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स्मृति का शतदल
| श्री मोहनलालजी बांठिया के प्रति ।
रचनाकार :-साध्वी श्री जयश्रीजी सेवाकेन्द्र व्यवस्थापिका, श्री डूंगरंगढ़
वंश बांठियो चूरू जन्मे, कलकता में था अधिवास। सदा बांठियाजी कहलाए, मोहन अमिधा बी. काम. पास।
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रहन सहन सीधा सादा था, गांधी टोपी से अति प्यार। मौन भाव से, मस्त चाल से, चलते नेता ज्यों हर बार।
बड़ी पकड़ के धनी बांठिया, नहीं छोड़ते अपनी बात। समझ आ गयी, छोड़ दिया तब, श्रद्धा केन्द्र रहे गण साथ।
मेधावी साहित्य-विवेचक, सदा लेखनी शोभित हाथ। पैनी प्रतिभा दर्शन वेत्ता, ज्ञान दीप जलता दिन रात ।
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