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स्वः मोहनलाल बांठिया स्मृति ग्रन्थ
कभी-कभी कार्यकर्ता उनसे पूछ लेते थे कि बांठियाजी हम तो आज कार्यक्षेत्र में आये हैं, आप हमें इतने बड़े शब्द 'मालकां' से क्यों सम्बोधित करते हैं । तो वे कहते थे कि भाई मैंने तो यही सीखा है कि सभी का आदर करो, आदरसूचक शब्दों से ही अपने एवं परायों यहां तक कि विरोधी से भी बात करनी हो तो उसके प्रति कभी 'छोटे शब्दों का व्यवहार मत
करो ।
साहित्य-साधना :- श्री बांठियाजी की सामाजिक चेतना जहां श्लाघनीय थी, वहीं तेरापंथ एवं जैन धर्म के सिद्धान्तों के प्रति भी उनकी अटूट आस्था थी । उन्होंने धार्मिक शास्त्रों एवं साहित्य का गहन अध्ययन किया था । इसलिए उनके मन की तमन्ना थी कि जैन धर्म के प्राचीन साहित्य में जो अनेक रत्न छिपे पड़े हैं उनको समाज एवं विश्व के सामने प्रकट किया जाये । इस कार्य में उन्हें श्री श्रीचन्दजी चोरड़िया का विशेष सहयोग मिला। और उन्होंने दशमलव प्रणाली के आधार पर प्रायः एक हजार विषयों पर जैन धर्म के विभिन्न विषयों पर अनुसंधान एवं साहित्य कार्य किया। उन्होंने पुदगल कोष आदि का प्रकाशन भी किया और उन्हीं के द्वारा विकसित सामग्री को जैन दर्शन समिति द्वारा इधर में योग कोष आदि ग्रंथ प्रकाशित हुए हैं और अन्य ग्रंथों के प्रकाशन की योजना है।
इस प्रकार श्री बांठियाजी का जीवन उनका दर्शन प्रेरणा रूपी एवं मशाल का कार्य कर रहा है और करता रहेगा ।
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