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कार्यकर्ताओं से सम्पर्क था। वहां तेरापंथ समाज की मूल भूत मान्यताओं के प्रति भी अटूट लगाव था । गुरूदेव श्री तुलसी (उस समय आचार्य श्री तुलसी) की कार्य शैली, सुधारक दृष्टिकोण एवं समाज के विकास के रास्ते आगे बढ़ाने के चिन्तन ने श्री बांठियाजी को प्रारम्भ से ही बहुत प्रभावित किया। श्री बांठियाजी की कार्यशैली की एक विशिष्टता यह भी थी कि वे बड़ो के सभी आदेशों को मान लेते थे, परन्तु जहां कोई बात समझ में नहीं आती थी तो वे उसका खुलासा भी करते थे । इस प्रक्रिया ने ऐसा समझा है जाना है कि कभी कभी अपनी विचार धारा को संभवतः छोड़ना नहीं चाहते थे।
संघीय सेवा :- श्री बांठियाजी ने श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा के मन्त्री एवं अध्यक्ष पद पर रहकर काफी सेवाएं दीं। जिस समय आप महासभा के अध्यक्ष थे उस समय आचार्य श्री तुलसी का रायपुर चातुर्मास था तथा उसी समय सती प्रकरण को लेकर पूरे भारतवर्ष में एक प्रचण्ड विद्रोह का वातावरण खड़ा किया गया। उस समय जबलपुर हाई कोर्ट में केस भी चला। उस समय श्री केवलचन्दजी नाहटा महासभा के महामंत्री एवं मैं उप मंत्री के रूप में था । श्री बांठियाजी ने मुझे कहा मैं तथा श्री केवलचंद कलकता में रहकर व्यवस्था करो, जबलपुर में केस का कार्य मैं देखता हूँ। आपने यह भी कहा कि समाज कामधेनु है, इस सन्दर्भ में उल्लेखनीय है कि समाज की एकता एवं दृढ़ता एवं आचार्य श्री के मार्गदर्शन ने समाज को नया उत्साह एवं जीवन प्रदान किया ।
स्मृति का शतदल
इसी प्रकार यह बात भी उल्लेखनीय है कि कलकते में सार्वजनिक हित की संस्थाओं को कलकता कार्पोरेशन से टैक्स की माफी मिलती है। महासभा ने भी टैक्स की माफी का प्रतिवेदन तत्कालीन बड़ाबाजार के काउन्सिलर श्री रामकिशनजी सरावगी के मार्फत दिया। उस कार्य की देखरेख करने के लिए इस लेखक को एक दिन श्री बांठियाजी ने अपने घर बुलाकर कहा कि सुराणाजी देखो 'न हि सुकृत्य सिंहस्य मुखे प्रविशन्ति मृगाः' इसलिए इस काम को करने के लिए तैयार हो जाओं तथा यदि कोई सलाह-मशविरा करना तो पूरा समाज साथ में है और गुरू कृपा से उस समय महासभा का टैक्स माफी का काम सम्पन्न हुआ ।
कार्यकर्ता का निर्माण एवं सम्मान :- श्री बांठियाजी में सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि वे अपने साथी कार्यकर्ता को सही राय देते थे। उसका सम्मान करते थे तथा आगे बढ़ाते थे । छोटे बड़े सभी कार्यकर्ता को 'मालकां' कह कर ही पुकारते थे ।
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