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________________ चलने दिया। अन्तिम घड़ियों में भी उन्होंने कहा मेरे ऊपर जो उनको पीड़ा हो रही है, उनको ड्राउजीनैस है), उठकर चैतन्य का, पूरे धाम का नाम लिखा था। जितना परिपेक्ष्य है, वह सब कष्ट हैं, मैं इसी शरीर के माध्यम से उसको छोड़ कर जाना होकर बैठ गये। समाधि लगा ली। सामने शंखेश्वर दादा की उसमें बताया हुआ था, और कहा अनन्त काम करने वाली है, चाहती है, साथ नहीं ले जाना चाहती है। इसीलिए उन्होंने बताया फोटो लगी हुई थी, उनके सामने बैठ गए और कहा कि मेरे शरीर अनन्त उपाकार करने वाली है, जिसको आशीर्वाद देती हैं, उसका नहीं। लेकिन जब समाज को पता चला तो उनका इलाज किया को मत छूना। चारों आहार का परित्याग कर दिया और दवा दारू दुःख हर करके उसकी पीड़ा अपने ऊपर ले लेती हैं। (मैंने गया और पांच वर्ष तक वह निरन्तर ठीक रहे और उसके पश्चात् नहीं ली। कहा, मुझे कोई सहारे की जरूरत नहीं है। इस तरह से महाराज साहब से जब इतनी बात सुनी तो साध्वी महाराज को रोग किसी और रूप में आगे बढ़ा। उसका भी हमें एक साल भर बैठे मानो बिल्कुल स्वस्थ होते हैं। शरीर में दुर्बलता थी, कभी वह जो टेप हमने भृगुसंहिता सुन कर भरी थी, वह तीनों महाराज पता नहीं चला। मार्च के महीने में जब यह देखा कि गुरु महाराज शरीर ऐसे झूमता था, कभी ऐसे झूमता था, लेकिन उन्होंने कहा साहब को सुनायी)। बड़ी विचित्र बात थी। बीच में मुझे मौका को दो महीने से ज्वर आता है और ज्वर का कुछ नियन्त्रण नहीं हो शरीर को छूना नहीं। उनके मस्तिष्क में इतनी बातें थीं, सभी को मिला तो मैंने महाराज साहब को एक दिन पहले सुनाई। अर्ध रहा है तो सच पूछो 15 फीसदी हम पहले समझे ही नहीं थे, उन्होंने याद किया। समाज के सब आगेवानों को याद किया, निन्द्रा में थे वे जब यह बात सुनी तो (जिस व्यक्ति को जो यह उन्होंने बताया ही नहीं, पीड़ा थी, ज्वर था लेकिन कभी चेहरे पर जिनको याद किया वे उनके सामने आये हाथ जोड़ कर। उस आशीर्वाद देती है उसको अपने शरीर को काई रोग नहीं है, उस आने ही नहीं दिया, कि मुझे क्या तकलीफ है, कभी जिक्र तक नहीं स्थिति में उन्होंने मिच्छामि दुक्कड़ किया। उन्होंने कहा आप ने की पीड़ा अपने ऊपर ले लेती है यही दुःख इन को तंग कर रहा है) किया, बहुत बर्दाशत करते थे, छोटे-मोटी बात तो वह कहते ही मेरी बहुत सेवा की है और मेरे से कोई गलती हो गयी हो तो उसे मुझे कहने लगे, कहना भी नहीं चाहती लेकिन कहे बिना रहा भी नहीं थे लेकिन जिस समय यह समझ में आया और इलाज शुरु क्षमा करना। लाला राम लाल जी को याद किया, ला. रतन चन्द नहीं जाता, भाई यह बिल्कुल सत्य है। ऐसा हुआ है जीवन में। किया तो पता चला वही रोग दोबारा फिर अन्दर चालू हो गया है। जी को याद किया, मुझे भी बुलाया। भाई शांति लाल जी खिलौने फिर मैंने कहा आप का तो स्यालकोट में जन्म हुआ था भाई मैं तो उन्होंने कहा मझे कोई चिन्ता नहीं है। मेरे शरीर को रोग वाले को आप जानते हैं, कितनी सेवा करते हैं, अगर वह सेवा नहीं कहती हूं कि मैं पंजाबी हं। इस तरह की अनेक बातें कहीं। किसी होगा, मेरी आत्मा को कोई रोग नहीं है। निरन्तर बह आदीश्वर करते तो यहाँ दो-तीन वर्ष महाराज साहब का चातुर्मास असम्भव भव में अष्टापद पर्वत की इन्होंने परिक्रमा की थी। भगवान प्रभु का और शंखेश्वर पार्श्वनाथ का जाप करते रहे। बहुत था। हम सब मिल कर भी जितनी सेवा करते हैं उससे कहीं पाश्र्वनाथ की उन्होंने आराधना की थी, अनेक बातें उसमें ऐसी इलाज किया, बम्बई के डाक्टर आये, दिल्ली के डाक्टर भी आये, अधिक वह अकेले व्यक्ति सेवा करते हैं। उसको बुलाया, 'शाति थीं। एक बात और लिखी थी, आप लोग सिरिज से उनके पेट का आयुर्वेद आचार्य आये, होम्पोपैथ भी आये, कसर कोई नहीं लाल भाई से एक बार नहीं सात बार खिमाया। राज कुमार जी पानी निकालेंगे, चिकित्सा करने की कोशिश करेंगे तो लाभ होने छोड़ी। बहुत बड़ा संतोष था उनमें। उन्होंने कभी अपने हृदय की अम्बाला अम्बाला वाले आए उनसे कहा अम्बाला श्रीसंघ से मैं मन, वचन वाला नहीं है। इनको लाभ होने वाला है तो केवल नवकार मन्त्र के वेदना व्यक्त नहीं की। हां, सहना सीखा था, उन्होंने कहना नहीं और काया से मिच्छामि दुक्कड़ करती हूँ। करोड़ों मंत्रों के जाप से होने वाला है। वैसे तो जाप बहत हुए। सीखा था। ऐसी महान आत्मा हमारे बीच से चली गयीं। अभी 18 ये सारी बातें होती रहीं, जो लोग आये उन से। मैंने अपने लेकिन दुर्भाग्य है कि ऐसी जीवात्मा जिसने अपने लिये जीवन में तारीख को कल सुबह सवा आठ बजे उनका देवलोक गमन हुआ। हृदय की बात कही महाराज साहब! आपका तो इतना बड़ा कुछ नहीं किया एक पतली और हल्की खादी पहनी और बिल्कुल लेकिन 16 तारीख से ही, कुछ ज्यादा स्वास्थ्य बिगड़ा था, 17 मनोबल है, आप चाहें तो जी सकते हैं। भृगुसंहिता की एक कंडली अल्पाहार किया, इतना थोड़ा खाते थे जिस से वह जीवन भर तारीख को शाम को 6 बजे सोचा कि कई दिनों से इनके अन्दर जो उन्होंने रविवार को देखी। उसमें एक बात लिखी थी कि यह केवल जी सकें, और वही आदत हमारे बाकी साध्वी महाराज में कुछ खुराक नहीं गयी, ताकत शरीर में कैसे आयेगी, एक छूट प्राणी महान है। अनेक वर्षों से यह मोक्ष जाने की खोज में है और भी है। परिग्रह बिल्कुल नहीं था और अन्त समय क्या हुआ? जब पानी नहीं गया, एक दाना अन्न का नहीं गया, यह शरीर कैसे कई बार जैन साधु साध्वी बन चुका है। एक बात और कहीं। पौने पांच घंटे की (5-45 बजे से लेकर 10-30 बजे तक) समाधि चलेगा? उन्होंने कहा मुझे कुछ जरूरत नहीं है। बहुत कोशिश जलालुद्दीन अकबर बादशाह भारत का सम्राट था इन्होंने उसको ली तो हम हैरान हो गये, दिल्ली का सकल संघ भागा-भागा यहाँ र्ध निद्रा में भी थे लेकिन उन्होंने उपचार करने की हमें प्रतिबोध दिया। उस समय यह आत्मा पदमा नाम की जैन साधी पहुंचा। ऐसी अद्भुत घटना थी, ऐसी दशा को देख-देख कर लोग आज्ञा नहीं दी। शाम को सोचा कि इनको कोई इंजेक्शन दे दिया थी। इनके बारे में कई कुछ लिखा है बड़ी विदुषी थी। यह साध्वी हैरान होते थे, नत-मस्तक होते थे, दर्शन करते थे। उन्होंने हमें जाए ताकि थोड़ी सी नींद आ जाये और हम ग्लूकोज का डिप लगा फिर दक्षिण भारत में चली गयीं। यह भी लिखा था कि इनका कुछ अनेक बातें कहीं। लेकिन उसके बाद 11-00 बजे करीब उनको दें। लेकिन सुबह ड्रिप लगाने की कोशिश की तो उतरवा दिया। लिखा हुआ, कहीं इनका कुछ छुपा हुआ अभी अप्रकाशित पड़ा बहुत मिन्नत करके सुलाया गया, रात ठीक निकली, लेकिन सुबह शाम को ड्रिप लगाने की हमने तैयारी की कि इंजेक्शन दे दें, है। फिर उसमें यह भी था कि इस आत्मा ने उसके बाद चन्द्रभागा हमारे लिए अच्छी नहीं आयी। धीरे-धीरे उनका स्वास्थ्य उखड़ने डाक्टर ने 5-30 बजे इंजेक्शन दे दिया, तबीयत अच्छी नहीं थी और रावी नदी के बीच में जो सियाल नाम का नगर है जिसे लगा। इस क्रम में उनका देवलोक गमन हुआ। वे हमें बिलखता लेकिन 5-45 बजे न जाने क्या हुआ (महाराज साहब अपने पाट सियालकोट कहते हैं, वहां जन्म लिया वहां अल्पायु में ही देवलोक हुआ छोड़ कर चले गये। पर लेटे हुए थे हमें महसूस होता था उनकी तबीयत अच्छी नहीं है, हो गयीं। यही आत्मा इस समय मुगावती के नाम से है। पूरे नाम ऐसी महान आत्मा जिन्होंने जीवन में अपना यह लक्ष्य बनाया Jain Education international For-Private- Personal use Only
SR No.012062
Book TitleAtmavallabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagatchandravijay, Nityanandvijay
PublisherAtmavallabh Sanskruti Mandir
Publication Year1989
Total Pages300
LanguageHindi, English, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size55 MB
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