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________________ था कि हमें समाज का उत्थान करना है। एक-एक व्यक्ति अपने इतनी महान आत्मा जिसको संसार पूजता है, जिनके उपकारों का संस्कार उन्होंने चेंज किये। अपने नजदीक लाकर, प्यार देकर। हृदय को टटोल कर देख सकता है कि उस पर उनकी कितनी कृपा बदला हम चुका नहीं सकते। मैं समझता हूं कि विजय वल्लभ सूरि उन्होंने कभी नहीं कहा दरवाजे के अन्दर घुसते ही कि भाई आलू रही है। कौन ऐसा व्यक्ति है-बाल, वृद्ध, जवान, स्त्री, पुरुष जो जी महाराज की डायरेक्ट-सीधी याद किसी के ऊपर हाथ है तो खाते हो? नियम लो। मंदिर नहीं जाते हो? नियम लो, कभी नहीं उनकी कृपा से लाभान्वित न हुआ हो जो वंचित रहा हो। ऐसी वह है हमारे साध्वी मृगावती जी महाराज। ऐसी महान आत्मा के कहा। व्यक्ति को नजदीक लाये, बालक भी नजदीक आये, बहनें महान आत्मा हमारे अन्दर से चली गयी हैं। हम सोचते हैं कि लिए हम कुछ तो सोचें। कोई ऐसा स्थान हो, इस स्मारक भूमि में भी नजदीक आयीं, पढ़े-लिखे नजदीक आये, अशिक्षित नजदीक उनकी याद में कोई चीज बनाये लेकिन एक बात है महाराज दाखिल होते ही उस जगह के दर्शन हो सकें। आप पद्यावती के आये। फिर क्या हुआ जब श्रद्धाभाव पैदा हुआ तो एक-एक साहब ने जीवन में अपना एक लक्ष्य रखा था कि मुझे सादगी मंदिर पर जाएं तो आपको दर्शन हो जाएं। आप गेट के अंदर आयें व्यक्ति अपने हृदय को, अपनी सर्व सम्पत्ति को समर्पित करने के पसन्द है, मुझे आडम्बर पसन्द नहीं है तो उसी के अनुरूप कोई तो आपको दर्शन हो जाएं, आप भव्य स्मारक में से बाहिर निकलें, लिए तैयार हो गया। उसी का यह एक नमूना है कि आज इतना बात हम सोचेंगे। वह कहा करते थे कि अरण्य हो, कोई छोटा बन अन्दर आयें तो आपको दर्शन हो जायें। इस महान विभूति की बड़ा स्मारक बन रहा है ऐसी महान विभूति हमारे बीच से चली हो, झाड़ हो, छुपी हुई कोई जगह हो, उस में निहित बैठ कर, कोई जगह ऐसी होनी चाहिए। इसीलिए संघ ने निर्णय किया कि उनकी गयीं। उनकी याद में हम कुछ न कुछ जरूर बनायेंगे। सुन्दर छुप कर आराधना कर सके, साधना कर सके और ऐसा वन का अन्त्येष्टि यहां पर पास में जो चबूतरा बनाया गया है वहां पर की बनायेंगे। जो उनको रुचिकर लगता था वह बनायेंगे। ऐसी कोई दृश्य हो मुझे तो ऐसी जगह अच्छी लगती है। हो सकता है जायेगी। योजना बनेगी। इस में कुछ चाल होने वाला है। श्रद्धांजलियों के उनकी भावना के अनुरूप हम परामर्श करेंगे, श्री सव्रता श्री भाइयो और बहिनों! हमारा दुर्भाग्य था, घटना चक्र कुछ बीच में उसकी रूपरेखा मैं आपके सामने रखंगा। अभी महाराज जी से कि उनकी क्या-क्या भावनाएं थीं, उनके अनुसार अजीब हो गया है, हम उनके उपकारों को भूल नहीं सकते. श्रद्धांजलियों का कार्यक्रम होगा। इससे पहले मैं अर्ज करूंगा श्री उनके लिए कोई छोटी सी सुन्दर रम्य, सरम्य चीज जहाँ पर एक-एक बात में हम उनसे परामर्श किया करते थे। वह जैन नरेन्द्र प्रकाश मोती लाल, बनारसी दास से। वह सेवा में बहत लगे हमारी आने वाली पीढ़ियाँ, आप सब लोग आकर अपनी आत्मा साध्वी क्या थी? वह तो मानो किसी बड़े-बड़े समाट् और रहे, कभी अपने आफिस में, दुकान में बैठ करके एक मिनट किसी को सन्तोष दे सकें। उनको कोई बड़े भवन से या बड़ी समाधि से बड़े-बड़े आचार्य से ज्यादा बद्धि रखने वाली एक महान विभूति तरफ देखा नहीं। महीनों से, सुबह-शाम और आज कल तो दिन कोई प्यार नहीं था। उनको प्यार था आत्मा के उत्थान से। उसके थी। उनको पता था कि शासन कैसे चलया जाता है। एक-एक में चार बार और अन्तिम दिनों में रात्रि को यहां सोना, यह उन्होंने लिये वह स्थान चाहते थे। आप जानते हैं श्री सृज्येष्ठा श्री जी भाई-बहिन के हृदय को उन्होंने जीता हुआ था। अभी चार-पांच नियम बना रखा था और उनके घर से अनुराधा बहन, उनकी महाराज इन की बहुत सेवा किया करते थे। जब उनका देवलोक महीने पहले मैं बम्बई गया श्वेताम्बर जैन कॉफ्रेंस में उनकी माता चाई जी, जो उन्होंने सेवा की उसकी मिशाल नहीं मिल हुआ तो उनके लिए उन्होंने कहा एक छोटी सी जगह कोई ऐसी स्टेडिंग कमेटी का अधिवेशन था। आचार्य भगवान श्री इन्द्र सूरि सकती। एक हमारे भाई मनमोहन जी जो लाला अभय शाह जी बनाओ जहां पर उनकी ऐसी याद रह जाए, उनके जीवन का जी महाराज वहाँ मौजूद थे, बहुत सी बातें हुई। मैंने एक बात कही के लड़के हैं उन्हें कितना दौड़ा लीजिए, काम में कभी कसर नहीं मिशन था, सेवा, साधना और समर्पण, यही वहां लिख देना, वह कि साध्वी मृगावती श्री जी महाराज का काम करने का ढंग छोड़ते। जो चीज नहीं मिल सकती, उसको ढूंढ कर लाते हैं। ऐसे यही कहा करते थे। ऐसे ही उनके अपने भाव थे। कई बार ऐसा बिल्कुल अद्भुत है। पैसा उन्होंने कभी मांगा नहीं। उन्होंने ही कुछ लोगों की हिम्मत के कारण ही, उनकी सेवा हो सकी और कहा कि भाई ऐसा करना मेरे को तो श्री सुज्येष्ठा श्री जी महाराज एक-एक व्यक्ति के हृदय को जीता है। जो बालक आज का पढ़ा इस काम का निर्माण हो रहा है। के आसपास कहीं लिटा देना और कुछ मत करना। हमने सोचा हआ है, पाश्चात्य शिक्षा का जिस प्रकार प्रभाव है. उसके भी राजकुमार जैन युग को देखें किसी भी नई बात को देखकर घबडाएं नहीं। शांति से परस्पर बैठकर ठंडे दिल-दिमाग से द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव और परिस्थिति एवं समाज के हिताहित का विचार करें और साथ ही देखें यग के प्रवाह को। इससे सत्यता अपने आप सामने आ जाएगी। -विजय वल्लभ सरि Jain.Educe
SR No.012062
Book TitleAtmavallabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagatchandravijay, Nityanandvijay
PublisherAtmavallabh Sanskruti Mandir
Publication Year1989
Total Pages300
LanguageHindi, English, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size55 MB
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