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करते थे। प्राकृत प्राकृतक अर्ध-मागधी, पाली, उर्द, बंगाली, भयवर्जन, सर्वधर्म समानत्व, स्वेदेशी स्पर्शभावना का 8. दो उपाश्रय। मारवाड़ी, अंग्रेजी आदि भाषाओं के जानकार होते हुए भी उन्होंने प्रांत-प्रांत, ग्राम ग्राम में उपदेश दिया और राष्ट्र में गांधी जी के 9, भगवान वासुपज्य मन्दिर। अपने प्रवचनों का माध्यम हिन्दी राष्ट्रभाषा को बनाया। उन्होंने स्वप्न 'रामराज्य' को फैलाने में विनोबा जी की भांति आजीवन
10. मुख्य स्मारक भुवन - विजय वल्लभ गरु समाधि मन्दिर। जम्मू (कश्मीर) से लेकर दक्षिण में मैसूर, बंगलौर तथा पूर्व में प्रयत्न किया। आचरण हो उतना ही बोलना, सर्वधर्म समभाव की
11. अतिथि गृह। कलकत्ता तक सारे भारत का 60,000 (साठ हजार) मील पैदल भावना, अन्याय के विरोध का साहस, किसी भी वस्तु का । भ्रमण किया और जैन समाज के हृदय को जीतकर उन्हें राष्ट्रीय दुरुपयोग न होने देना, समय की पाबन्दी, सतत् सत्कार्यों में लगे 12. स्थाया निःशुल्क विजय वल्लभ स्मार एकता, देश बन्धुत्व, धर्म सहिष्णुता, न्यायनीति से चलना, रहना, एक क्षण भी प्रमाद में नहीं गुजारना, अपनी गलती को 13. एक कला संग्रहालय। परोपकार करना, सत्य बोलना, प्राणियों पर दया, अनुकम्पा तत्काल स्वीकार करना, दूसरों के लिए उपयोगी बनना, शद 14. आसपास की ग्रामीण जनता के लाभार्थ - होम्योपैथी रखना, विश्वासघात नहीं करना, सन्तोष से सादगी पूर्ण जिदगी जीवन जीना, दसरों को ऐसी प्रेरणा देना और देशभक्ति ये थीं औषधालय। गुजारना, नयी नयी मद्विद्याओं का अभ्यास करना और उनकी स्वभावगत विशेषताएं। कंठ की मधुरता, भाषा की
सानी लिन सत्यनिष्ठा, शुद्धाचरण तथा आपस में मिल जलकर रहने का पाठ ओजस्विता, विनम्रता और स्निग्धता ये थीं उनकी वाणी की पढ़ाया।
अपनी मौलिक विशेषताएं जिसके कारण सफलताएं इनके चरण पब्लिक स्कल, छात्रावास, महिला प्रशिक्षण तथा उद्योग स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद देश पर जब जब संकट गहराया,
चमती थीं पदों से उन्हें व्यामोह नहीं था फिर भी उनकी ज्ञान केन्द्र, कार्यालय, जलपान गह निर्माण का भी प्रावधान है। उन्होंने साध्वी मृगावती श्री जी महाराज ने समाज को राष्ट्र सेवा के लिए
गरिमा एवं कार्यशक्ति से प्रभावित होकर उनके गुरुदेवों ने उन्हें विजय वल्लभ स्मारक की भावी सुव्यवस्था एवं निवाह के लिए तैयार किया। पावापुरी बिहार में श्री गलजारी लाल नन्दा की
जैन भारती, कांगड़ा तीर्थोद्वारिका, एवं महत्तरा आदि पद अनेकों ट्रस्टों की स्थापना करवाई है। अध्यक्षता में भारत सेवक समाज के अधिवेशन में 80000 जन स्वीकृति में विवश कर दिया।
इस पावन थी आत्मवल्लभ संस्कृति मन्दिर प्रसिद्ध नाम समदाय की उपस्थिति में उन्होंने सक्रिय भाग लेकर भारत की
विजय वल्लभ स्मारक से आधुनिक युग को मिलेग भारतीय नारी-सन्त का गौरव बढ़ाया। भारत का विशाल जनसमूह उनके भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति का प्रतीक विराट एवं भव्य
संस्कृति का नवनीत-मंगलमैत्री की भावना, प्रेम स्नेह, सौहार्द, उपदेशों पर कुछ भी करने को सदैव तत्पर रहता था। चीन द्वारा विजय वल्लभ स्मारक:
सेवा, भाईचारे की भावना, सखशान्ति, आनन्द और भगवान आक्रमण समय, भारत के तत्कालिक प्रधानमंत्री श्री लाल बहादर अपने जीवन के उत्तरार्ध में उन्होंने उपदेश देकर जैनाचार्य महावीर का सार्वकालिक सार्वभौम उपदेश "जीओ और जीने शास्त्री के आह्वान पर उन्होंने स्वयं सोमवार एक समय के श्रीमद् विजय वल्लभ सूरीश्वर जी महाराज की स्मृति में करोड़ों दो"। भारतीय नागरिक इस संस्कृति मन्दिर में आकर जीवन भोजन का त्याग किया और जनता को इसके लिये प्रेरणा दी। की लागत से जो स्वतन्त्र भारत की राजधानी दिल्ली जी.टी. जीने की कला सीखेंगे और संसार को जीना सिखायगे। पाकिस्तानी आक्रमण के समय उन्होंने समाज को राष्ट्र के प्रति करनाल रोड नं. 1 से 20 किलोमीटर स्थित भखंड पर उभर रहे
उनकी तमाम सत्प्रवृत्तियों का मूल शक्ति म्रात था - का स्मरण करवाया। अपगा का सहायता कालयाशावर भारतीय सभ्यता, साहित्य, कला, धम् एव सस्कृति के प्रतीक वीतराग प्रभ के प्रति अनठी श्रद्धा, अनुपम आराधना। सम्यग लगवाये, दुष्काल पीड़ित प्रदेशों में घास चारे के वैगन भिजवाये। "आत्म बल्लभ संस्कृति मंदिर" प्रसिद्ध नाम विजय वल्लभ
दर्शन, ज्ञान, चरित्र की रोम-रोम में रमी साधना का ही यह बाढ पीडित क्षत्रों को आथिक सहायता दिलवाई। रोगियों की स्मारक का निमाण करवाया, वह तामहत्तरासाध्या मृगावताथा परिणाम था कि शरीर से अशक्त अवस्था भी की सहायता एवं चिकित्सा के लिये औषधालयों के निर्माण की प्रेरणा जी के जीवन का अन्तिम कीर्तिकलश है। जिसमें उनकी सद्प्रेरणा अपिटमा
अर्धपद्मासन समाधि लगाकर उन्होंने देह का परित्याग किया। दी। कैंसर रोग से पीड़ित मानव जाति की राहत के लिये उत्तर से स्थापित हुई हैं:
इस देहातीत अवस्था का हजारों नर-नारियों ने दर्शन अनभव भारत में आधुनिक साधनों से युक्त 300 बैड वाले विशाल एवं 1. श्री आत्म वल्लभ जैन स्मारक शिक्षण निधि की स्थापना। किया। आत्मकल्याण के लिये तो उन्होंने संन्यास का मार्ग चना ही भव्य "मोहनदेवी ओसवाल कैंसर एवं रिसर्च सैन्टर" की सन् 2. भारतीय प्राच्य विद्या शोधपीठ।
था, उन्होंने जगत का भी कल्याण किया। उनके कार्य वास्तव में 1981 में लुधियाना में स्थापना करवाई। जातपात, लिंग,
उनके जीवन की कविता हैं, जिसे जमाना युगों-युगों तक सम्प्रदाय तथा वादों से परे रहकर उन्होंने हमेशा भारत की सच्ची 3. छात्रावास - शीलसौरभ विद्या विहार।
दोहरायेगा। भारतीय इतिहास में उनका नाम स्वर्णाक्षरों में लिखा सुपुत्री बनकर भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति का प्रचार किया। 4. संस्कृत, प्राकृत अध्ययन - अध्यापन केन्द्र।
जायेगा। सन् 1986, 18 जलाई को उन्होंने अपने जीवन को भी गांधी जी के जीवन से मगावती श्री जी अत्यन्त प्रभावित थीं। 5. विशाल पुस्तकालय।
वल्लभ स्मारक की इस तपोभूमि के लिए होम दिया। उनके एवं उनमें श्रद्धा भाव रखती थीं। गांधी जी के || व्रत अहिंसा, 6. प्राचीन हस्तलिखित शास्त्र भंडार।
असामयिक निधन से केवल जैन-जगत को ही नहीं बरण सम्पर्ण सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, असंग्रह, शरीरथम, अस्वाद, सर्वत्र 7.दो उपासना गृह।
विश्व के समस्त शान्ति प्रिय समाजों को भी भारी क्षति हुई है। Jain Education international For Pinteremenal Use Only
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