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स्व: मोहनलाल बाठिया स्मृति ग्रन्थ
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रूप से कहा जा सकता है कि मीमांसा के कर्म सिद्धान्त की पुनर्व्याख्या आधुनिक जीवन के अनुरूप की जाए व हमको सामाजिक व अन्य कर्तव्यों के प्रति जागरुक रहने व अपने कर्मो के सुफल के लिए धैर्य रखने की शिक्षा दी जाय तो आचार्य जैमिनी का मीमांसा सूत्र आज भी अपनी प्रांसगिकता बनाए रख सकता है।
(६)वेदान्त (उत्तर मीमांसा) और उसके आचार्य बादरायण
भारत में प्रचलित समस्त दार्शनिक परम्पराओं में वेदान्त के नाना सम्प्रदायों की व्यापकता सबसे अधिक है क्योंकि वेदान्त-दर्शन का मूल उपनिषद है जो अध्यात्म विद्या के चरमोत्कर्ष ग्रंथ माने जाते हैं। कहा जाता है कि द्वापर युग में स्वयं विष्णु ने व्यास का रूप लेकर वेदों को उनेक विभागों में विभक्त किया। वर्तमान कल्प के व्यास का नाम कृष्ण द्वैपायन है जो पराशर ऋषिव सत्यवती की संतान है। वर्ण से कृष्ण और द्वीप में जन्म लेने के कारण जहां वेद व्यास का नाम कृष्ण द्वैपायन पड़ा वहां बदरिका आश्रम में तपोरत रहने के कारण इनका नाम बादरायण पड़ा और ये चिरजीवी माने जाते हैं । वेद व्यास ने ऋग, यजुः, साम और अथर्व चार वेदों की प्रस्थापना की। इसके साथ महाभारत नाम का महाकाव्य, (जिसे पांचवां वेद कहा जाता है) व अष्टादश पुराणों की रचना की। पुराणों में पांच विषयों यथा सर्ग अर्थात मूल सृष्टि, २- प्रति सर्ग अर्थात परवर्ती सृष्टि, ३- वंश यानी देव पितरों की परम्परा, ४- मन्वन्तर अर्थात मनु का युग, ५- वंशानुचरित यानि सूर्य चन्द्र वंश के राजा व उनके उत्तराधिकारी का विवेचन है। उपनिषद व भगवत गीता के साथ-साथ उन्होंने वेदान्त सूत्र की भी रचना की जो क्रमशः श्रुति, स्मृति व न्याय प्रस्थान के नाम से जाने जाते हैं।
वेदान्त सूत्र में १६२ अधिकरण के ५५५ सूत्र मिलते हैं जिनमे प्रथम चार सूत्र सर्वाधिक महत्वपूर्ण हैं और वे सारे दर्शन का सार संक्षेप है। प्रथम सूत्र में अथातो ब्रहम जिज्ञासा (इसके बाद ब्रहम की जिज्ञासा), द्वितीय सूत्र में 'जन्माघस्य यतः' (जिसमें संसार की उत्पत्ति, स्थिति, प्रलय आदि का वर्णन), तृतीय सूत्र में शास्त्र योनित्वात (ब्रह्म शास्त्र का मूल है व शास्त्र ब्रह्म ज्ञान का कारण है) चतुर्थ सूत्र में तत्तु समन्वयात (तत्व की संगति से ब्रह्म की परम सत्य के रूप में सिद्धि) शब्दों का प्रयोग है, जो वेदान्त की समूची धारणाओं का दिग्दर्शन कराते हैं। वेदान्त सूत्र को ब्रह्मसूत्र, शारीरिक सूत्र, भिक्षुसूत्र और उत्तर मीमांसा
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