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________________ मध्यम वर्ग एवं आचार्य विजय वल्लभ ऋषभदास रांका संसार में ऐसे महापुरुष हर जगह और हर क्षेत्र में होते आये आचार्य विजय वल्लभ सूरी जी महाराज के अन्तःकरण में करना चाहिए, यही मेरी हार्दिक इच्छा है। उस सभा में जैन हैं: जो दृष्टा होते हैं, समय की गति पहचान कर समाज का वर्तमान कितनी वेदना थी वह समय-समय पर उनके द्वारा दिये गये समाज में चलने वाले धर्म और संस्कृति के कार्यों की दिशा एवं भविष्य के लिए मार्गदर्शन करते हैं। आचार्य व्याख्यानों से स्पष्ट होती है। आचार्य श्री द्वारा अनुभूति के आधार बदलना, देवद्रव्य के उपयोग की योजना, जैन समाज के चारों विजयवल्लभसूरि भी ऐसे युगदृष्टाओं में से एक थे जिन्होंने जैन पर जैन श्वेताम्बर कांफ्रेन्स की स्वर्ण जयन्ती के अवसर पर दिया सम्प्रदायों को एकत्र करने की प्रेरणा दी। समाज को समय के अनुसार चलने का रास्ता बताया। गया भाषण अपने आप में उस समय की झलक स्पष्ट दर्शाता जिन छोटी-छोटी बातों को बड़ा रूप देकर हम आपस में उनका जन्म गुजरात में हुआ परन्तु उनका कार्यक्षेत्र केवल है: कलह कर रहे हैं उनमें अलग होकर यदि हम अपने मन, वचन गुजरात ही नहीं पंजाब, राजस्थान, गुजरात, तथा बम्बई बना। 'आज हजारों जैन परिवारों के पास पेट भर खा सके इतना और काया से, धन और शक्ति से समाज के उत्कर्ष में लग जायें तो उन्होंने जैन समाज को केवल उपदेश देने में ही अपने कर्तव्य की अन्न नहीं है और न पहनने के लिए पूरे कपड़े ही। बीमार की दवा समाज की संस्कार प्रवृत्तियों का सर्वोदय रूप प्रगट होगा। पूर्ति नहीं समझी पर ऐसे रचनात्मक कार्यों को उत्तेजित किया करने या बालकों को शिक्षा देने के लिए पास में पैसा नहीं है। खंडनात्मक मानस रचनात्मक कामों में लगा रहेग। कार्यकर्ताओं जिससे समाज विकास की ओर बढ़े। आज हमारे मध्यम श्रेणी के भाई-बहन दःखों की चक्की में पिस का जो समूह आज खड़ा हुआ है, उसका बल यदि सामाजिक ऐसे विशिष्ट महापरुषों का जीवन किसी खास मिशन के रहे हैं। भाईयों के पास थोड़े बहुत जेवर थे, वे बिक गये, अब परिवर्तन करने में सैनिक की तरह अनशासनबद्ध विद्यार्थियों के लिए होता है। जब हम आचार्य श्री के जीवन का गहराई से बर्तन के बेचने की नौबत आ गई है। कुछ तो बुःख और आफत के समान प्रगतिशील रहेगा तो ये भाई समाज परिवर्तन की नींव के अध्ययन करते हैं तो उनका मिशन भगवान महावीर के 'पढम मारे आत्महत्या की परिस्थति तक पहुँच गये हैं। वे जो हमारे पत्थर बनकर भव्य भवन निर्माण करने में समर्थ होंगे। नाण तओ दया' के सूत्र के अनुसार समाज में ज्ञान का प्रसार का भाई बहिन है और उनकी दशा सुधारना जरूरी है। यदि मध्यम कितनी यथार्थ बात कही थी आचार्य श्री ने जो आज भी था। उन्होंने पंजाब से लगा कर राजस्थान, गुजरात और बम्बई वा माज कर आर अपना सा वर्ग मौज करे और अपने साधर्मी भाई भूखों मरे यह सामाजिक हमारा दिशा-दर्शन करती है। में अनेक शिक्षण संस्थाओं की स्थापना कर शिक्षा-क्षेत्र में अदभत न्याय नहीं है कित अन्याय है।" आज जब सभी राष्ट्र परस्पर मित्रता करने की बातें सोचते काम किया। ज्ञान का प्रचार किया और शिक्षा के क्षेत्र में समाज "क्या हम अपने बेकार भाई-बहिनों को रोजी-रोटी नहीं हैं। और विश्वशांति की बातें चल रही हैं ऐसी स्थिति में यह छोटा को जागति लाना व उससे लाभान्वित करना आपका मुख्य ध्येय देंगे? यदि यह भी न कर पाये तो समाज का उत्कर्ष कैसा होगा? सा, कित शक्तिशाली व समाज सम्पन्न फिरकेबन्दी से था इस समय आचार्य श्री ने जैन शासन के लिए जो किया वह और बिना समाज के उत्कर्ष के धर्म की ज्योति कैसे चलेगी?" निकल कर चारों फिरकों का संगठन करे तो जैन समाज इनके समकक्ष अन्य आचार्यों ने किया हो ऐसा दिखाई नहीं देता। अपनी इसी प्रभावना के फलस्वरूप आचार्य श्री के संकल्प से में नवीन प्राण-प्रतिष्ठा हो। और चारों फिरके नेता एक नई पीढ़ी को शिक्षा देकर उसकी मौलिक जरूरतों को पूरी समाज के उत्साही वर्ग ने आचार्य श्री के आहवान को स्वीकारा जगह यदि बैठकर समाज उन्नति की योजना बनावे तो यह करना तथा आध्यात्मिक भावना जगने का प्रयत्न हआ वैसे ही जो और श्रावक श्राविकाओं के उत्कर्ष के लिए जैन गह उद्योग की कार्य भी कठिन नहीं होगा। लोग पढ़े लिखे नहीं हो उनकी भौतिक सांसारिक समस्याओं को स्थापना की गई। इस उद्योग की प्रारम्भ पूंजी 5 लाख रुपये थी, उन्होंने कहा था कि-मेरी अन्तिम बात सुन प्रयत्न कर सुलझाने की जरूत को भी आचार्य श्री ने समझा। जो आचार्य श्री का लक्ष्य था। लो-आत्मकल्याण के लिए साध धर्म स्वीकार करने वाले मेरे खासकर मध्यम स्थिति के तथा निचली श्रेणी के लोगों की बढ़ती 29 मार्च 1953 को गलालवाड़ी में सभी सम्प्रदाय के जैनियों समान आत्माओं के लिए जीवन-मरण समान ही होता है। मैंने जो हुई महंगाई में स्वाभिमानपूर्वक सहायता मिल सके इसलिए की सभा बलाई गई जिसमें आचार्य श्री ने कहा कि, जैन समाज के जाना, विचारा, हृदय में धारण किया उसके अनुसार उसका शिक्षा प्रचार के साथ-उद्योगगृहों की स्थापना को प्रेरणा भी दी चारों सम्प्रदायों को भगवान महावीर के झण्डे के नीचे जमा होकर मूल्यांकन कर उसका आचरण कर अनसरण करें। मेरी यही गई। सारे संसार में अहिंसा और सत्य की सगन्ध फैलाने का प्रयत्न कामना है।
SR No.012062
Book TitleAtmavallabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagatchandravijay, Nityanandvijay
PublisherAtmavallabh Sanskruti Mandir
Publication Year1989
Total Pages300
LanguageHindi, English, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size55 MB
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