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दर्शन-दिग्दर्शन
सूत्र भी कहते है। इसके चार अध्याय हैं व प्रत्येक अध्याय चार पादों में विभक्त हैं और प्रत्येक पाद अधिकरणों में बंटा है। हर अधिकरण में एक या अधिक सूत्र हैं। ग्रंथ के चार अध्यायों के वर्ण्य विषय क्रमशः समन्वय अविरोध साधन और फल है।
वेदान्त सूत्र के प्रथम अध्याय में बादरायण ऋषि ने बताया कि समन्वय भाव से विचार करने पर समस्त वेद वाक्य अद्वैत ब्रह्म की सिद्धि करते है। ऋषि ने उपनिषद आदि के प्रसंगों का उल्लेख कर सिद्ध किया है कि ब्रह्म ही परम सत्य है, विश्व का सृजक व अधिष्ठाता ब्रह्म ही है। द्वितीय अध्याय में उन सभी आपत्तियों की चर्चा की गई है जो वेदान्त की उपरोक्त मान्यता के विस्द्ध है और साथ में उनका खण्डन भी किया गया है । सांख्य दर्शन का मुख्य रूप से प्रतिवाद किया गया है व अन्य दर्शनों को भी गलत प्रमाणित करने की चेष्टा तर्क के आधार पर की गई है। तृतीय अध्याय में मुक्ति के उपायों की चर्चा है। इस अध्याय में उस प्रक्रिया का भी वर्णन है जिसके द्वारा जीवात्मा पृथ्वी पर उतरती है, गर्भ में प्रविष्ट होती है, नवीन शरीर को प्राप्त करती है, जागृत, स्वप्न व सूषुप्ति में भिन्न दशाओं का अनुभव करती है, विभिन्न अवस्थाओं का संयोग वियोग पाती है और अन्त में अद्वैत ब्रह्म की अपरोक्षानुभुति होने पर आवागमन के चक्र से मुक्ति प्राप्त करती है। ब्रह्य व जीव की अभेदात्मक स्थिति का आत्मज्ञान, सन्यास आश्रम का विधान, ज्ञान साधना, सगुण-निर्गुण उपासना आदि की भी इस अध्याय में चर्चा की गई है। अन्तिम चतुर्थ अध्याय में ब्रह्मज्ञान के फल व प्रसंगवश अन्य उपयोगी विषयों की चर्चा है। प्राणी की सूक्ष्म शरीर के माध्यम से जन्म जन्मांतर की यात्रा व अंत में ब्रह्मलीनता का इसमें समग्रता से वर्णन मिलता है। इस प्रकार वेदान्त सूत्र समग्र जीवन यात्रा व उसके ज्ञेय, हेय व उपादेय तत्वों की संपूर्ण चर्चा से एक अत्यंत महत्वपूर्ण व सर्वाधिक प्रभावक दर्शन ग्रंथ बन गया है।
महर्षि बादरायण के बाद वेदान्त सूत्र या वेदान्त दर्शन की उनेक ऋषि मुनियों ने व्याख्याएं व टीकाएं की हैं, जिनमें आदि शंकराचार्य का भाष्य प्राचीनतम है। आचार्य शंकर के बाद भास्कर, यादव प्रकाश, रामानुज, केशव, नीलकण्ठ, मध्व, बलदेव, वल्लम और विज्ञान भिक्षु आदि के नाम वेदान्त दर्शन की व्याख्या करने वालों में लिए जा सकते हैं । संभवतः वेदान्त सूत्र पर जितनी व्याख्याएं व टीकाएं उपलब्ध हैं वे अब भी उस पर विद्धानों द्वारा लिखा जा रहा है, उतना किसी दर्शन पर आज तक नहीं लिखा गया। भारतीय दर्शनों में वेदान्त दर्शन का जितना प्रचार प्रसार हुआ व बहुसंख्यक जनता ने इसको जितना
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