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________________ Jain Educat अध्यात्म जगत की ज्योति विद्या बहन शाह इस जगत में अनेकों जीव अवतार धारण करके वियोग को प्राप्त हुए हैं परन्तु उसी भव्य जीव को धन्य है जो जगत में अपनी अमर कीर्ति छोड़ जाते हैं। ऐसी ही अध्यात्म जगत की जगमगाती ज्योति कर्मयोगिनी जिन्होंने स्वयं अपना आत्म स्वरूप प्रगट कर विश्व में विश्व / वात्सल्य के पवित्र परमाणु फैलाए हैं, ऐसी दिव्य विभूति पूज्य मृगावती जी महाराज के देह विलय से केवल जैन-जगत को ही नहीं अपितु समस्त विश्व के शांति प्रिय समाजों को न पूरी की जा सके ऐसी असह्य क्षति हुई है। पू. साध्वी जी महाराज समस्त जैन जगत में एक अनमोल, निग्रंथ साध्वी रत्न थीं। उन्होंने जैनागमों का गहन अभ्यास करके उनके सिद्धान्तों के रहस्यों को हृदय में उतार कर प्रचार एवं प्रसार किया। पू. साध्वी जी महाराज के बहुमुखी आध्यात्मिक आरोहण (विकास) में क्षमा भाव, सरलता, ऋजुता, आचार निष्ठा और शासन के प्रति समर्पण भाव के आश्चर्यजनक मात्रा में दर्शन होते थे। सहजात्मानंदी पू. महासती जी श्रमण संस्कृति के संरक्षक और संवर्धक थे। उनकी वाणी में मधुरता, आंखों में प्यार और जीवन में करुणा भरी हुई थी। आपके विचारों में विश्वमंगल की भावना लहराती थी। आपका चिंतन मनन अपने लिए ही नहीं परन्तु सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय था। अपने निवृति योग की गहराई से धर्मक्रन्ति के कदम कदम पर प्रवृत्ति योग की क्रान्ति पैदा करने में आप चेतनवत प्रणेता थे। आप में प्रस्फुरित ज्ञान प्रकाश जगत और शासन को ज्योतिमान करता था। आपके विचार संकीर्ण अथवा साम्प्रदायिक नहीं थे। आप में पूर्वाग्रह, अहं, मिथ्याभिमान या स्वख्याति की आकांक्षा For Private & Personal Use Only नहीं थी। महान आत्मा होने के कारण आप में सब धर्मों के प्रति समभाव, सम्मान और मैत्रीभाव के अलौकिक योग का मंगल मिलन था। पूज्य तारक साध्वी जी महाराज जीवन के अन्तिम क्षण तक देह दर्द से जूझते होने पर भी उनकी आत्मा आत्मभाव को नहीं भूलती थी। देह दर्द को सहन करता था और उनका हृदय पंचपरमेष्ठी को वंदन करता था। इस प्रकार मृत्यु को ललकारते हुए संसार को ज्ञान तेज से ज्योतिर्मय करके सौराष्ट्र की संतप्रसूता भूमि पर जन्मी कर्मयोगिनी पू. महासती जी मृत्यु को महोत्सव' बना कर सदा सदा के लिए अनन्त में विलीन हो गए हैं। वास्तव में इस महान आत्मा ने जितना जीवन से समझाया है उससे भी अधिक मृत्यु से समझा दिया है। ऐसा एक विश्व शांति का वटवृक्ष और शासन की धुवतारिका ने अपने कुल 63 वर्ष की आयु में 48 वर्ष को उज्जवल, अति उज्जवल और समुज्जवल दीक्षा प्रर्याय की साधना साधी पू. गुरुणी जी महाराज जिन पर सरस्वती माता यानि जिनवाणी प्रसन्न थी ऐसी ज्ञान शक्ति और स्मरणशक्ति की साक्षात् मूर्ति अपने स्वस्वरूप में लीन हो गई है, ऐसी मंगल मूर्ति को मेरा शत-शतः कोटि-कोटि वंदन । योगिनी के महान प्रयासों से निर्मित वल्लभ स्मारक की सर्वजन मेरी परम कृपालु परमात्मा से नम्र प्रार्थना है कि आध्यात्मिक हिताय प्रवृत्तियां अविरल प्रगति करती रहें, और पू. साध्वी जी महाराज द्वारा साकार किए स्वप्नों को सफलतापूर्वक विश्व समक्ष पेश करके उनकी स्मृति के सच्चे हकदार बनने में और उनके निष्ठानवान कर्तव्यपरायण और निस्वार्थ संचालकों कार्यकर्ताओं को तथा मुझे अपूर्व बल प्राप्त हो ऐसी मंगल भावना के साथ। www.jainelibrary.com
SR No.012062
Book TitleAtmavallabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagatchandravijay, Nityanandvijay
PublisherAtmavallabh Sanskruti Mandir
Publication Year1989
Total Pages300
LanguageHindi, English, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size55 MB
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