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________________ अकबर प्रतिबोधक श्री हीर विजय सूरि मुनि अरुण विजय यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत। कथन करते हुए कहा कि ये बालक जैन शासन का महान् प्रभावक अकबर ने चंपा श्राविका ने घर शाही फरमान भेजा जिसमें अभ्युत्थानमधर्मस्य तवात्मानं सृजाम्यहम्।। होगा। अतः आप अपनी इच्छा से जैन शासन को समर्पित कर दो। लिखा था मैं आपका ब्रत देखना चाहता है। आप मेरेराजभवन में नाथीबाई ने भी गुरुदेव के कहने पर अपने प्राण प्यारे एकलौते पुत्र आइये, यहाँ आपको पूर्ण सुविधा मिलेगी। बादशाह अकबर का हे अर्जुन, जब जब इस पृथ्वी पर नास्तिक और अधर्मी धर्म को जैनशासन के लिए समर्पित कर दिया। गुरुदेव ने भी बालक फरमान पढ़कर एक बार परिवार के लोग चिन्ता में पड़ गये। की हानि करते हैं और अधर्म को बढ़ाते हैं तब-तब दुष्टों का दलन हीर के समझदार होने पर दीक्षा दी। उनका नाम हीर हर्ष मुनि कितु चम्पा ने सबको सान्त्वना देतु हुए कहा मुझे तो व्रत करना ही करने के लिए और पुनः धर्म स्थापित करने के लिए मैं संसार में रखा गया। दीक्षा के समय हीर की उम्र तेरह वर्ष थी। है चाहे यहाँ करूं या वहाँ, एक ही बात है। परिवार की आज्ञा लेकर अवतार लेता हैं। चम्पा राजभवन में गई। गरम पानी के सिवा यह और कुछ खाती अध्ययन पीती है या नहीं, यह जानने के लिए अकबर ने एक दासी को यह बात भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन से कही। किंतु आज से नियुक्त कर दिया। स्वयं अकबर भी नजर रखता था। किंतु एक ढाई हजार वर्ष पूर्व सुधर्मा स्वामी जंबू स्वामी स्वयं भूव सूरि गुरुदान सूरि ने हीर हर्ष मुनि को गुजराती, संस्कृत, प्राकृत महीना बीत जाने पर चंपा ने कुछ भी नहीं खाया, यह जानने के मानतुंगसूरि सिद्धसेन दिवाकर सरि, हेमचन्द्राचार्य हरिभद्रसरि आदि विभिन्न भाषाओं और जैनागमों का आद्योपान्त अध्ययन लिए स्वयं अकबर चंपा के पास आया और पूछा, आपके पीछे जैसे आदि महापुरुष भारत की आर्य भूमि पर जन्मे। अन्य धर्मों में कराया। यही हीर हर्ष मुनि आगे चलकर जैनशासन के एक महान कौन सी शक्ति है? कौन आपको शक्ति देता है जिसके बल पर भी समय-समय पर महापुरुष होते रहे। परन्त एक समय ऐसा भी धुरंधर विद्वान् आचार्य हीर विजय सूरीश्वर बने। आपने बिन खाये इतने दिन बिताये। हम तो रोजे के दिन यदि रात आया जिसमें जब धर्म का नाश करने वाले अधर्मी, अधर्म को एक टाइम नहीं खायें तो प्राण निकलने लगते हैं। स्थापित करने वाले जन्मे। जो भारत की पवित्र भूमि से सुधर्म का नाश करके अधर्म का साम्राज्य फैला रहे थे। चारों ओर हिंसा को चम्पा ने कहा मुझे शक्ति देने वाले मेरे आराध्य देव अकबर और चम्पा श्राविका आदिनाथ और गुरु श्री हीर विजय सूरीश्वर महाराज हैं। अकबर बढ़ावा मिल रहा था। ऐसे समय जैन शासन की जाज्वल्य मूर्ति, आचार्य हीर विजय सूरि की ख्याति संसार में तब फैली जब ने यह सोचा इस बहन में इतनी शक्ति है तो न जाने इनके गरु में प्रखर विद्वान जैनाचार्य श्रीमद् विजय हीर सूरीश्वर का जन्म हिन्दुस्तान के शासक बादशाह अकबर से उनकी भेंट हई। कितनी शक्ति होगी। उसने चंपा श्राविका से कहा मैं आपके गुरु हुआ। बादशाह अकबर और आचार्य हीर विजय सूरि की भेंट छह महीने को देखना चाहता हूं। वे इस समय कहाँ होंगे। चंपा ने कहा गुरुदेव उपवास करने वाली आगरे की चंपा नामक श्राविका के द्वारा हुई। इस समय गंधार (गुजरात) में हैं। जन्म और दीक्षा एक दिन बादशाह अकबर राजमहल के झरोखे पर बैठाहा अकबर का आमन्त्रण था। उसने बाजे गाजे के साथ जाते हुए एक जुलूस देखा। अकबर आचार्य देव का जन्म वि. सं. 1583 में मार्गशीर्ष सुदी नवमी ने बान सिंह नाम के जैन मंत्री से पूछा, यह जुलूस किस निमित्त बादशाह अकबर ने आचार्य हीर विजय सूरि को आगरा को गुजरात के पालनपुर शहर में हुआ था। निकाला जा रहा है? थान सिंह ने कहा जहाँपनाह, हमारे समाज में पधारने के लिए पत्र लिखा। पत्र पढ़कर आचार्य हीर सूरिने गंधार माता का नाम नाथीबाई था और पिता का नाम कराशाह चंपा नाम की श्राविका आज से छह महीने का उपवास करने जा श्री संघ से गंभीर परामर्श के बाद आगरा जाने का विचार किया। माता-पिता ने बालक का नाम हीर रखा। पूरा परिवार धर्म प्रवृत्ति । रही है। यह दिन में केवल एक-दो-बार प्यास लगने पर गरम में अधिक श्रद्धावान था। नाथीबाई बालक हीर को लेकर प्रतिदिन पानी पीयेगी। थानसिंह के मुख से यह सुनकर बादशाह अकबर सिह क मुख से यह सुनकर बादशाह अकबर शासन देवी का आगमन गुरुमख से धर्मोपदेश सुनने के लिए जाया करती थीं। एक दिन को बड़ा आश्चर्य हुआ और उसकी परीक्षा करने की इच्छा हुई कि आचार्य भगवन्त श्री दान सूरीश्वर ने नाथीबाई के पुत्र का भविष्य यह बात सत्य है या झूठ। आचार्य श्री हीर विजय सूरि ने आगरा जाने के लिए गंधार से
SR No.012062
Book TitleAtmavallabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagatchandravijay, Nityanandvijay
PublisherAtmavallabh Sanskruti Mandir
Publication Year1989
Total Pages300
LanguageHindi, English, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size55 MB
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