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________________ અભિવાદન [४८ दत्तचित्त रहते । सबके साथमें आपका ऐसा मधुर व्यवहार था कि बरबस आपके सम्पर्कमें आनेवाले आकर्षित हुये बिना नहीं रहते ।। जैसलमेरमें आप रातको १२ बजे तक निरन्तर कार्य करते रहते थे। १२ बजे भी बिजली बन्द हो जाने पर ही आपका कार्य रुकता। इतना परिश्रम करते हुये भी आप बड़े प्रसन्नचित्त नजर आते । सब समय आप सबके लिये सुलभ थे । मुझे बडा संकोच होता था कि आपसे जैन तत्त्वज्ञान और साहित्य संबंधी चर्चा तो करनी जरूरी है, पर आप सब समय ज्ञानोपासनामें लगे हुये हैं, तो इनका अमूल्य समय लेना कहां तक उचित होगा ? कई दिनों तक तो मैं इसी पशोपेशमें रहा । पर आपकी उदारता, विशाल हृदयता, सौजन्य एवं वात्सल्यताका परिचय पाता रहा, इससे एक दिन साहस वटोरकर आपके पास बैठ गया और अपने मनकी बात बड़े संकोचके साथ कह डाली। इसके उत्तरमें आपने जो शब्द कहे वे आज भी मेरे कानोंमें गूंज रहे हैं । आपने फरमाया कि " आखिर मैं यह सब काम किसके लिये कर रहा हूं ? आप जैसे ज्ञानरुचि और साहित्यसेवी व्यक्तिके लिये तो मैं सब काम छोड़कर अपना समय देनेको तैयार हूं। आखिर मेरे इस परिश्रमका लाभ आप जैसे व्यक्ति ही उठायेंगे और मेरे कार्यका सही मूल्यांकन तभी हो सकेगा।" मैं आपके यह अमूल्य विचार सुनकर गद्गद हो गया और फिर तो खुलकर लंबे समय तक कई प्रकारकी बातें होती रहीं। इस सच्ची साधुताका दर्शन मुझे आपमें बड़े अच्छे रूपमें दिखाई दिया । और मैं आपका भक्त बन गया। जैसलमेरका कार्य करते समय आपके अनेक सद्गुणोंका मुझे परिचय मिला । बीकानेरके ज्ञानभण्डारोंकी चर्चा करते हुये मैंने आपसे जैसलमेरका कार्य पूर्ण होने के बाद बीकानेर पधारनेका अनुरोध किया और आप कृपा कर बीकानेर पधारे । तब तो आपकी कृपाका और भी अधिक लाभ मिला । सबसे बड़ी और विरल विशेषता मेरे अनुभव में यह आई कि गच्छ, मतका आपमें तनिक भी व्यामोह नहीं है । अपने किये हुये कामका लाभ दूसरे उठावें इसमें प्रसन्न होना, दूसरोंके कार्यमें सदा सहयोगी बनकर उन्हें प्रोत्साहित और लाभान्वित करना, सबके साथमें मधुर संबंध और सदा प्रसन्न और खिला हुआ चेहरा, नाम और यशकी कामना न करते हुये अपने किये हुये विशिष्ट श्रमपूर्ण संशोधनको दूसरोंके उपयोगके लिये पूरी टूट दे देना। सरलता और आत्मविश्वास, सौजन्य और आत्मीयता आपके विरल व्यक्तित्व के महत्त्वपूर्ण पहलू हैं । ऐसे सद्गुण इतनी अधिक मात्रामें अन्यत्र खोजने पर भी नहीं मिलेंगे। नामानुरूप आप पुण्यकी साकार प्रतिमा हैं । आपके कार्यों और मृदु व्यवहारसे आकर्षित होकर लोग अपने आप आपको सहयोग देनेके लिये उत्सुक हो जाते हैं । आपके सम्पर्क में आनेवाले साधारण व्यक्ति असाधारण बन गये । सारा जीवन आपने साहित्योपासनामें लगा दिया। पर कोई व्यस्तता व अलगाव नहीं । खुल्ला हृदय और पवित्र, आदर्श एवं खुल्ला जीवन । धन्य है। ___अकेले अपने आपका काम करनेवाले व्यक्ति तो बहुतसे मिलेंगे पर उनमें प्रायः संकुचित वृत्ति इतनी अधिक रहती है कि सारा श्रेय वे स्वयं ही लेना चाहते हैं । दूसरोंको सहयोग देने व आगे बढ़ाने में वे प्रायः उदासीन रहते हैं । पर मुनिश्री पुण्यविजयजीने अनेकों व्यक्तियोंको तैयार करके सहयोगी बनो लिया और जो भी व्यक्ति उनसे सहयोग लेनेको गया या शा. स. ७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012058
Book TitleGyananjali Punyavijayji Abhivadan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnikvijay Gani
PublisherSagar Gaccha Jain Upashray Vadodara
Publication Year1969
Total Pages610
LanguageGujarati, Hindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size15 MB
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