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________________ वर्तमान शती में जिन महापुरुषों ने भारत को विभूषित किया उनमें एक नाम बड़ी श्रद्धा, आदर, भक्ति एवं गौरव के साथ स्मरण किया जाता है, वह है पंजाब केसरी, युगवीर आचार्य श्रीमद् विजय वल्लभ सूरीश्वरजी म.सा.. धार्मिक क्षेत्र में ही नहीं वरन् सामाजिक, सांस्कृतिक एवं राष्ट्रीय क्षेत्रों के लिए भी यह नाम गौरवस्पद है। विजय वल्लभ का व्यक्तित्व व्यापक, सर्वक्षेत्रीय एवं सर्वकालिक है। उनके जीवन और कार्य के विषय में बहुत कुछ लिखा और कहा गया है। यहां उनके व्यक्तित्व के कुछ अनछुए पक्षों को उजागर किया गया है। जन्म और दीक्षा हम मातृत्व को इसलिए वंदन करते हैं कि वह महापुरुषों की जन्म दात्री है। हम पर जितने उपकार विजयवल्लभके हैं उतने ही। माता इच्छाबाई के भी हैं। आश्चर्य की बात यह है कि फल को तो सब याद करते हैं; पर कली को कोई याद नहीं करता। लोग यह भूल जाते हैं कि फूल का अस्तित्व कली पर निर्भर है। जो परिवार जिन शासन को पूर्णतया समर्पित होते हैं उनकी । सदैव यह भावना रहती है कि हमारे परिवार से कोई जिनशासन को समर्पित हो जाए। ऐसे परिवार गजरात में आज भी विद्यमान हेमचन्द्राचार्य की माता पाहिनी से आचार्य देवचन्द्र सरि ने चांगदेव को जिनशासन को देने के लिए कहा और उसी समय गोद में खेल रहे चांगदेव को उठाकर पाहिनी ने गरु को दे दिया। चांग उसका एक मात्र पुत्र था। यहां तक कि पति की भी उसने अनुमति नहीं ली। माता पाहिनी अपने देव, गुरू और धर्म के प्रति अपने शासन के प्रति कितनी समर्पित होगी। यह अकथय एवं । अचिन्त्य है। जगदगुरु हीर सूरि म. की माता नाथीबाई ने अपने हृदय के । टुकड़े को गुरु को बोहराते हुए कहा था कोई रे बोहरावे थाने लाडवा, कोई रे बोहरावे थाने दूध। कोई रे बोहरावे थाने कापड़ा, नाथीबाई बोहरावे थाने पूत।। गुरुजी, आपको कोई कपड़े बोहराता है, कोई लड्डू बोहराता है, कोई दूध बोहराता है, पर यह नाथीबाई अपना लाड़ला पुत्र । बोहरा रही है। मेवे-मिठाई और कपड़े-द्ध की तरह अपने । वल्लभ एक सर्वदेशीय व्यक्तित्व -मुनि जयानन्द विजय in Education intonas For PVC Foare Only www.janelibrary.org
SR No.012062
Book TitleAtmavallabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagatchandravijay, Nityanandvijay
PublisherAtmavallabh Sanskruti Mandir
Publication Year1989
Total Pages300
LanguageHindi, English, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size55 MB
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