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दर्शन दिग्दर्शन
गणित की भाषा में जैनधर्म के मूल सिद्धांत
जैनधर्म जहां अपने लोकोत्तर गणित के लिए सुख्यात है, वहीं वह अपने भौतिक और आध्यात्मिक गणित में भी निपुण है। इसके कुछ सिद्धांतों को गणितीय सूत्रों में देखिये - (i) सुखH) धार्मिकता (R) के अनुपात में होता है :
HR (ii)सुख पूरित इच्छाओं और संपूर्ण इच्छाओं का अनुपात है :
पूरित इच्छाए (D) D H= कल इच्माए (D=
इच्छाएं न्युनतम होने पस (सुख) अनन्त हो सकता है। इच्छाओं के कम होने से कामिक घनत्व कम होता है एवं सुख बढ़ता है। फलतः
_ H Rd. (iii) इसी प्रकार जैन आध्यात्मिक गणित में राशियों का योग इनके गुणनफल के समानुपात में होता है। उदाहरणार्थ :अहिंसा अनेकान्त+ अपरिग्र ह= (अ) समता + श्रम+ स्वावलम्बन = (स) सम्यक् दर्शन+ ज्ञान+ चारित्र) = सम्यद . ज्ञा. चा) (iv) अनेकान्त सिद्धान्त को अनेक गणितीय रूपों में व्यक्त किया जा सकता है :
(अ) सांख्यिकीय3c, +3c, +3cg = 7
(ब) संपूर्ण सत्य=T=O= /P.dp जहांP = भंग की संख्या है। (v) प्रमाण और नय के लिए कहा जाता है कि प्रमाण नयों का समाक्षर है, अर्थात -
Pr. = 2 n[ज हाPrप्रमाण है और नय है।]
88856088888888888888888888
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