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________________ महत्तराजी - नियमावली और विशेषताएँ आर्या सुव्रता श्री नियामावली 1. आजीवन खादी धारण करना, जो खादी पहने उसी से बहरना ( स्वीकार करना) । 2. गृहस्थ के घर में, सारा दिन गोचरी एक बार जाना। 3. जहां चौमासा करें वहां से जरूरियात की चीजें लेना, लेना पड़े तो अल्प परिमित ही लेना । 4. प्रतिक्रमण में छः आवश्यक तक मौन रखना। 5. रात को प्रतिक्रमण के पश्चात भाइयों को नहीं मिलना। 6. प्रात: नवकारसी तक, दोपहर को 12 से 3 बजे तक मौन में रहना। दिन में दो प्रहर छः घन्टे मौन करना। 7. रात को व्याख्यान नहीं करना व किसी उत्सव में शामिल नहीं होना। 8. अपने समाचार न खुद लिखने और न अपनी छोटी साध्वियों से लिखवाना, न श्रावक-श्राविकाओं से लिखवाना । 9. दान के लिये कसी को जबरदस्ती व आग्रह नहीं करना। 10. पत्र व्यवहार अति अल्प रखना। 11. 50 वर्ष की उम्र तक अकेले फोटो नहीं खिचवाने का नियम । 50 वर्ष की उम्र तक किसी भी शहर गांव में प्रवेशमय बैंड बाजा बंद का नियम (सन् 1952 प्रवेश समय लुधियाना श्री संघ द्वारा बैंड बाजा को देखकर जब छोटे गांव वाले भी बैंड बाजा बजाने लगे तब उस फिजूल खर्ची को बंद करने के लिये यह नियम लिया)। - Jain Education International सोना। प्रात: चाहे विहार हो सब करके ही विहार करना। 17. चार बजे उठना, 10 बजे सोना। 18. गर्मी के दो महीने छोड़ कर दिन में नहीं सोना। 19. जब भी कोई नया पाठ लेना हो गुरु महाराज की फोटो के सामने लघु शिष्य बनकर विनयपूर्वक पाठ लेना जैसे गुरु से शिष्य पाठ लेता है। 20. व्रत पच्चखान, नियमों के लिए भी कोई जबरदस्ती नहीं, प्रेमपूर्वक उसे समझाना क्योंकि दिल से दिया दान और दिल से किया पच्चखान ही स्थायी रहता है। धर्म थोपा नहीं जा सकता, सहज उत्पन्न किया जा सकता है। 21. विहार में श्रीसंघ का कोई खर्चा नहीं करवाना। बिहार में श्रीसंघ की अंधाधुंध फिजूलखर्ची बंद करने के लिये यह नियम लिया। 22. 18 साल की उम्र में उन्होंने पच्चखान लिया था मुझे दो ही शिष्याएं बनानी हैं चाहते तो उनकी 40 शिष्याएं एम.ए., पी. एच. डी. शिक्षित बहनें दीक्षा लेने को तत्पर थीं परन्तु उनको दूसरे गुरु महाराज का नाम देकर कहते अमुक-अमुक महाराज के पास दीक्षा ले लो। जिसे भी दीक्षा दी पांच वर्ष अपने साथ रखा और पच्चखान दिया कि बिल्कुल साधु वृत्ति में ही रहना है। रुपये-पैसे को हाथ नहीं लगाना किसी भी गृहस्थ के घर जीमने जाये वह श्रावक हाथ में रुपये दे या कोई भी चीजें दें, उसे न ले। उससे उस दीक्षार्थी और गुरु का तेज बढ़ता है। 12. प्रतिदिन १०० गाथा का स्वाध्याय अवश्य करना । 13. सांय प्रतिक्रमण इकट्ठे करना। 23. नयी दीक्षित साध्वी को 10 वर्ष पर्यन्त गोचरी नहीं जाने देना, ज्ञान, ध्यान, स्वाध्याय, मौन, विनय विवेक सिखाना । 14. हमेशा गोचरी इकट्ठे करना • कभी भी उन्होंने गोचरी 24. अपने नाम से कोई लेटर पेड़, अन्तर्देशीय, कार्ड, पत्र वगैरह अकेले नही की। नहीं छपवाना। क्षमापना दीपावली आदि किसी भी उत्सव के कार्ड छपवाना नहीं। फिजूलखर्ची बंद करना। 15. पार्सल करवाना नहीं और न ही पार्सल मंगवाना। 16. सब कार्य, साधना, आराधना समय पर करना, प्रातः का माला जाप प्रातः, शाम का माला जाप शाम को करके ही 25. भगवान महावीर 25सौवीं निर्वाण शताब्दी की यादगार के उपलक्ष्य में बाजार की चीजों का जीवन पर्यन्त त्याग । For Private & Personal Use Only स्वभावगत विशेषताएँ 1. विद्वानों, कलाकारों, शिक्षितों, संस्कृतज्ञों का सन्मान, बहुमान करना, विद्यार्थियों को पढ़ाना, मदद करना। दीन दुःखी, रोगी, बेसहारों की मदद करना । दवाइयों की अपेक्षा प्रभु प्रार्थना, जनता की दुआ, शुभ भावना पर अटूट विश्वास । 2. 3. 4. 5. 6. किसी की भी एकदम प्रशंसा नहीं न एकदम निन्दा । हमेशा प्रसन्न रहना व सत्प्रवृत्तियों में लगे रहना। अन्धविश्वास, वहम, कुरूढ़ियों से दूर रहना, संघ और समाज को फिजूल खर्चों से दूर रखना। 7. हर कार्य को पूरे दिल से करना। हाथ में लिया काम सम्पन्न करके ही चैन लेना। 8. इतना ज्ञान, सफलताएं, कीर्ति होने पर भी निरभिमान वृत्ति, सरलता, समता और स्वाभाविकता के ताने बाने से बुना हुआ जीवन । 9. व्यक्ति की पारदर्शक परख, तुरन्त निर्णयशक्ति, दृढ़ संकल्प शक्ति, जिन्दादिली, आशावादी दृष्टिकोण। 10. दूसरों के विचारों, तर्कों, बातों को सुनने की धीरज और उसका योग्य समाधान। 11. गलत, असत्य, अन्याय का प्रतिकार उसके लिए पुण्य प्रकोप भी करना पड़े तो करना चाहिए। अहिंसक, प्रतिकार, गांधी जी का प्रभाव। 12. तेजपूर्वक जीना, तेज नहीं खोना, प्राण देकर भी प्रण रखना। 13. किसी भी देश, प्रांत, जाति, लिंग, उम्र, स्वभाव व्यसन का व्यक्ति सामने आए गुण के दरवाजे से उसके हृदय गुफा में प्रवेश पा जाना और उसे अपना बना लेना। दूसरों के लिए सहिष्णु बनना और उसे प्रेम, सहृदयता, आत्मीयता देना। 14. कृत्रिमता, बनावट, दिखावा, आडम्बर औपचारिकता से लाखों खर्च ने पर भी उनको कोई स्वार्थपरक भावना से अभिमान से पाना चाहे, मन चाहा मोड़ना चाहे, अपने जैसा बनाना चाहे यह असम्भव था। उनको आत्मीयता, निश्छल प्रेम, निर्मल श्रद्धा, शुद्ध हृदय सर्वात्मना समर्पण के अजन प्रवाह में सहज में ही पाया जा सकता था। www.jainlibrary.or
SR No.012062
Book TitleAtmavallabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagatchandravijay, Nityanandvijay
PublisherAtmavallabh Sanskruti Mandir
Publication Year1989
Total Pages300
LanguageHindi, English, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size55 MB
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