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________________ कलिकाल सर्वज्ञ हेमचन्द्राचार्य -साध्वी प्रफुल्ल प्रभा श्री प्रभु वीर के शासन में कलिकाल-सर्वज्ञ आचार्य श्री हेमचन्द्र श्रद्धालु होने के कारण नवस्मरण का पाठ होने पर उसने मुंह में आचार्य श्री ने कहा कुछ नहीं, मुझे इस बालक की आवश्यकता है, सूरीश्वर जी महाराज हुये। कहावत है पानी तक नहीं डाला। आज मानो पाहिनी की परीक्षा हो रही थी। जो अपनी माता के साथ हमेशा नवस्मरण कापाठ सुनने आता है। एक दिन नहीं तीन दिन बीत गये। जब चांगदेव ने अपनी माता को अग्रगण्य श्रावकों ने पता लगाया कि यह बालक कौन है। पूत के पैर पालने में नहीं, बिना खाये-पीये देखा तो पूछा, माँ क्या हो गया है? तू खाना क्यों दूसरे दिन आहार के समय आचार्य श्री दो-चार धावकों के साथ पेट में ही पहचाने जा सकते हैं। नहीं खाती? मां पाहिनी ने कहा बेटा, तुझे पता नहीं हम दोनों पाहिनी देवी के घर गये। श्राविका पाहिनी ने अचानक श्रावकों के जननी अपनी होनेवाली संतान के लक्षण अपने पेट में ही हमेशा गुरु महाराज के पास पाठ सुनने जाते हैं, लेकिन इस वर्षा साथ आचार्य श्री को अपने घर की ओर आते देखकर हर्ष से नाच जान लेती है कि भविष्य में मझे कैसी संतान प्राप्त होने वाली है। के कारण मेरी वह प्रतिज्ञा पूरी नहीं हो पारही है। बेटा, अपने गुरु उठी। उसने पूछा, गुरुदेव आप श्री को क्या द? आचार्य श्री बोले. माँ चेलना ने कौणिक के गर्भ में आते ही जान लिया था कि यह होने महाराज के पास अब कैसे जाया जाये? माँ के इन शब्दों को मुझे कुछ नहीं चाहिये, मात्र अमिट निशानी के रूप में जिनशासन वाली संतान कलदीपक नहीं कुलविनाशक बनेगी। सचमुच वह सुनकर चांगदेव बोला, क्या माँ यह गुरु महाराज के मुख से ही की रक्षा के लिये यह बालक चाहिये। इस समय पाहिनी के पतिदेव कौणिक कुलदीपक नहीं, कुलविनाशक निकला, जो अपने पिता सुनना जरूरी है ? माँ ने जवाब दिया नहीं बेटा, मैं तो अनपढ़ हूँ। बाहर गये हए थे। फिर भी माता पाहिनी अपने प्यारे पुत्र चांगदेव श्रेणिक महाराज का हत्यारा बना। माता चेलना को संतान के गर्भ तब चांगदेव ने कहा क्या मैं सुना दूं? मुझे यह पाठ कंठस्थ है। से कहती है, बेटा तुझे गुरु महाराज के साथ जाना है, उन्हीं के में आते ही उसे खराबदोहद हए सदा मन में मिथ्या विचार आने माता विचारों में खो गई। कित चांगदव अपनामा का प्रातजा पूर्ण चरणों में अपना जीवन समर्पित करना है। धर्म पर परम श्रद्धा लगे। लेकिन ससंस्कारी संतान के गर्भ में आते माता को अच्छे करने के लिये ध्यानपूर्वक नवस्मरण का पाठमों को सुनाने लगा। रखने वाली माता पाहिनी ने गुरुवचन को मंत्ररूप मानकर पति दोहद उत्पन्न होते हैं. उत्तरोत्तर धर्म-भावना बढ़ती जाती है. सुनने के बाद माँ पाहिनी ने पूछा, बेटा, तूने यह सब पाठकब याद की बिना आज्ञा के अपने एक मात्र कलेजे का टकडा सदा-सदा के जिससे माता स्वयं इस बात का अनुभव कर लेती है कि संतान वैसी किया? चांगदेव ने निवेदन किया, मां यह तो मुझे गुरु महाराज के लिये जिनशासन को समर्पित कर दिया। धन्य उस माँ की कक्षि होगी माता "पाहिनी' को पत्र के गर्भ में आने पर अच्छे दोहद मुख से सुनते-सुनते याद हो गया है। को, जिसने पुत्र के लक्षण पेट में ही पहचान लिये थे। उत्पन्न होने लगे। उत्तरोत्तर धर्मधद्धा बढ़ने लगी। माँ माँ पाहिनी अपने पत्र की बद्धि एवं स्मरणशक्ति देखकर वही चागदेव मुनि दीक्षा अंगीकार करने के बाद हेमचन्द्र "पाहिनी" को विश्वास हो गया कि मेरी भावी संतान कुलदीपक हर्ष-विभोर हो गई और अपने मन ही मन कहने लगी मेरा पुत्र मनि कहलाए, जो आगे चलकर कलिकाल सर्वज्ञ आचार्य हेमचन्द्र ही नहीं, धर्मदीपक बनेगी। मेरी कक्षि को सफल करेगा। एक दिन माता पाहिनी अपने बेटे के सूरीश्वर जी महाराज के नाम से विख्यात हुए। आपने अठारह कार्तिक सुदी पूर्णिमा के दिन माता पाहिनी ने चन्द्रमा के साथ व्याख्यान श्रवण करने बैठी थी, बालक चांगदेव पर आचार्य देशों के राजा कुमार पाल को प्रतिबोधित कर जैन शासन की समान तेजस्वी पुत्र को जन्म दिया।गुण और सौन्दर्य से उस पुत्र का श्री देवचन्द्र सूरीश्वर जी महाराज की दृष्टि पड़ी। शोभा-वृद्धि की। ऐसी ही आचार्य-परम्परा में नाम आता है नाम चांगदेव रखा गया। चांगदेव ने अपने गुणों एवं बुद्धि रूपी चांगदेव के मुख की तेजस्विता देखकर आचार्य श्री सोचने युगद्रष्टा पंजाब केसरी आचार्य विजय वल्लभ स्रीश्वरजी कला के साथ द्वितीय के चन्द्र की भाँति बढ़ता हुआ पूर्णाचन्द के लगे इस बालक का भाग्य कितना प्रबल है। यदि यह बालक महाराज का, जिन्होंने अपनी माँ के अन्तिम शब्दों को मंत्ररूप समान पूर्णता प्राप्त की। जिनशासन के लिये मिल जाये तो वह धन्य-धन्य हो उठे। मानकर अपनी जीवन रेखा को मोड़ देकर प्रभ वीर के बताये हुये एक दिन माता पाहिनी मूसलाधार वर्षा के कारण अपने ___आचार्य श्री को विचार मग्न देखकर संघ के अग्रगण्य मार्ग पर अग्रसर हुए। अपनी मानवता की सुगंधि को चारों नवस्मरण पाठ सुनने की प्रतिज्ञा पूरी नहीं कर पा रही थीं। धर्म श्रावकों ने पूछा, गुरुदेव आप थी किन विचारों में डूबे हुए हैं? दिशाओं में फैलाया। . Jan Education international
SR No.012062
Book TitleAtmavallabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagatchandravijay, Nityanandvijay
PublisherAtmavallabh Sanskruti Mandir
Publication Year1989
Total Pages300
LanguageHindi, English, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size55 MB
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