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कर्मठ पुरुष
- नथमल कठौतिया
आचार्य श्री तुलसी का कलकता का चातुर्मास तेरापंथ इतिहास की एक महत्वपूर्ण घटना है। गुरूदेव अपने संघ के साधु-सन्तों सहित महासभा के ३ नं. पोर्तुगीज चर्च स्ट्रीट में विराजते थे। साध्वी प्रमुखा लाडांजी संघ की साध्वियों सहित हरीसन रोड विराजती थीं। आचार्यश्री का प्रवचन तिरहट्टी बाजार के सामने, जहां पोद्दार कोर्ट बना है, वहां उस समय खुला स्थान था, वहां सुबह प्रवचन होता था। कलकत्ता शहर में बाहर से आने वाले यात्रियों को ठहराने की जो व्यवस्था समिति बनी थी उसके संचालक मोहनलालजी बांठिया और सह संचालक लाडनूं के जयचन्दलालजी कोठारी थे । कोठारीजी की वजह से मेरा परिचय बांठियाजी से हुआ और यह परिचय धीरे-धीरे घनिष्टता में बदल गया।
श्री बांठियाजी ज्ञान की खुली पुस्तक थे। उनका अध्ययन इतना विशाल था कि मैं उनकी प्रतिभा का कायल होगया था। उनका निवासस्थान गरियाहाट डोवर लेन में था। आचार्यश्री का जिस क्षेत्र में चातुर्मास होता वे एक महीने की सेवा उपासना जरूर करते थे। अतः मैं इस महान श्रावक को मेरी श्रद्धांजलि अर्पित करने में गौरव अनुभव करता हूं।
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