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________________ संचालन के लिए 21 लाख रुपये का सराहनीय अनुदान दिया। की है जिनमें श्री कौशिक भाई,बम्बई, श्री पृथ्वीराज जैन बम्बई, विद्वानों ने भाग लेकर अपने-अपने सुझाव दिए और वर्कशाप यहां वल्लभस्मारक में अतिथिगृह के भूतलघर में स्थित इस पं० बेचरदास दोशी, श्री शिखिर चन्द कोचर, बीकानेर, श्री (कार्यशाला) को सफल बनाया। संस्था का संचालन श्री आत्मवल्लभ स्मारक शिक्षण निधि तथा मनोहर लाल जैन, प्रीतमपुरा, दिल्ली, डॉ० रमण लाल सी शाह भोगीलाल लेहरचन्द फाउन्डेशन, बम्बई के संयुक्त तत्वाधान में बम्बई, श्री राजकुमार जैन दिल्ली बनारस श्री रमण लाल 2. संगोष्ठियाँ - किया जा रहा है प्रो० नीलरत्न बैनर्जी, मशरूबाला दिल्ली आदि प्रमख हैं। संगोष्ठियों का आयोजन करना नियमित गतिविधि है। अब किसी भी देश व समाज की सभ्यता और संस्कृति को जानने प्रकाशित पुस्तकों के विशाल संग्रह के साथ-साथ इस तक संस्था की ओर से तीन संगोष्ठियों का आयोजन किया जा चुका के लिए वहां के साहित्य और कलाओं के विकास का इतिहास संस्थान में धर्म, दर्शन, साहित्य, ज्योतिष, व्याकरण आदि जानना आवश्यक है। इस कार्य में पुस्तकालय और संग्रहालय विभिन्न विषयों से सम्बन्धित लगभग 12000 हस्तलिखित ग्रन्थ 1. आचार्य हरिभद्र सूरि (1)-27-28 सितम्बर, 1986 अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं। इसीलिए इस संस्थान में भी संग्रहित हैं। इस बहुमूल्य ग्रन्थ भंडार का अधिकांश भाग 2. अर्हन पार्श्व विद् धरणेन्द्र इन लिटरेचर, इन्सक्रियशेस एण्ड आर्ट-21-24 मार्च, 1987 प्राचीन हस्तलिखित एवं प्रकाशित पुस्तकों का संग्रह कर एक गुजरांवाला (पाकिस्तान) से मंगवाया गया है जोकि विभाजन के विशाल पुस्तकालय स्थापित किया गया है तथा एक लघु समय वही रह गया था। इसे वहां से मंगवाने के लिए स्वर्गीय सेठ 3. आचार्य हरिभद्र सूरि (2)-25-27 सितम्बर 1987 इनमें से संग्रहालय की स्थापना की गई है। कस्तूर भाई लाल भाई जी ने उच्चतम स्तर पर विशेष परिश्रम "आचार्य हरिभद्र सूरि पर जो संगोष्ठियाँ की गई हैं उनका __भोगीलाल लेहरचन्द भारतीय संस्कृति का मुख्य आकर्षण किया था।.. नेतृत्व दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रमुख विद्वान प्रो० प्रेमसिंह जी ने किया था। उनका उद्घाटन क्रमशः प्रो० लोकेश चन्द्र उसका विशाल पुस्तकालय ही है जिसमें धर्म, दर्शन, साहित्य, महत्तरा साध्वी श्री मृगावती की निश्रा में साध्वी सुव्रता श्री और प्रो० इरफान हबीब द्वारा किया गया। अर्हन् पार्श्व पर इतिहास और संस्कृति से सम्बन्धित संस्कृत, पालि, प्राकृत, जी महाराज सुयशा श्री जी महाराज तथा सुप्रज्ञा श्री जी महाराज आयोजित संगोष्ठी बनारस के प्रसिद्ध विद्वान प्रो० मधुसूदन अपभ्रंश, हिन्दी, अंग्रेजी, गुजराती, उर्द, पंजाबी आदि विभिन्न ने संस्था में संग्रहीत हस्तलिखित ग्रन्थों के सूचीकरण का कार्य ढाकी के नेतृत्व में की गई और उसका उद्घाटन श्रीमती देशी भाषाओं तथा जर्मन, फ्रेंच, तिब्बती आदि विदेशी भाषाओं प्रारम्भ किया था। हस्तलिपि-विशेषज्ञ पं० लक्ष्मण भाई भोजक कपिला वात्सयायन ने किया। तीनों ही संगोष्ठियों में की लगभग 14000 प्रकाशित पुस्तकों का संग्रह है। यही नहीं यहां के मार्गदर्शन में यह महत्वपूर्ण कार्य सुचारू रूप से चल रहा है। देश-विदेश के अनेक विद्वानों ने भाग लिया। विभिन्न प्रकार के कोशों, विश्व कोशों तथा अनेक सुयशा श्री जी दिन रात इस कार्य में जुटी हुई हैं लगभग 12000 पत्र -पत्रिकाओं का संकलन भी किया गया है। यह पुस्तकालय ग्रन्थों को विषय के अनुरूप वर्गीकृत करके उनके काई बना दिए 3. व्याख्यान माला विद्वानों के लिए जितना उपयोगी है उतना ही सामान्य व्यक्ति के गए हैं। उनको सुरक्षित रखने के लिए उन्हें अल्यूमी नियम के संस्था के शैक्षणिक कार्यों में व्याख्यान मालाओं का आयोजन लिए भी लाभकारी सामग्री प्रस्तुत करता है। यहां जैन धर्म, डिब्बों में बन्द करके रखा जाएगा ताकि आने वाली पीढ़ियों को भी प्रारम्भ किया गया है जिनमें जैन विद्या से सम्बन्धित विषयों दर्शन, साहित्य और इतिहास का सामान्य ज्ञान कराने वाली सरल शोध कार्य में समुचित एवं महत्वपूर्ण सामग्री उपलब्ध हो सके। पर विशिष्ट विद्वानों द्वारा व्याख्यान दिए जाते हैं। इस व्याख्यान पुस्तकों तथा आध्यात्मिक ग्रन्थों का संग्रह भी किया गया है ताकि संस्थान की विभिन्न गतिविधियां माला का नाम भोगीलाल लेहरचन्द के नाम से रखा गया है ताकि सभी प्रकार के व्यक्ति लाभ उठा सकें। उनके द्वारा संस्था के प्रति दिए गए योगदान का सम्मान किया जा "तुलनात्मक एवं समन्वयात्मक अध्ययन के लिए सके। "भोगीलाल लेहरचन्द मैमोरियल व्याख्यान माला" के संस्था के इस पुस्तकालय को समृद्ध बनाने में अनेक संस्थाओं कार्यशाला संगोष्ठियों एवं व्याख्यान मालाओं का आयोजन करना आयोजन का कार्य 24-25 सितम्बर, 1988 को प्रारम्भ किया ने अपने-अपने ग्रन्थ भंडारों की पुस्तके दान देकर महान कार्य संस्था की महत्वपर्ण गतिवधियां हैं। संस्थान की ओर से अब जो गया जिसमें प्रो० शान्ताराम बालचन्द्र देव (अवकाश प्राप्त एव किया है। यथा श्री आत्मवल्लभ स्मारक शिक्षण निधि, दिल्ली, आयोजन किए गए हैं उनका विवरण इस प्रकार है :- भूतपूर्व निर्देशक, डकैन कालेज, पोस्ट ग्रेजएट रिसर्च इन्स्टीट्यूट, श्री महावीर जैन पुस्तकालय, बम्बई, श्रीसंघ भंडार, पूना) ने साधु-साध्वियों द्वारा अंगीकृत जैन आधार विषय पर तीन मालेरकोटला, श्री जैन श्वेताम्बर मूर्ति पूजक संघ, बडौत 1. कायशाला महत्वपूर्ण व्याख्यान दिए। श्री आत्मानंद जैन सभा, बम्बई, श्री प्रवचन पूजक सभा, श्री भारत में जैन विद्या का प्रचार-प्रसार कैसे हो? इस विषय में शांतिनाथ जैन देवालय, बम्बई, आचार्य श्री मनोरथराम विद्वानों के विचार जानने के लिए संस्था की ओर से 4-5 अगस्त, 4. छात्रवृत्तिया रामसनेही साहित्य शोध संस्थान, दिल्ली, श्रीसंघ बिनौली, तथा 1985 को एक कार्यशाला का आयोजन प.पू. साध्वी मृगावती श्री जैन विद्या से सम्बन्धित विषयों का अध्ययन करने तथा शोध दूतावास, जर्मन गणतंत्र संघ दिल्ली आदि। इनके अतिरिक्त जी म. के सानिध्य में किया गया, जिसका विषय था "डायेरक्शन्स कार्य करने वाले छात्रों को संस्थान द्वारा विभिन्न प्रकार के अनेक लोगों ने व्यक्तिगत रूप से भी कुछ पुस्तकें संस्था को भेंट फोर जैनालाजिकल स्टडीज इन इंडिया"। उसमें देश के विभिन्न छात्रवृत्तियां दी जाती हैं। उदाहरण के तौर पर बी.ए. (आन For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.012062
Book TitleAtmavallabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagatchandravijay, Nityanandvijay
PublisherAtmavallabh Sanskruti Mandir
Publication Year1989
Total Pages300
LanguageHindi, English, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size55 MB
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