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________________ - 12 समन्वयवादी आचार्य विजयवल्लभ सरि वल्लभ गुरु गुण मुक्तक -आचार्य तुलसी भगवान महावीर का शासन समता का शासन है। समता यानि। अहिंसा यानि समता। विषमता की परिसमाप्ति अहिंसा के बिना संभव नहीं हो सकती। अनेकान्त समता का समग्र दर्शन है। उसके द्वारा अनन्त धर्मों में सत्य को अनन्त दृष्टिकोण से देखने की पद्धति प्राप्त होती है। यही समन्वय का दृष्टिकोण है। जैन शासन में समन्वय की परम्परा दीर्घकालीन है। उसकी प्रेरणा, अहिंसा और अनेकान्त है। सिद्धसैन, समंतभद्र, अकलंक, हरिभद्र, हेमचन्द्र, आदि महान् आचार्यों ने उसकी परम्परा को बहुत ही विकसित और पुष्ट किया है। इस परम्परा में अन्य अनेक समन्वयवादी आचार्य विजयवल्लभसरी भी उसी परम्परा में एक थे। उनका दृष्टिकोण बहुत उदार और व्यापक था। मैं उनसे मिला हूँ। हमारा मिलन मात्र व्याहारिक नहीं था, आन्तरिक था। हम दोनों ने एक दूसरे के हृदय को पहचानने का प्रयत्न किया। आखिर हमने पाया कि हम दोनों एक ही दिशा की ओर चलने वाले पथिक हैं। इस काल में धर्म में संगठन की बहतु अपेक्षा है। उसके अभाव में उसकी शक्ति बढ़ नहीं रही है।जो हैं। वह भी पूर्ण रूपेण उपयोग में नहीं आ रही है। एक और एक के बीच का अर्धविराम हटने पर एक साथ शक्ति बढ़ जाती है। जैन शासन की एकता या संगठन का अर्थ यह नहीं है कि सब गच्छ या गण एक ही नेतृत्व में आ जाएं। यदि आ जाएं तो वह दिन जैन शासन के इतिहास में अपूर्व होगा, किन्त उसकी अभी कोई संभावना दिखाई नहीं देती। वर्तमान में एकता या संगठन का अर्थ इतना अवश्य है कि प्रत्येक जैन सम्प्रदाय अपने को जैन शासन महावृक्ष की एक शाखा माने और दूसरी शाखाओं के प्रति सौहार्दपूर्ण दृष्टिकोण और व्यवहार करे। जैन शासन के मौनिक हितों में सब समस्वर और समप्रयत्न हों। मुझे इस बात की प्रसन्नता है कि आज सबका चितन इस दिशा में चल रहा है। नगरी बड़ौदा जन्म घर दीपचन्द माता इच्छा हरषाये चारों और आनन्द गुरुदेव। तेरी महिमा का क्या गुण गाए उस दिन पढ़ गये फिके तारे और चन्द (1) तू था गुजरात का एक महान लाल फिर भी अधिक रही पंजाब की ओर चाल जीवन संध्या तक गुरु आत्म पथ पर चलते देकर महान समुद्र छोड़ी बम्बई में तन की जाल (2) मन्दिर शिक्षा रसार का दिया आतम ने सन्देश किया तुमने पूर्ण उसे त्रुटी न आने दी लेश अमृत सी वाणी में तुम्हारा यही था कहना हो शिक्षा उत्थान सहधर्मियों का समाज में न क्लेश (3) गुजरात घराने दिया था एक रत्न जिसने किया रोशन कुल और वतन गुरुवर वल्लभ तू अमर है युग युगों तक चाहें तो जाएं चांद और तारों का पतन। (4) वल्लभ स्मारक उद्घाटन का यह पुनीत वर्ष है। श्री संघ में छाया आनंद और अपार हर्ष है केवल उनके गुणगान से ही क्या होगा? जबकि उनके आदर्शों से पायान चरमोत्कर्ष है। गणि वीरेन्द्र विजय POT PVC Polen www.jainelibrary.org
SR No.012062
Book TitleAtmavallabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagatchandravijay, Nityanandvijay
PublisherAtmavallabh Sanskruti Mandir
Publication Year1989
Total Pages300
LanguageHindi, English, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size55 MB
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