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श्रद्धेय बांठियाजी तेरापन्थ शासन के नींव के पत्थर थे । शासन को जो अमूल्य सेवाएं उन्होने दी तदर्थ तेरापंथ शासन के इतिहास में उनका नाम स्वर्णाक्षरों में अंकित रहेगा ।
रायपुर में आचार्य श्री की पुस्तक अग्नि परीक्षा को लेकर भयंकर बवेला खड़ा हो गया था। बांठियाजी एक वीर सेनापति की तरह अपनी टीम के साथ डटे रहे और परिस्थितियों का मुकाबला करते रहे। मध्य प्रदेश सरकार ने अग्निपरीक्षा पुस्तक जब्त कर दी थी। महासभा की तरफ से जब्बलपुर उच्चन्यायालय में उक्त आदेश को चुनौती दी गई। मामले की सारी ब्रीफ बांठियाजी ने बनाई तथा करीब एक महीना तक जब्बलपुर में ही डटे रहे । ब्रीफ का अनुवाद श्री भानीरामजी अग्निमुख ने किया। भारतवर्ष के प्रसिद्ध कानूनी अधिवक्ता श्री अशोक सेन ने महासभा की तरफ से बहस की। दो दिनों तक सुनवाई चली-आखिर जब्ती का आदेश रद्द करने का फैसला आया । इस सारे अभियान में याजी ने मुझे साथ रखा - यह मेरा सौभाग्य था ।
स्मृति का शतदल
सबसे बड़ा अनुदान उनको ३२ सूत्रों में आये विषयों पर करीव ३००-४०० फाइले तैयार करना था। उनके जीवन काल में ही कुछ विषयों पर कोष तैयार हुए तथा उनका मुद्रण भी हुआ। आज भी श्री श्रीचन्दजी चोरड़िया उस कार्य में संलग्न है व कार्यरत है। जैन दर्शन समिति के तत्वावधान में । यह उनकी बुद्धि की अनूठी सूझ थी ।
आज तक लेश्या कोश एवं अन्य कई कोष तैयार होकर मुद्रित हो चुके है । बांठियाजी अपने जीवन काल में ही इतनी सामग्री जुटा कर गये हैं कि बीसों वर्ष तक यह काम निरंतर चलता रहेगा ।
ऐसे अद्धितीय व्यक्तित्व के धनी युगपुरुष शताब्दियों में ही जन्म लेते है । की अमर कीर्ति युगो तक समाज की धरोहर रहेगी।
उस महान पुरुष को अपने टूटे फूटे शब्दों मे श्रद्धांजलि अर्पित कर रहा हूं | कामना है, उनकी आत्मा निरंतर उच्च गमन करती रहे और अन्त में सिद्धि प्राप्त करे ।
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