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स्वः मोहनलाल बांठिया स्मृति ग्रन्थ
पढ़ने की आवश्यकता न रहे, इस हेतु बांठिया जी ने सर्व प्रथम ३२ श्वेताम्बर आगम सूत्रों तथा तत्वार्थ सूत्र से जैन दर्शन के महत्वपूर्ण विषयों के क्रमवार पाठ एकत्र संकलित किये। विशिष्ट दार्शनिक आध्यात्मिक शब्दों की एक सूची भी बनाई। ऐसे शब्दों की संख्या एक हजार से अधिक हो गई । विषय के सुष्ठु वर्गीकरण के लिए उन्होंने आधुनिक सार्वभौमिक दशमलव वर्गीकरण पद्धति का अध्ययन किया और बहुत कुछ उसी के आधार पर जैन वांग्मय को एक सौ वर्गों में विभक्त किया तथा प्रमुख विषयों के वर्गीकरण की रूपरेखा बनाई । मूल विषयों में से अनेक उपविषयों की सूची भी बनाई। सर्वप्रथम नारकी जीव विषय चुना, फिर उसे अधूरा छोड़कर लेश्या को हाथ में लिया। फलस्वरूप १६६६ ई. में उनका अद्वितीय लेश्या कोश प्रकाशित हुआ, जिसमें मूलपाठों के साथ हिन्दी अनुवाद भी किया ओर प्रस्तावना में पूरी पद्धति पर भी विशद प्रकाश डाला। कोश में यत्र-तत्र यथावश्यक गंभीर सैद्धान्तिक आलोचनात्मक टिप्पणियां भी दी। यद्यपि प्रकाशन समूल्य था प्रायः समस्त प्रतियां देशी-विदेशी विद्वानों, प्राच्यविद्या संस्थानों, विश्वविद्यालयों आदि
अमूल्य ही वितरित कर दी । सन १६६६ में उन्होंने उसी पद्धति पर क्रिया कोष भी प्रकाशित कर दिया और योग कोष तथा वर्धमान जीवन कोष पर कार्यारम्भ कर दिया ।
एक निश्चित वैज्ञानिक पद्धति पर विषय बार व्यवस्थित बांठियाजी के उक्त वैषयिक पारिभाषिक कोश ग्रन्थों का विद्धतजगत में प्रभूत स्वागत एवं समादर हुआ। वे इस शैली के सन्दर्भ के ग्रन्थों मे प्रायः सर्वोत्तम मान्य किए गये। इस अति समय एवं श्रमसाध्य योजना का सम्पादन बांठिया जी ने प्रायः स्वयं के ही तन-मन-धन से किया । संयोग से उन्हें प. श्रीचन्द चोरड़िया जैसे उत्साही, लगनशील एवं अध्यवसायी सहायक का लाभ भी मिला। बांठिया जी को इस महत्वपूर्ण कोश परिकल्पना को क्रियान्वित करने तथा उनके सत्कार्य एवं अध्यवसाय के प्रति समुचित सम्मान प्रकट करने के उद्देश्य से उनके भक्त मित्रों ने १६६६ को महावीर जयन्ती के अवसर पर जैन दर्शन समिति की स्थापना की । उनके स्वयं के दिवंगत हो जाने पर अब उक्त समिति ही उनके स्वप्न को साकार करने में प्रयत्नशील है ।
लगभग १६६० से ही श्री बांठियाजी अपनी परिकल्पना के विषय में हम से भी पत्राचार द्वारा विचार विमर्श करते रहे। लेश्या कोश की कच्ची कापी भी सुझाव आदि के लिए भेजी थी । सौभाग्य से कलकता के जैन सभा के निमंत्रण पर और विशेषकर स्व. बाबु
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