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________________ 26 समाजोत्थान के मल तत्त्व विजय वल्लभ सूरि समाजोत्थान की नींव कुछ मूल तत्त्वों पर आधारित है। समाजोद्धार की बातों में एक दसरे के प्रति वात्सल्य होने पर ही . जिनको अपनाए बिना समाजोत्थाम का काम ढीलाढाला और लोग दिलचस्पी लेंगे। समाज में पिछड़े-पददलित, असहाय, कच्चा रहेगा। उन मूल तत्त्वों पर हम क्रमशः विचार करेंगे:- अनाथ, अपाहिज एवं निर्धन व्यक्तियों के प्रति वात्सल्यभाव से प्रेरित होकर ही सम्पन्न लोग सामाजिक कप्रथाओं को सधारने के (1) धर्ममर्यादा पर चलना-शुद्ध और व्यापक धर्म समाज लिए प्रयत्नशील होंगे और वे उनकी सेवा करने की भावना में का प्राण है। उस धर्म की मर्यादाओं पर समाज का हर सदस्य चले। वृद्धि करेंगे।साधर्मी-वात्सल्य का मतलब है-समाज के पिछड़े, तभी समाज स्वस्थ और सुखी रह सकता है। जिस समाज में असहाय, निर्धन और बेरोजगार लोगों को रोजगार धंधे दिला धर्म-मर्यादाओं (नियमों व्रतों आदि) का पालन नहीं होता है, उसमें । कर, नौकरी दिला कर, सहयोग देकर अपनी बराबरी के बनाना। शीघ्र ही अव्यवस्था और अशान्ति फैलने लगती है। अपनी नामवरी और वाहवाही के लिए समाज के भाइयों को एक आज व्यवहार और धर्म को बिलकुल अलग-अलग मानने के रोज के लिए खिला देना और कभी मुसीबत पड़ने पर वे उन कारण समाज निर्जीव और धर्म निर्वीर्य हो गया है। धर्म को अपना सम्पन्न भाइयों के पास आ जाएँ तो भोजन कराना तो दूर रहा, पराक्रम दिखलाने का क्षेत्र तो समाज ही है। अकेले व्यक्ति के धक्के देकर या टका-सा जवाब देकर निकाल देना, उन्हें जीवन में धर्म हो और सारे समाज के जीवन में धर्म का वातावरण अपमानित कर देना क्या वास्तव में साधर्मीवात्सल्य है? न हो तो वह व्यक्तिगत धर्म भी तेजस्वी नहीं बनता, रूढ़िग्रस्त हो साधर्मीवात्सल्य का प्राचीन जवलन्त उदाहरण मांडवगढ़ का जाता है। इसलिए सामाजिक व्यवहार में हर कदम पर, हर मोड़ । दिया जा सकता है, वहाँ बसने के लिए जो कोई भी भाईजाता उसे । पर धर्म का पट होना चाहिए। धर्म से विरुद्ध कोई भी सामाजिक फी घर से एक-एक ईंट और एक-एक रुपया दिया जाता। इंटों कार्य या व्यवहार नहीं होना चाहिए।तभी समाजोत्थान की नींव से उसका रहने का मकान तैयार हो जाता और रुपयों से मजबूत होगी व्यापारधंधा चल जाता। इस प्रकार का समाजवात्सल्य प्राप्त (2) परस्पर संघ बना रहे-संघ ही समाज में संपत्ति की करने वाले आगुन्तक व्यक्ति भी समाज के उत्थान के कार्यों में वृद्धि कराने वाला होता है। समाज में संघ न होने पर आपसी दिल खोल कर देते थे। कलह, मनमुटाव, मतभेद और संघर्ष के कारण समाजोन्नति के हाँ, तो वात्सल्य का परस्पर आदान-प्रदान समाजोत्थान के कई महत्वपूर्ण काम ठप्प हो जाते हैं। समाज के सदस्यों की शक्ति कार्य को बहुत ही आसान और सुलभ बना देता है। संघ न होने से तितर-बितर होजाती हैं, जहाँ अच्छे कामों में शक्ति (4) सहयोग का आदान-प्रदान-समाज में विविध प्रकार की लगनी चाहिए. वहाँ नहीं लगती और व्यर्थ के कार्यों में लगेगी। शक्ति वाले लोग होते हैं। किसी के पास श्रम की शक्ति होती है, इसलिए संघ समाजोत्थान में एक महत्वपूर्ण कड़ी है। किसी के पास धन की। किसी के पास विद्या (ज्ञान) की और किसी (3) वात्सल्य का परस्पर आदान-प्रदान-समाज में परस्पर के पास शारीरिक बल होता है। परन्तु परस्पर सहयोग न होने से वात्सल्यभाव होगा तभी समाजोत्थान भलीभांति चल सकेगा। ये शब्द समाजोत्थान के कामों में कोई भी अपनी शक्ति का दान
SR No.012062
Book TitleAtmavallabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagatchandravijay, Nityanandvijay
PublisherAtmavallabh Sanskruti Mandir
Publication Year1989
Total Pages300
LanguageHindi, English, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size55 MB
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