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। स्व: मोहनलाल बाठिया स्मृति ग्रन्थ
पेश किया। पुलिस को यह कार्यवाही भी विरोधी लोगों के दबाव में करनी पड़ी। पर उचित पैरवी से विरोधियो की कार्यवाही निष्फल रही।
मैं उस समय स्थानीय जैन श्वेताम्बर तेरापंथी सभा के सचिव पद पर था। स्व. मोहनलालजी बांठिया के रायपुर पदार्पण पर स्थानीय सभा के सचिव होने के नाते मेरा कर्तव्य था कि समाज के हर कार्य में उनका सहयोगी बनूं। जो कार्य करने में मुझे कठिनाई होती तो मैं स्थानीय सभा के पदाधिकारियों के साथ जाकर उनसे सलाह मशविरा किया करता और उनके निर्देशानुसार कार्य को पूरा करता। मुझे उनसे रायपुर में अनेक बार ऐसा मौका मिला। और जब भी मैं उनके पास सलाह मशविरा के लिए जाता तो मुझे छोटे भाई की तरह स्नेहपूर्वक मार्ग दर्शन किया करते। स्व. बांठियाजी ने मुझे जो असीम स्नेह (धर्मस्नेह) दिया उसे मैं कभी भूल नहीं सकता। उनसे मैंने कई अनुभव प्राप्त किये। उनकी सादगी, ऋजुता, गंभीरता, आत्मीयता एवं मिलनसारिता के गुण मैं अपने जीवन में संजोए रखने का प्रयास करता रहूंगा, तब ही मेरा जीवन सार्थक होगा, ऐसा मेरा विश्वास
है।
इस सारे प्रकरण में - महासभा के महामंत्री श्री केवलचन्द नाहटा की सूझबूझ कारगर रही। श्री शुभकरण दस्साणी की सेवाओं को भी भुलाया नहीं जा सकता। श्री कन्हैयालालजी दूगड़, भानीराम अग्निमुख भी पूर्ण सहयोगी रहे।
इन सब महानुभावों के प्रयास मार्ग दर्शन से ही उच्चस्तरीय राजकीय प्रतिरोध का सामना कर सके एवं अग्निपरीक्षा पुस्तक पर से प्रतिबन्ध हटवा सकें।
__ अन्त में स्व. मोहनलालजी बांठिया के प्रति श्रद्धा करता हुआ अपनी लेखनी को विराम देता हूं।
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