह आज घट कर लाखों तक आ गई है, इसका कारण हमारी फूट ही है।
श्री विजय वल्लभ सूरि