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स्वः मोहनलाल बाठिया स्मृति ग्रन्थ
अलौकिक जीवन
| पू. काकासा मोहनलालजी बांठिया
- हजारीमल बांठिया
कानपुर
११ वीं शताब्दी के परम वीर और दानवीर श्री जगदेव पंवार के पौत्र श्री माधोदेवजी ने जैन धर्म अंगीकार कर लिया और वे ओसवाल वंश में शामिल होगये। और समाज में उदारतापूर्वक सुख, समृद्धि और श्री बाटी, इसलिए "बांठिया" कहलाये । बांठिया गोत्र वालों का प्रमुख केन्द्र बीकानेर रहा है, जहां एक स्वतंत्र मोहल्ला ‘बांठिया चौक' नाम से है, जहां बांठियों के लगभग १०० घर हैं। यहीं से सेठ जयपालजी बांठिया, जो चूरू ब्याहे गये थे, जाकर चूरू बस गए और उनके पांच पुत्र हुए। उन्हीं के वंशज वर्तमान में चूरू में निवास कर रहे हैं। प्रारम्भ में सभी मंदिर मार्गी और 'पायचन्द गच्छीय' थे उन्होंने पायचन्द गच्छ का उपासरा बनाया, जो अब भी मौजूद है। चूरू में बांठिया परिवार के ७० घर हैं और सभी साधन-सम्पन्न हैं। वि. सं. १८८४ में सेठ मिर्जामल पोद्दार की बहियों के अनुसार चूरू में उस बक्त बांठियों के १२ घर और दुकानें बाजार में थीं। आपके वंशज बाद में श्री जैन तेरापंथ संप्रदाय के अनुयायी वने।
इसी चूरू (राजस्थान) नगर में स्वनाम धन्य श्री मोहनलालजी बांठिया का जन्म ३० नवम्बर सन १९०८ में सेठ छोटूलालजी बांठिया के घर हुआ। बी. काम. तक शिक्षा प्राप्त की और संस्कृत का भी अध्ययन किया और कलकता नगर में अपनी कुशाग्र बुद्धि से व्यापार कर साधन सम्पन्न बने।
__ ओसवाल नवयुवक समिति कलकता द्वारा प्रकाशित मासिक पत्र ‘ओसवाल नवयुवक' का मैं बचपन से ही ग्राहक था। उसमे प्रति माह एक प्रमुख ओसवाल सज्जन का चित्र छपता था। मुझे स्मरण है, एकबार श्री मोहनलाल बांठिया, पहलवान, चूरू का चित्र
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