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जीव नवत
एक निःस्पृह,सत्यनिष्ठ, कर्मठ एवं विद्यावदात व्यक्तित्व
- डा. छगनलाल शास्त्री एम.ए.(त्रय)पी.एच.डी.
यह जगत आवागमन के एक अनादि अनन्त चक्र में गतिशील है। इसमे आजतक न जाने कितने लोग आये और चले गये, कोई गिनती नहीं लगा सकता। किन्तु समय-समय पर यहां ऐसे प्रज्ञाशील, ऊर्जाशील, कर्मयोगी उत्पन्न होते रहे हैं, जो अपने उज्ज्वल, निर्मल व्यक्तित्व तथा समर्थ कृतित्व के कारण अजर अमर हो गये। उनका दिव्य ज्योतिर्मय जीवन महासागर में विद्यमान उत्तुंग प्रकाश-स्तंभ की आने वाली पीढ़ियों को सदैव सत्कर्म की दिशा में अग्रसर होने की प्रेरणा प्रदान करता रहेगा। स्व. मोहनलालजी बांठिया एक ऐसे ही मनस्वी, ओजस्वी मनीषी थे।
पारंपरिक निवास-स्थान तो उनका राजस्थान के थली संभाग के अन्तर्गत चूरू रहा, किन्तु श्री बांठियाजी का कार्यक्षेत्र विशेषतः कलकता रहा। वहीं उन्होंने शिक्षा प्राप्त की तथा वहीं अपना व्यावसायिक एवं यशस्वी साहित्यिक जीवन व्यतीत किया।
श्री बांठियाजी जैन दर्शन के गहन अध्येता थे। इस विषय पर पाश्चात्य एवं प्राच्य लेखकों द्वारा अंग्रेजी, हिन्दी आदि में लिखित अनेकानेक ग्रंथों का उन्होंने गहन अध्ययन किया। साथ ही साथ प्राकृत में रचित जैन आगमों तथा उन पर प्राकृत, संस्कृत में रचित भाष्यों, निर्मुतियों, चूर्णियों तथा टीकाओं आदि व्याख्या-ग्रन्थोंका तथा जैन व जैनेतर पौराणिक वाग्मय का बड़ी लगन और तन्मयता से अत्यन्त तलस्पर्शी ज्ञान प्राप्त किया। डा. हर्मन जैकाबी आदि पाश्चात्य विद्वानों के जैन आगम तथा साहित्व विषयक ग्रंथों का भी उन्होंने सम्यक परिशीलन किया। इस विपुल अध्ययन के साथ-साथ श्री बांठियाजी उत्कृष्ट संस्कार निष्पक्ष क्षयोपशम के धनी थे।
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