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________________ भोग-रोग सम्पति-विपत्ति है, जब यह भाव समाया था। कामजयी ने तीस वर्ष में दीक्षा को अपनाया था ॥ सर्व परिग्रह त्याग, वर्ष बारह, बन बीच बिताये थे। मोहादिक कर नष्ट, सर्वज्ञाता 'अरेहन्त' कहाये थे ॥आओ०॥ मानव बने महामानव, अब 'तीर्थंकर' पद पाया था। मानवता उद्धार-हेतु, तब यह सन्देश सुनाया था ॥ "स्वयं जियो जीने दो सबको", इससे बढ़ कर धर्म नहीं । स्वार्थ-हेतु पर को दुख देने से बढ़कर दुष्कर्म नहीं ॥आओ०॥ तीस वर्ष उपदेश सुना अगणित जीवों को ज्ञान दिया। कार्तिक कृष्ण अमावस्या, तन त्याग, प्राप्त निर्वाण किया ॥ ढाई हजार वर्ष से जन-मन वीर-चरण आराधक हैं। महावीर सिद्धान्त पूर्णतः विश्वशान्ति के साधक हैं |आओ०॥ रायचन्द्र ने बापू को वीर-सन्देश सुनाया था। बापू ने सत्य-अहिंसा से भारत स्वतन्त्र करवाया था। उन्हीं वीर के आगे 'कौशल" सब मिल शीश झुकायें हम । आत्म शक्ति को पहिचान, सच्चे मानव बन जायें हम ॥आओ०॥ -हीरालाल 'कौशल' धन्य हुआ कुण्डलपुर ज्योति भरे कलधौत घाम में दिनकर किरण सुहाई, मन्द-मन्द मलयानिल मारुत मृदु सुगन्ध भर लाई । सरसिज खिले गन्ध मन भावन चारु चतुर्दिश छाई, सजा सलोने गीत कोकिला नव उपवन में आई। नृत्य करें हरषित मयूर मन भावन पंख पसारे। धन्य हुआ कुण्डलपुर परसत पावन चरण तिहारे ॥ साज सजे कुण्डलपुर के लख सुर नगरी शरमाई, सुर सुगरांना सुधर रूप धर प्रभुदर्शन हित आई। त्रिसला माता के आंगन में बजने लगे बधाये, भाव भरे सुरबाला नाचें हरष चहुँ दिश छाये । तोरण बन्दनवार बंधे नृप सिद्धारथ के द्वारे, धन्य हुआ कुण्डलपुर परसत पावन चरण तिहारे ॥ चकित हुआ तिहुँ लोक थकित हिंसक के मन डोले. धीरज बंधा निराशा टूटी भव दुख बन्धन खोले।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012057
Book TitleBhagavana Mahavira Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherMahavir Nirvan Samiti Lakhnou
Publication Year1975
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size16 MB
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