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स्वः मोहनलाल बांठिया स्मृति ग्रन्थ
क्रियाकोश एक महत्वपूर्ण संकलन
प्राचीन आगम साहित्य में मंत्र-तंत्र क्रियाओं का उल्लेख बिखरा पड़ा है । कहीं पर कुछ वर्णन है तो कहीं पर कुछ। प्रबुद्ध पाठक भी उन सब उल्लेखों का एकत्र अनुसंधान एवं चिन्तन करनें में कठिनाई अनुभव करता है । साधारण जिज्ञासु पाठकों की कठिनाई का तो कहना ही क्या। कभी-कभी तो साधारण अध्येता इतनी उलझन में फंस जाता है कि सब कुछ छोड़कर किनारे ही जा बैठता है । श्री मोहनलालजी बांठिया ने उन सब वर्णनों को क्रियोकोश के रूप में एकत्र संकलन कर वस्तुतः भारतीय वांग्मय की एक उल्लेखनीय सेवा की है। मैं जानता हूं, यह कार्य कितना अधिक श्रमसाध्य है । चिन्तन के पथ को कितनी विकट घाटियों को पार कर मंजिल पर पहुंचना होता है । प्रतिपाद्य विषय का विभिन्न भागों में वर्गीकरण कितना अधिक उलझन भरा होता है । परन्तु श्री बांठियाजी अपनी धुन के एक ही व्यक्ति है। उनका चिन्तन स्पष्ट है । वे वस्तुस्थिति को काफी गहराई से पकड़ते हैं और उसका उचित विश्लेषण करते हैं । उनकी एक पुस्तक “जैन पदार्थ विज्ञान में पुल" प्रकाशित हुई है और वह काफी प्रशंसा प्राप्त कर चुकी है। इधर कुछ समय पहले “लेश्याकोश’” के नाम से एक दूसरी कृति भी उनकी बहुत शानदार निकली है। यह प्रस्तुत “क्रियाकोष” भी उसी कोटि की श्रेष्ठ कृति है । इसमें यत्र-तत्र उनकी बहुमुखी प्रतिभा के दर्शन होते है । आगम साहित्य में दूर दूर तक फैले हुए क्रिया सम्बन्धी वर्णनों को बड़े सुन्दर ढंग से एक एक कर क्रिया-साहित्य का एक एक सर्वांगीण चित्र ही उपस्थित कर दिया है। मैं श्री बांठियाजी के इस संकलन का हृदय से स्वागत करता हूं और विद्वानों से अनुरोध करता हुं कि वे उक्त कोश का यथावकाश गम्भीर अध्ययन करें और सर्वसाधारण जिज्ञासुओं के लिए कर्मवाद, क्रियावाद, साथ ही कर्म-मुक्तिवाद आदि का भव्य विश्लेषण कर भारतीय तत्वचिन्तन की श्रीवृद्धि करें ।
जैन भवन, मोती कटरा, आगरा
२०-१०-१६६६
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- उपाध्याय अमर मुनि
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