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________________ पदयात्रा शुरू की। रास्ते में "वटादरा" गांव आया। यहां एक दिव्य घटना घटती है। रात्रि के समय आचार्य देव जब अल्प निद्रा में थे तब उन्होंने स्वप्न देखा कि शासनदेवी एक स्त्री का रूप धारण कर आई है। वह गुरुदेव पर कुंकुंभ और मोती न्योछावर कर बोली, गुरुदेव आप अपने मन में किसी प्रकार की शंका न करें। आप खुशी से अकबर के पास जाइए और जिन शासन की शोभा बढ़ाइये। इससे आपकी कीर्ति फैलेगी। इतना कहकर देवी अदृश्य हो गई। उसके बाद आचार्य हीर विजय सूरि ने अहमदाबाद की ओर प्रस्थान किया। आचार्य देवका धूमधाम के साथ अहमदाबाद में प्रवेश हुआ प्रवचन के बाद अहमदाबाद श्री संघ को पता चला कि गुरुदेव बादशाह अकबर के पास आगरा जा रहे हैं। यह सुनकर अहमदाबाद का श्रीसंघ चिन्ता में पड़ गया और सोचने लगा गुरुदेव को अकबर ने क्यों बुलाया है। पता नहीं गुरुदेव का वहां क्या होगा। यह सोचकर आचार्य हीरविजय सूरि जी को आगरा जाने से रोका, तब आचार्य हीर विजय सूरि बोले, भाग्यवानो, अभी तो बादशाह सम्मान के साथ बुला रहा है और नहीं जायेंगे तो न जाने क्या करेगा। वहां जाने से शायद मेरे उपदेश से हिंसक अकबर अहिंसक बन जाये तो जैन धर्म की प्रभावना होगी। आचार्य हीर विजय सूरि की यह दीर्घ दृष्टि वाली बात सुनकर अहमदाबाद का श्री संघ ठंडा पड़ गया और आचार्य जी को जाने दिया। आचार्य हीर विजय सूरि जी उग्र विहार कर बादशाह अकबर के दरबार में पहुंचे। अकबर आचार्यदेव के सामने आया। वह हीर सूरि को देखकर इतना हर्ष विभोर हो गया कि वह आचार्य देव को आसन देना भूल गया। आचार्य देव को मंत्रणागृह में पधारने के लिए कहा। किन्तु आचार्य हीर विजय सूरि ने कहा, हम गलीचे पर नहीं चलते क्योंकि उसके नीचे जीव जन्त हों तो चलने से हिंसा हो सकती है। अकबर ने तुरन्त गलीचा उठवाया तो नीचे असंख्य चीटियाँ दिखाई दीं। अकबर विस्फारित नेत्रों से आचार्य देव को देखता रह गया। प्रथम मुलाकत में ही अकबर हीर विजय सूरि से बड़ा प्रभावित हुआ। श्रद्धा से अकबर का शिर आचार्य देव के चरणों में झुक गया जो आज तक किसी के सामने नहीं झुका था। एक दिन अकबर ने आचार्यदेव के चरित्र की परीक्षा करने के लिए एक प्रश्न पूछा जिसका उत्तर सुनकर अकबर प्रसन्न हुआ। आचार्य हीर सूरि के सदुपदेशों को सुनकर अकबर आचार्य देव का भक्त बन गया। अपने भव्य दरबार में आचार्य हीर विजय सूरि in Equussion international को जगद्गुरु की उपाधि प्रदान की। हिंसक अकबर अहिंसक बना आचार्य हीर विजय सूरि प्रतिदिन बादशाह अकबर को जैनधर्म के सिद्धान्तानुसार उपदेश देते थे। उस उपदेश में ज्यादातर अहिंसा धर्म की महिमा और हिंसा से होने वाले अनर्थ समझाये जिसे सुनकर निर्दय कठोर हृदयी अकबर दयालु बन गया। अकबर राज और बाहुबल के मद में चूर होकर अपनी बहादुरी दिखाने के लिए शिकार खेलने जाता था। उसे बंद कर दिया। वह प्रतिदिन 500 चिड़ियों की जीभ खाता था, वह छोड़ दिया। बादशाह अकबर ने खुश होकर आचार्य हीर विजय सूरि जी के कुछ मांगने के लिए कहा, तब आचार्य देव ने कहा हमारा पर्युषण पर्व आ रहा है। उस समय आठ दिनों तक कत्ल खानों में जीवहिंसा बंद होनी चाहिए। अकबर आचार्य हीर विजय सूरि की निःस्वार्थ और परोपकारी की बात सुनकर बड़ा प्रसन्न हुआ और पर्युषण पर्व के आठ दिनों के स्थान पर 12 दिनों तक हिंसा बंद कर दी। इस प्रकार हिंसक, क्रूर, निर्दयी और मांसाहारी जैसे सम्प्रट के हृदय को भी कैसे अद्भुत परिवर्तन करा दिया। यह सारा प्रभाव आचार्य श्री हीर विजय सूरि का ही है। स्वर्गवास वि० सं० 1652 में जगद्गुरू देव श्री हीर विजय सूरि का चातुर्मास पूना (सौराष्ट्र) में था। तब आचार्य देव का स्वास्थ्य आचार्य देव ने औषध लेने से इंकार कर दिया तब श्रीसंघ न हीर अनुकूल नहीं था। शरीर अनेक रोगों से ग्रस्त हो गया था। जब सूरि के पास आकर कहा गुरुदेव जब तक आप औषध नहीं ग्रहण दिया यदि आप औषध नहीं लेंगे तो हम अपने बच्चों को स्तन्य करेंगे तब तक हम उपवास करेंगे। श्राविकाओं ने तो यहां तक कह (दूध) भी नहीं पिलायेंगी। श्रीसंघ के कठोर अभिग्रह ने आचार्य सूरि ने श्रीसंघ के आग्रह से औषध तो लिया किन्तु स्वास्थ्य में कोई भगवन्त को औषध लेने के लिए बाध्य किया। आचार्य हीर विजय सुधार नहीं आया। पर्युषण पर्व के बाद आचार्य हीर विजय सूरि का स्वास्थ्य और भी अधिक बिगड़ गया। जब बचने की उम्मीद नहीं रही तब आचार्य देव श्री हीर विजय सूरि ने सबसे क्षमापना की और नवकार महामन्त्र की आराधना करते हुए भाद्रपद सुदी एकादशी को अपने पार्थिव देह का परित्याग कर दिया। For Private & Personal Use Only Quator 15 www.jainelibrary.on
SR No.012062
Book TitleAtmavallabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagatchandravijay, Nityanandvijay
PublisherAtmavallabh Sanskruti Mandir
Publication Year1989
Total Pages300
LanguageHindi, English, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size55 MB
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