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स्व: मोहनलाल बाठिया स्मृति ग्रन्थ
बम्बई' का वर्षों तक संगठन मंत्री रहा तथा अध्यक्ष बना। मैं यह सब उनकी शिक्षा का प्रताप ही मानता हूं। उन्होंने मुझे प्रतिभा सम्पन्न तथा कर्मनिष्ठ कार्यकर्ता बनाया - वह सब आपकी उल्लेखनीय विशेषता थी।
कई बुद्धिजीवियों को मेरे आशावाद पर आश्चर्य होता है। अभी हमलोग सिलीगुड़ी के पास पांच करोड़ रूपये की लागत से ३५ बीघा जमीन पर 'जय तुलसी विद्या बिहार, आवासीय विद्यालय के निर्माण कार्य में लगे हुए हैं। 'निराश होना नास्तिक होना है' यानी भगवान का जो भक्त है, वह कभी निराश नहीं होता। इस सक्रियता ने मुझे ६६ वर्ष का बच्चा बना दिया है। मैं इस समय उत्साह से भरपूर रहकर शुभवर्द्धन करता रहता हूं।
श्री जैन श्वेतांबर तेरापंथी महासभा कलकता के चुनाव का प्रसंग है यह। हम युवकों ने पूज्य काकाजी को निवेदन किया कि पूज्य आचार्यश्री तुलसी के विचारों के अनुकूल नही रहने से महासभा आगे नहीं बढ़ रही है । अतः आपकों मंत्री बनना होगा। पूज्य काकाजी ने हामी भर दी। उस समय कलकता में चुनाव नहीं होते थे। मनाव होता था। श्रावक अपने अनुकूल मंत्री बना लेते थे। इस बार उनका नाम आने पर लोगों ने उन्हें नाम वापस लेने का निवेदन किया लेकिन उन्होने नाम वापस लेने से इंकार कर दिया। बाद में आप सर्वसम्मति से महासभा के मंत्री चुने गए। आपसे युवकों को बड़ी प्रेरणा प्राप्त हुई।
पूज्य काकाजी आत्म प्रशंसा से कोसों दूर रहते थे तथा अपने विचारों को दृढ़ता के साथ उदभाषित करते थे। उन्होंने अपनी स्वार्थपूर्ति हेतु विपरीत सिद्धान्तों के साथ कभी समझौता नहीं किया। लोगों में उनकी बड़ी साख थी। मेरे धर्मपिता स्व. जब्बरमल भंडारी (जोधपुर) आदि आपके बड़े प्रशंसक थे। गण की प्रभुता को उन्होंने अक्षुण्ण रखा। इस प्रकार उनका जीवन सबके लिए प्रेरणास्रोत एवं मार्गदर्शक बना।
उनकी कुछ विरल विशेषताओं को कहा जाय तो वह सत्य के अनन्य उपासक, साहित्य के सजीव सेवक, सादगी के अप्रतिम पुजारी, मूकसेवी, कुशल व्यवस्थापक तथा गृहस्थ वेश में साधु का सा जीवन जीने वाले व्यक्ति थे।
आप जीवन के विभिन्न गौरवशाली आयामों तक पहुंचे। इस यायावर प्रतिभा पुत्र का निधन सं. २०३३ में ६८ वर्ष की उम्र में हो गया। सम्पूर्ण जैन समाज इस महामानव का सदैव पुण्य स्मरण करता रहेगा।
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