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मिथ्यात्वीकाआध्यात्मिक विकास
मिथ्यात्वी आत्मा अपने स्वरूप के प्रति स्वतः या परोपदेश से सजग हो जाती है और स्वपुरुषार्थ द्वारा नैतिक सदाचरण, संयम, तप, त्याग का मार्ग अपनाती है। मिथ्यात्वी जीव ही आत्म विकास करते हुए जब सम्यग दृष्टि को प्राप्त कर लेता है तो आत्मोन्नयन का मार्ग प्रशस्त एवं ऊर्ध्वगामी बन जाता है और अन्ततः परम प्राज्ञतव्यपरमात्मपद, मुक्ति या निर्वाण्फी प्राप्ति में समाप्त होता है।
३. मात्र जैन कुल में उत्पन्न होने या जैन धर्म अंगीकार कर लेने से कोई व्यक्ति सम्यक्त्वी नहीं बन जाता। यह सम्भव है कि समय विशेष या क्षेत्र विशेष में समस्त तथोक्त जैन नामधारियों में एक भी सम्यग्दृष्टि न हो, भले ही वह श्रावक धर्म का व्यावहारिक पालन करता हो, व्रत भी ग्रहण किये हों अथवा गृहत्यागी साधु या साध्वी भी क्यों न हो।
४. यह भी संभव है कि एक ऐसा व्यक्ति जिसने जैन धर्म का कभी नाम भी नहीं सुना, जैन शास्त्रों को पढ़ा या जाना भी नहीं, जैन साधना पद्वति का भी जिसे कोई परिचय नहीं, फिर भी वह नैतिक सदाचरण द्वारा एक बड़ी सीमा तक आत्म विकास कर ले तथा आत्म परिणामों की उज्ज्वलता के कारण सम्यक्त्व भी प्राप्त कर ले।
५. एक द्रव्यलिंगी जैन मुनि, जो प्रायः पूर्ण श्रुत ज्ञानी हो सकता है, मुनि धर्म का भी निर्दोष पालन करता है, अपने आचरण एवं उपदेश से अन्य अनेकों को सन्मार्ग पर लगा देता है, अत्यन्त मन्द कषायी होता है, तथापि सम्यगत्वी विहीन होने से मुक्ति नहीं पा सकता - अपनी तप-त्याग-संयम साधना के फलस्वरूप उच्च देवलोक तक ही पहुंच पाता है। उसी प्रकार किसी भी जैनेतर मार्ग की सम्यक साधना करने वाला धर्मात्मा, भक्त, साधु, सन्त, परमहंस या फकीर भी आत्म विकास करके द्रव्यलिंगी जैन मुनि की भांति उच्च देवलोक प्राप्त कर सकता है। और यदि संयोग से सम्यक्त्व प्राप्त कर ले तो कालान्तर में मोक्ष भी पा सकता है।
- इस प्रकार, जैन धर्म में किसी प्रकार की धार्मिक ठेकेदारी या एकाधिकार नहीं है। वह तो आत्म विकास की सम्भावताओं, रूपों, प्रकारों, सीमाओं आदि का सम्यक, निरूपण करके उसके लिये सम्यक, दर्शन-ज्ञान-चारित्र रूप रत्नत्रय मार्ग का निर्देश कर देता है और घोषित करता है कि कोई भी प्राणी, यहां तक कि पशु-पक्षी या नारकी जीव भी कहीं हो, किसी परिवेश या परिस्थितियों में हो, उपयुक्त संयोगों एवं निमित्तों के मिलने अथवा स्वपुरूषार्थ द्वारा मिलाने से अपना आत्म विकास कर सकता है। उक्त आध्यात्मिक विकास
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