________________
प्रकाशित हुआ था । हमारे चरित्र नायक यही मोहनलालजी थे ।
भारत के समस्त बांठिया परिवार की डायरेक्टरी बनाने की मेरी इच्छा जागृत हुई और इस विषय में सामग्री संकलन करने लगा तो मामाजी स्व. श्री अगरचन्दजी नाहटा बताया- कलकता में तुम्हारे बांठिया परिवार के श्री मोहनलालजी बांठिया जैन आगम ग्रंथों के अच्छे ज्ञाता हैं और इस विषय में बड़ी साधना के साथ वषों से कार्य कर रहे हैं । उनकी पुस्तके भी प्रकाशित हुई हैं।
सन १६७५ में मैं जब कलकता गया तो भाईजी श्री भंवरलालजी नाहटा से डा. सुनीति कुमार चटर्जी और काका साहब श्री मोहनलालजी बांठिया से मिलने की जिज्ञासा बताई तो वे बोले - कल ही चलेंगे। दूसरे दिन मैं, मामाजी व भाईजी तीनों उनके निवासस्थान पर गये । संभवतः डोबर लेन में। वहां पहुंचे तो सर्वप्रथम मेरे बचपन का 'कलम सखा मित्र' श्री जयचंदलाल गोठी, सरदारशहर वाला मिल गया । उसको देखकर मैंने पूछा- तुम यहां क्या काम कर रहे हो । उसने बताया कि पूज्य बांठियाजी के सान्निध्य में रहकर उनका 'लेश्या कोष' व 'वर्धमान कोष' का काम कई वर्षो से कर रहा हूं ।
मामाजी ने मेरा परिचय काका साहब से कराया और कहा यह भी बांठिया है. मेरा भानजा है। इसकी भी साहित्य और इतिहास में रूचि है और यह भी लेख लिखता है । काका साहब बड़े प्रसन्न हुए। मैंने भी अपना मन्तव्य बताया तो बोले - बहुत अच्छा कार्य कर रहे हो । उन्होंने बताया संख्या में तो बांठिया परिवार कम है, किन्तु जहां भी है अपने गांव और शहर में प्रमुख स्थान रखते हैं।
काका साहब ने बताया कि आजकल मेरा स्वास्थ्य ठीक नहीं है। कई बीमारियों मुझे घेर रखा है, किन्तु जो काम करना है, वह तो किया ही जायेगा। काका साहब के इन निर्भीक विचारों से मैं बहुत प्रभावित हुआ। मामाजी और भाईजी की दो-तीन घंटे विविध विषयों पर बातचीत होती रही। जब हम उठने लगे तो बोले- भोजन करके ही जाइये, नाहटा साहेब । फिर हम सब लोगों ने वहीं भोजन किया। यहीं से भोजन कर सीधे डा. सुनीति कुमार चटर्जी के निवास स्थान 'सुधर्मा' पहुंचे जो हिन्दुस्थान रोड़ में है ।
अपने धुन के धनी काका श्री मोहनलालजी बांठिया का शनैः शनैः शरीर क्षीण होता गया और वे मात्र ६८ वर्ष की आयु में ता. २३ सितम्बर सन १६७६ ई. को दिवंगत हो गये। मैं काका साहब का पूरा जीवन चरित्र संकलन करना चाहता था, मेरा स्वप्न अधूरा
रह गया।
Jain Education International 2010_03
६७
जीवनवृत
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org