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________________ (प्रस्तुत उद्गार महत्तरा साध्वी श्री मृगावती श्री जी म. के स्वर्गारोहण के पश्चात् आयोजित गुणानुवाद सभा में परमगुरुभक्त राजकुमार जी जैन, महामंत्री श्री आत्म वल्लभ जैन स्मारक शिक्षण निधि दिल्ली, ने व्यक्त किए थे। साध्वी मृगावती जी महाराज हम सब को बिलखता हुआ छोड़कर चली गयी हैं। उत्तर-भारत नहीं, सारा भारतवर्ष का नहीं, अपितु विदेशों का कौन सा प्राणी ऐसा होगा जिसके दिल को इस बात को सुनकर ठेस न लगी हो? उन्होंने कितने महान कार्य किये, जीवन को किस प्रकार से अर्पण कर दिया, अपना दिल निष्काम कार्यों में लगा दिया, भगवान महावीर के शासन तथा मिशन के प्रचार और प्रसार के लिए अपने आप को उन्होंने बलिदान कर दिया। ____ भाइयों और बहिनों, मैं ज्यादा लम्बी कहानी नहीं कहता। आप सब के समक्ष है कि जीवन पर्यन्त उत्तर-भारत से लेकर दक्षिण भारत तक कितना भ्रमण किया और उसके पश्चात् अपने जीवन की अन्तिम वेला में विजय समुद्र सूरि जी महाराज की आज्ञा लेकर उन्होंने श्री वल्लभ स्मारक के निमार्ण का कार्य चालू किया। वल्लभ स्मारक एक ऐसी विविध लक्षी योजना है जिसकी मिसाल नहीं मिलती। जो अपने आप में अद्वितीय है। समाज के सर्वांगीण विकास के लिए उन्होंने योजना बनायी और अपने आप को इसमें होम कर चली गयीं। जैन समाज ने संकल्प किया है कि महाराज साहब ने जो काम शुरू किया है वह अधूरा नहीं रहेगा, हम उसको वेग गति से पूरा करेंगे। महाराज साहब के कार्यों की जितनी भी प्रशंसा की जाए,कम है। आज सबका हृदयरोरहा है। सब जानते हैं कि महाराज साहब ने कितने भाव से संघ और शासन की सेवा की है जीवन पर्यन्त कभी अपने नाम की लालसा नहीं की। समाज की जो नेशनल धारा थी, उसके साथ वह बराबर चलीं, जीवन पर्यन्त खादी पहनीं। उन्होंने सेवा के माध्यम से समाज और निम्न वर्ग का उत्थान करने का जीवन भर प्रयास किया और उसमें वह सफल रहीं। मैं समझता हूँ उन्होंने एक ऐसा आदर्श मार्ग हमारे लिए प्रशस्त किया है जिस का हम अनुसरण करते रहें तो समाज निश्चय ही आगे बढ़ सकता है। पिछले 4-5 महीनों से उनका स्वास्थ्य ठीक नहीं था। लेकिन उन्होंने कभी इसकी चिन्ता नहीं की। सच पूछा जाए तो सन् 1977 में ही उनको रोग चालू हो गया था लेकिन अपने शरीर पर कष्ट सहना उन्होंने सीखा था और इसका उन्होंने डेढ़ साल तक किसी को पता भी नहीं श्री मृगावती महाराज की दिव्य अलौकिक शक्ति Juin Education in For Private sRemonetune Only
SR No.012062
Book TitleAtmavallabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagatchandravijay, Nityanandvijay
PublisherAtmavallabh Sanskruti Mandir
Publication Year1989
Total Pages300
LanguageHindi, English, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size55 MB
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